“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक स्तंभ उपशीर्षक: मान्यवर कांशीराम द्वारा स्थापित यह समाचार पत्र बना बहुजन समाज की आवाज़ लखनऊ। संवाददाता। बहुजन समाज के उत्थान और संगठन की दिशा में चलाए गए आंदोलनों के इतिहास में “बहुजन संगठक” का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह समाचार पत्र सिर्फ एक


“बहुजन संगठक”: बहुजन चेतना का वैचारिक स्तंभ


मान्यवर कांशीराम द्वारा स्थापित यह समाचार पत्र बना बहुजन समाज की आवाज़

लखनऊ। संवाददाता।
बहुजन समाज के उत्थान और संगठन की दिशा में चलाए गए आंदोलनों के इतिहास में “बहुजन संगठक” का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह समाचार पत्र सिर्फ एक प्रकाशन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का वह माध्यम था जिसने वंचित समाज को अपनी पहचान और आवाज़ दी।

इस पत्र की स्थापना बहुजन आंदोलन के शिल्पकार मान्यवर कांशीराम साहब ने की थी। उन्होंने इसे एक वैचारिक मिशन के रूप में प्रारंभ किया था, ताकि शोषित, पिछड़े और दलित वर्गों की वास्तविक स्थिति को समाज के सामने लाया जा सके।

कांशीराम साहब का मानना था कि जब तक बहुजन समाज अपनी बात स्वयं नहीं कहेगा, तब तक उसकी पीड़ा और संघर्ष को कोई नहीं समझेगा। इसी सोच से “बहुजन संगठक” का जन्म हुआ।

स्थापना और उद्देश्य
“बहुजन संगठक” का प्रकाशन 1980 के दशक में हुआ था। यह पत्र बामसेफ (BAMCEF) और डीएस-4 (DS-4 – दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) के वैचारिक कार्यों से जुड़ा था। इसका प्रमुख उद्देश्य था बहुजन समाज को शिक्षा, संगठन और संघर्ष के मार्ग पर ले जाना।

पत्र के माध्यम से समाज में यह संदेश फैलाया गया कि बहुजन वर्ग को अपने हक और अधिकारों के लिए स्वयं संगठित होना होगा। यह समाचार पत्र शिक्षित बहुजन वर्ग के बीच एक बौद्धिक क्रांति का वाहक बना।

बहुजन आंदोलन में भूमिका
“बहुजन संगठक” ने अपने लेखों और विचारों के जरिए सामाजिक न्याय की आवाज़ बुलंद की।
इस पत्र ने उन मुद्दों को जगह दी, जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया अक्सर अनदेखा करती रही।

यह समाचार पत्र बहुजन समाज पार्टी (BSP) की वैचारिक नींव के रूप में भी देखा जाता है।
बामसेफ से लेकर डीएस-4 और फिर बहुजन समाज पार्टी तक की यात्रा में “बहुजन संगठक” ने एक सेतु का कार्य किया।

पत्र के माध्यम से न सिर्फ सामाजिक जागरूकता फैली, बल्कि लाखों युवाओं में आत्मसम्मान और नेतृत्व की भावना भी जागृत हुई।

कांशीराम साहब की दृष्टि
मान्यवर कांशीराम साहब ने “बहुजन संगठक” को सिर्फ एक अखबार नहीं बल्कि एक “विचार आंदोलन” माना।
उनकी यह सोच थी कि –

उनकी इसी सोच ने “बहुजन संगठक” को एक ऐसा मंच बनाया, जिसने बहुजन चेतना को नया स्वरूप दिया और समाज में आत्मसम्मान की भावना को पुनर्जीवित किया।

निष्कर्ष
आज जबकि मीडिया का स्वरूप तेजी से बदल चुका है, “बहुजन संगठक” जैसी ऐतिहासिक पहलें यह याद दिलाती हैं कि समाज परिवर्तन के लिए विचार और संगठन दोनों का होना अनिवार्य है।
यह समाचार पत्र बहुजन समाज के उस संघर्ष की गवाही है जिसने वंचित वर्गों को अपनी पहचान, आत्मगौरव और राजनीतिक शक्ति प्रदान की।

लेखक:
अब तक इंडिया लाइव न्यूज़
(विशेष रिपोर्ट – बहुजन चेतना श्रृंखला)

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