“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक प्रकाशस्तंभ
– राजेश कुमार सिद्धार्थ, संपादक, बहुजन संगठक समाचार पत्र
“बहुजन संगठक” केवल एक समाचार पत्र नहीं था, बल्कि बहुजन समाज के आत्मसम्मान, संगठन और जागरूकता का प्रतीक था।
यह वह आवाज़ थी जिसने उस वर्ग को बोलने की ताकत दी, जिसकी आवाज़ को सदियों स
“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक प्रकाशस्तंभ
– राजेश कुमार सिद्धार्थ, संपादक, बहुजन संगठक समाचार पत्र
“बहुजन संगठक” केवल एक समाचार पत्र नहीं था, बल्कि बहुजन समाज के आत्मसम्मान, संगठन और जागरूकता का प्रतीक था। यह वह आवाज़ थी जिसने उस वर्ग को बोलने की ताकत दी, जिसकी आवाज़ को सदियों से दबाया गया था। इस पत्र की शुरुआत मान्यवर कांशीराम जी की प्रेरणा से हुई, और इसके वैचारिक संचालन की बागडोर संभाली राजेश कुमार सिद्धार्थ ने — जो न केवल एक संपादक बल्कि बहुजन चेतना के संवाहक भी थे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1970 के दशक के उत्तरार्ध में जब भारत का सामाजिक ढांचा ऊँच-नीच और जातिगत असमानता से जूझ रहा था, तब कांशीराम जी ने शिक्षित बहुजन वर्ग को संगठित करने का बीड़ा उठाया। 1978 में उन्होंने BAMCEF (Backward and Minority Communities Employees Federation) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था – शिक्षित कर्मचारियों को समाज परिवर्तन की दिशा में जोड़ना।
इसके बाद 1981 में DS-4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) की स्थापना हुई, और इन दोनों संगठनों की विचारधारा को आम जनता तक पहुँचाने के लिए 1980 के दशक की शुरुआत में “बहुजन संगठक” समाचार पत्र का जन्म हुआ।
बहुजन संगठक का उद्देश्य
इस पत्र का मूल लक्ष्य था —
बहुजन समाज में वैचारिक चेतना और आत्मसम्मान की भावना जागृत करना।
शोषित, वंचित और पिछड़े वर्गों को एकजुट कर सामाजिक न्याय की लड़ाई में संगठित करना।
शिक्षा, राजनीति और समाज में समान अवसरों की मांग को जन-जन तक पहुँचाना।
मुख्यधारा मीडिया में उपेक्षित मुद्दों को प्रमुखता से उठाना।
“बहुजन संगठक” ने समाज में यह विश्वास जगाया कि मीडिया सत्ता का नहीं, समाज का औज़ार होना चाहिए।
संपादक राजेश कुमार सिद्धार्थ की भूमिका
राजेश कुमार सिद्धार्थ का नाम “बहुजन संगठक” की पहचान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने इस समाचार पत्र को न केवल संपादकीय दृष्टि दी बल्कि एक सामाजिक मिशन का रूप प्रदान किया। उनकी लेखनी में संघर्ष की आग, विचार की गहराई और परिवर्तन का विश्वास झलकता था।
राजेश कुमार सिद्धार्थ का मानना था —
“बहुजन समाज की मुक्ति तब संभव है जब वह अपनी बात स्वयं कहने लगे। हमें अपनी आवाज़ अपने शब्दों में बुलंद करनी होगी।”
उन्होंने अपने संपादकीयों में बहुजन समाज के इतिहास, संघर्ष, नीतियों और आत्मसम्मान पर आधारित विश्लेषण प्रकाशित किए। उनकी शैली में विद्रोह था, लेकिन वह विद्रोह ज्ञान और संवेदना पर आधारित था।
बहुजन संगठक की विशेषताएँ
पत्र का हर अंक एक वैचारिक दस्तावेज़ की तरह होता था।
इसमें BAMCEF और DS-4 की गतिविधियों की सटीक रिपोर्टें छपती थीं।
कांशीराम जी के भाषण, संदेश और लेखों का प्रकाशन होता था।
समाज में घटित दलित अत्याचारों पर निर्भीक रिपोर्टिंग की जाती थी।
शिक्षा, संगठन और आत्मसम्मान पर आधारित संपादकीय दिशा तय की जाती थी।
इस पत्र ने हजारों बहुजन बुद्धिजीवियों, अध्यापकों, छात्रों और सरकारी कर्मचारियों को आंदोलन से जोड़ा। इसने विचारों के स्तर पर एक “बहुजन पुनर्जागरण” की नींव रखी।
प्रभाव और योगदान
“बहुजन संगठक” ने वह किया जो उस दौर की मुख्यधारा मीडिया नहीं कर पाई। इसने बहुजन समाज को यह समझाया कि राजनीति में भागीदारी और वैचारिक नेतृत्व दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं। यही वह विचार था जिसने आगे चलकर बहुजन समाज पार्टी (BSP) की नींव को वैचारिक मजबूती दी।
इस पत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसने बहुजन शब्द को सिर्फ एक सामाजिक परिभाषा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक पहचान बना दिया।
बहुजन समाज में यह भावना जगी कि —
“हम संख्या में अधिक हैं, लेकिन शक्ति में कमजोर नहीं; बस हमें संगठित होकर अपनी ताकत को पहचानना होगा।”
राजेश कुमार सिद्धार्थ की विरासत
एक संपादक के रूप में राजेश कुमार सिद्धार्थ ने यह सिद्ध किया कि पत्रकारिता केवल खबरें देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज निर्माण का साधन भी हो सकती है। उन्होंने पत्रकारिता को आंदोलन से जोड़ा और उसे विचार का आयाम दिया।
उनकी लेखनी ने बहुजन समाज को यह विश्वास दिलाया कि कलम भी परिवर्तन का अस्त्र बन सकती है। आज भी “बहुजन संगठक” के पुराने संस्करण अध्ययन का विषय हैं और बहुजन आंदोलन की जड़ों को समझने का माध्यम बने हुए हैं।
निष्कर्ष
“बहुजन संगठक” का इतिहास भारतीय सामाजिक परिवर्तन के इतिहास का ही हिस्सा है। यह पत्र उस युग का प्रतीक था, जब एक विचार ने सत्ता की दीवारों को चुनौती दी। इसकी हर पंक्ति में संघर्ष, समानता और आत्मसम्मान की गूंज सुनाई देती है।
संपादक राजेश कुमार सिद्धार्थ ने इस पत्र को केवल संपादकीय दायित्व तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक वैचारिक आंदोलन का स्वरूप दिया।
आज जब पत्रकारिता बाजार और राजनीति के दबावों से जूझ रही है, “बहुजन संगठक” हमें यह याद दिलाता है कि
“पत्रकारिता का असली उद्देश्य सत्ता की नहीं, समाज की सेवा करना है।”
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“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक स्तंभ
उपशीर्षक:
मान्यवर कांशीराम द्वारा स्थापित यह समाचार पत्र बना बहुजन समाज की आवाज़
लखनऊ। संवाददाता।
बहुजन समाज के उत्थान और संगठन की दिशा में चलाए गए आंदोलनों के इतिहास में “बहुजन संगठक” का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह समाचार पत्र सिर्फ एक
“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक स्तंभ
उपशीर्षक:
मान्यवर कांशीराम द्वारा स्थापित यह समाचार पत्र बना बहुजन समाज की आवाज़
लखनऊ। संवाददाता।
बहुजन समाज के उत्थान और संगठन की दिशा में चलाए गए आंदोलनों के इतिहास में “बहुजन संगठक” का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह समाचार पत्र सिर्फ एक
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