लोकसभा चुनाव के नतीजे मंत्रियों और विधायकों के कद नतीजे तय करेंगे। दूसरे दलों से लाकर भाजपा ने जिन नेताओं को पद-प्रतिष्ठा से नवाजा उन सबकी असल परीक्षा परिणाम से होगी।


लोकसभा चुनाव का शनिवार को अंतिम चरण पूरा होने के साथ ही सबकी नजरें चार जून को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। नतीजों से निकलने वाले संदेश बहुत कुछ तय करेंगे। चुनाव लड़ रहे केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों का कद तो तय होगा ही, मंत्री बनने का सपना देख रहे कई विधायकों की जमीन पर पकड़ भी सामने आएगी। Trending Videos

पार्टी ने चुनाव के मौके पर बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को लाकर, पद व प्रतिष्ठा देकर जिन समीकरणों का ताना-बाना बुना, उस सबका कितना असर हुआ, इसका भी पता चलेगा। 
ढाई महीने लंबे चुनाव अभियान के दौरान प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के कई महत्वपूर्ण फीडबैक सामने आए। 

पहला, कई मंत्रियों व सांसदों की छवि जनता के बीच ठीक नहीं थी। पीएम मोदी के नाम पर लगातार दो चुनाव जीतने के बावजूद वे जनता से कटे रहे। जनता के बीच   उनकी छवि भी बेहतर नहीं रही। संपत्ति बढ़ाने, परिवार व अपने लोगों को प्रधान से प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य से अध्यक्ष या विधायक तक पहुंचाकर ठेकेदारी के लाभ तक वे सीमित रहे। 

फीडबैक के अनुसार ऐसे करीब 10 और सांसदों के टिकट कटने चाहिए थे। इनमें दो मंत्री भी थे। पर, पार्टी ने जनभावना की अपेक्षा टिकट कटने पर इनकी नाराजगी से होने वाले नुकसान को ज्यादा महत्व देते हुए फिर से मौका दे दिया। ऐसी कई सीटों पर कार्यकर्ता सुस्त पड़े रहे जिससे लड़ाई कठिन हुई। 

दूसरा, कई जगह पार्टी ने सांसद का टिकट काटा, लेकिन उनके ही परिजन को दे दिया। इन सीटों पर भी पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में सुस्ती नजर आई। कार्यकर्ताओं में नाराजगी की वजह यही थी कि वे पार्टी का नहीं, बल्कि एक परिवार का झंडा उठाने को मजबूर किए जा रहे हैं। 

मतदाताओं में भी यह सवाल रहा कि मोदी परिवारवाद पर खूब बोलते हैं, लेकिन अपनी पार्टी पर मौन क्यों हैं। ऐसी सीटों पर कई जगह भाजपा समर्थक मतदान के दिन घर से नहीं निकलने या नोटा दबाने की बात करते नजर आए। संकेतों के मुताबिक ऐसी सीटों पर लड़ाई नजदीकी मुकाबले में फंस सकती है।

दिग्गजों का भविष्य भी लिखेंगे ये नतीजे
यह चुनाव केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री व चंदौली से भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, केंद्रीय मंत्री स्मृति जूबिन इरानी, केंद्रीय मंत्री संजीव कुमार बालियान का भी कद तय करेगा। इन सभी को पार्टी ने फिर मौका दिया है। अपना दल की नेता व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से तीसरी बार मैदान में हैं। नतीजा तय करेगा कि कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ भाजपा के परंपरागत माने जाने वाले वोटबैंक को वे अपने साथ रखने में कितना कामयाब रहीं। 

  • केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी महराजगंज सीट से 1991 से लेकर अब तक छह बार जीत दर्ज कर चुके हैं। यह चुनाव उनके लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है। यहां से इंडी गठबंधन ने उनके खिलाफ कांग्रेस से विधायक वीरेंद्र चौधरी को उतारा है। पांच बार के सांसद व केंद्रीय राज्यमंत्री भानु प्रताप वर्मा को भाजपा ने लगातार आठवीं बार प्रत्याशी बनाया है। वोटों के मार्जिन से उनके कद का भी आकलन होगा। भाजपा ने हैट्रिक की मंशा से साध्वी निरंजन ज्योति को फतेहपुर से मैदान में उतारा। वे कितनी खरी उतरती हैं, इसपर भी सबकी नजर होगी। 


 

 

  • तिकुनिया के थार कांड से देश-विदेश में चर्चा में आए केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी पर भी भाजपा ने फिर दांव लगाया है। यह चुनाव टेनी का न सिर्फ कद तय करेगा, बल्कि उनके भविष्य की सियासत की पटकथा भी लिखेगा। प्रदेश सरकार के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद पीलीभीत, पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह मैनपुरी, उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली और राजस्व राज्य मंत्री अनूप प्रधान वाल्मीकि हाथरस से मैदान में हैं। इनके प्रदर्शन पर भी सबकी निगाहें हैं।

 

भितरघात भी कम नहीं
प्रदेश के कई विधायक चुनाव से पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार और मंत्री बनने का सपना देख रहे थे। मगर, उनकी उम्मीदों पर चुनाव तक विराम लग गया। इधर, चुनाव आया तो क्षेत्र में अलग-अलग वजहों से कई विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के भितरघात की बातें सामने आईं। कई जगह पता चला कि विपक्ष से सजातीय प्रत्याशी आया, तो विधायक निष्क्रिय हो गए। 
 

  • फतेहपुर सीकरी में भाजपा विधायक चौधरी बाबू लाल ने अपने बेटे रामेश्वर सिंह को निर्दलीय मैदान में उतार दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने रामेश्वर सिंह के लिए मतदाताओं से संपर्क भी किया। इस पर भाजपा ने चुनाव के बीच में ही उन्हें कारण बताओ नोटिस भेज दिया। एक अन्य सीट पर सांसद प्रत्याशी और विधायक के बीच झड़प आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रही। कई वे विधायक जिनके चुनाव में सांसद ने दगा दिया था, वे अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरे दिग्गजों का प्रचार करने चले गए। कई विधायकों को संगठन व नेतृत्व ने आगाह भी किया। नेतृत्व की नसीहत का कितना फर्क पड़ा, यह विधायकों के क्षेत्र में जीत-हार व मार्जिन से पता चलेगा।

 

जो दूसरे दल से लाए गए, उन्होंने कितना कमाल दिखाया
चुनाव से पहले दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को पार्टी में शामिल किया गया। उन्हें महत्वपूर्ण पद दिए गए। कुशीनगर के पूर्व सांसद आरपीएन सिंह को पार्टी में शामिल कर राज्यसभा सांसद बनाया गया। इससे होने वाले नफा-नुकसान भी सामने आएंगे। 

  • आजमगढ़, बलिया और आसपास के क्षेत्रों में सजातीय मतदाताओं में असर रखने वाले पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह की पिछले माह ही भाजपा में वापसी कराई गई। उन्हें वर्ष 2022 में पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किया गया था। इनके आने से भाजपा को कितना फायदा हुआ, यह भी चुनाव नतीजे से साफ होगा। मुलायम सिंह के करीबी रहे पूर्वांचल के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह और उनके भाई बृज किशोर सिंह को भी चुनावी फायदे के लिहाज से भाजपा में शामिल कराया गया। सपा के बागी विधायक मनोज पांडेय को पार्टी में शामिल कर अमेठी, रायबरेली और आसपास की सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं पर पकड़ को और मजबूत बनाने की भाजपा की रणनीति कितनी सफल रही, यह सब परिणाम साफ कर देगा।

भाजपा का 'पन्ना' प्रयोग भी कसौटी पर
भाजपा ने यूपी में 2014 के चुनाव में पन्ना प्रमुखों की अवधारणा पर काम शुरू किया था। मतदाता सूची के प्रत्येक पन्ने पर पदाधिकारी तय किए गए। इस प्रयोग से मतदाताओं से संपर्क बढ़ाकर उन्हें पार्टी से जोड़ने और मतदान के दिन वोट डलवाने में बड़ी सफलता मिली। इससे पार्टी का वोट शेयर तेजी से बढ़ा। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत ही कम रहा है। ऐसे में यह प्रयोग कितना कारगर रहा, इस पर भी सबकी निगाहें होंगी।

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