दीपावली: अंधविश्वास या वैज्ञानिक कारण भूमिका भारत को “त्योहारों का देश” कहा जाता है। यहाँ प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई सांस्कृतिक, धार्मिक या प्राकृतिक उद्देश्य छिपा होता है। इन्हीं पर्वों में सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है – दीपावली। यह केवल एक धार्मिक त्योहार नह


दीपावली: अंधविश्वास या वैज्ञानिक कारण

भूमिका

भारत को “त्योहारों का देश” कहा जाता है। यहाँ प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई सांस्कृतिक, धार्मिक या प्राकृतिक उद्देश्य छिपा होता है। इन्हीं पर्वों में सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है – दीपावली। यह केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का उत्सव है।
किन्तु आधुनिक युग में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि — क्या दीपावली केवल अंधविश्वास और परंपराओं पर आधारित है, या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण और तर्कसंगत दृष्टि भी निहित है?
इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमें दीपावली के धार्मिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक पहलुओं का समग्र विश्लेषण करना होगा।

1. दीपावली का ऐतिहासिक एवं धार्मिक आधार

दीपावली का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। संस्कृत के दो शब्दों “दीप” (प्रकाश) और “आवली” (पंक्ति) से मिलकर बना “दीपावली” का अर्थ है — दीपों की पंक्ति। यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है।

(क) रामायण संबंधी कथा

सबसे प्रसिद्ध मान्यता यह है कि इस दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के पश्चात रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने दीपों की कतारें जलाकर उनका स्वागत किया। इस प्रकार दीपावली अंधकार पर प्रकाश और अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक बनी।

(ख) जैन परंपरा में

जैन धर्म में दीपावली का दिन भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। महावीर ने इसी दिन समाधि ली और आत्मा का मोक्ष प्राप्त किया। इसलिए जैन समुदाय के लिए यह आध्यात्मिक मुक्ति का प्रतीक है।

(ग) सिख परंपरा में

सिख धर्म में दीपावली का विशेष संबंध गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई (बंदी छोड़ दिवस) से है। मुगल सम्राट जहांगीर ने उन्हें ग्वालियर किले से इस दिन रिहा किया था। अतः सिख समुदाय के लिए यह स्वाधीनता और न्याय का प्रतीक है।

इन सभी दृष्टियों से दीपावली केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि नैतिकता, स्वतंत्रता और आध्यात्मिकता की विजय का प्रतीक बन गई।

2. दीपावली के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

दीपावली का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह समाज को सामूहिकता और एकता के सूत्र में बांधती है।
गांव-शहर, अमीर-गरीब, जाति-धर्म सभी के लोग इस अवसर पर एक-दूसरे से मिलते हैं, उपहार देते हैं, रिश्तों को सुदृढ़ करते हैं।

(क) स्वच्छता और सामुदायिक एकजुटता

दीपावली से पहले घरों की सफाई और सजावट का जो प्रचलन है, वह केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक स्वच्छता अभियान के समान है।
हर व्यक्ति अपना घर, गली, दुकान और संस्थान साफ करता है, जिससे संपूर्ण समाज में स्वच्छता और सुंदरता का वातावरण बनता है।

(ख) आर्थिक गतिविधि का केंद्र

दीपावली भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इस समय बाजारों में भारी खरीद-फरोख्त होती है। कपड़े, मिठाई, उपहार, सजावटी सामान, दीप, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ — सबकी बिक्री बढ़ती है।
छोटे व्यापारी और कारीगरों के लिए यह कमाई का बड़ा अवसर होता है।
अतः दीपावली आर्थिक उन्नति और व्यापारिक उत्साह का भी प्रतीक है।

(ग) पारिवारिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण

दीपावली परिवारों को जोड़ने का पर्व है। संयुक्त परिवारों में लोग दूर-दूर से अपने घर लौटते हैं।
यह त्योहार पारिवारिक बंधन, प्रेम और मेल-मिलाप को बढ़ाता है।

3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दीपावली का महत्व

अक्सर लोग यह सोचते हैं कि दीपावली केवल धार्मिक उत्सव है, परंतु यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो इसके पीछे कई तर्कसंगत कारण हैं।

(क) पर्यावरणीय और स्वास्थ्य लाभ

बरसात के बाद मौसम परिवर्तन
दीपावली वर्षा ऋतु के अंत और शीत ऋतु के आरंभ के बीच आती है। इस समय हवा में नमी और कीटाणुओं की वृद्धि होती है।
घरों की सफाई और दीपों का जलना वातावरण को शुद्ध करता है।

दीपक के तेल का औषधीय प्रभाव
परंपरागत रूप से दीपक में सरसों का तेल या घी जलाया जाता है।
इसका धुआं वातावरण में बैक्टीरिया और मच्छरों को नष्ट करने में सहायक माना गया है।
यह एक प्रकार का प्राकृतिक एंटीसेप्टिक प्रभाव उत्पन्न करता है।

स्वच्छता का वैज्ञानिक महत्व
सफाई से घरों में जमा धूल, फफूंदी और कीटाणु समाप्त होते हैं। इससे श्वसन तंत्र और त्वचा रोगों की संभावना घटती है।

(ख) प्रकाश और मनोविज्ञान का संबंध

प्रकाश का सकारात्मक प्रभाव
दीपावली का मुख्य प्रतीक “प्रकाश” है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश मनुष्य के मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामिन हार्मोन को सक्रिय करता है, जो खुशी और ऊर्जा के लिए ज़िम्मेदार हैं।

अंधकार से मुक्ति का भाव
अंधकार मनुष्य के अवचेतन में भय और नकारात्मकता का प्रतीक है। दीप जलाकर हम निराशा पर आशा की विजय का संदेश देते हैं।
यह मानसिक रूप से सशक्त बनने की प्रक्रिया है।

(ग) ध्वनि और प्रदूषण का प्रश्न

हाल के वर्षों में दीपावली पर पटाखों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है।
यह विज्ञान के अनुकूल नहीं है, बल्कि उसके विपरीत है।
शास्त्रों में कहीं भी पटाखे जलाने की परंपरा का उल्लेख नहीं मिलता। यह आधुनिक काल में जोड़ी गई हानिकारक प्रथा है।
इसलिए आज आवश्यकता है कि दीपावली के वैज्ञानिक और स्वच्छ स्वरूप को पुनः अपनाया जाए।

4. अंधविश्वास के तत्व और उनका विश्लेषण

समय के साथ दीपावली में कुछ ऐसी मान्यताएँ जुड़ गई हैं जिन्हें अंधविश्वास की श्रेणी में रखा जा सकता है।

(क) लक्ष्मी के आगमन और झाड़ू से जुड़ी मान्यताएँ

कई लोग मानते हैं कि दीपावली की रात यदि झाड़ू लगाई जाए या घर से पैसा निकाला जाए तो “लक्ष्मी चली जाती हैं।”
यह विचार धार्मिक ग्रंथों में नहीं बल्कि लोकमान्यताओं में पाया जाता है।
वास्तव में यह सांकेतिक शिक्षा है कि इस रात अनावश्यक खर्च या अशुद्ध कार्य न किए जाएँ, ताकि आर्थिक अनुशासन बना रहे।

(ख) विशेष दिशा में दीप जलाने का अंधविश्वास

कुछ लोग मानते हैं कि दीप केवल दक्षिण या उत्तर दिशा में ही जलाना चाहिए, अन्यथा अशुभ होता है।
विज्ञान कहता है कि दीप का उद्देश्य प्रकाश फैलाना है, दिशा नहीं।
इसलिए दिशा का प्रश्न प्रतीकात्मक है, वास्तविक प्रभाव नहीं रखता।

(ग) ज्योतिषीय मान्यताएँ

दीपावली पर ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को लेकर अनेक भविष्यवाणियाँ की जाती हैं।
हालांकि यह लोक संस्कृति का हिस्सा है, पर इसे वैज्ञानिक प्रमाण नहीं माना जा सकता।

5. दीपावली और भारतीय दर्शन में प्रकाश का प्रतीकात्मक अर्थ

भारतीय दर्शन में “प्रकाश” का अर्थ केवल बाहरी रोशनी नहीं, बल्कि ज्ञान और चेतना की रोशनी है।
उपनिषदों में कहा गया है — “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् “अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।”
दीपावली उसी संदेश को मूर्त रूप देती है।
जब हम दीप जलाते हैं, तो वह केवल घर को नहीं, बल्कि मनुष्य के अंतर्मन को आलोकित करने का प्रतीक होता है।
यह त्योहार हमें स्मरण कराता है कि

6. आधुनिक संदर्भ में दीपावली की प्रासंगिकता

21वीं सदी में दीपावली के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है।
आज यह पर्व वाणिज्यिकता और प्रदूषण से घिरता जा रहा है।
किन्तु इसका मूल संदेश — प्रकाश, स्वच्छता, प्रेम और विज्ञान — आज भी उतना ही आवश्यक है।

(क) पर्यावरण के साथ दीपावली

आज विश्व जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझ रहा है।
इसलिए दीपावली को हरित उत्सव (Green Diwali) के रूप में मनाने की परंपरा बढ़ रही है।
मिट्टी के दीये, जैविक रंग, प्राकृतिक तेल और बिना ध्वनि वाले दीप — यह सब पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को दर्शाते हैं।

(ख) डिजिटल युग की दीपावली

अब लोग ऑनलाइन शुभकामनाएँ भेजते हैं, परंतु असली खुशी तब होती है जब परिवार और समाज के लोग प्रत्यक्ष रूप से जुड़ते हैं।
दीपावली हमें यह सिखाती है कि मानव संबंधों की गर्माहट ही सच्चा प्रकाश है।

7. निष्कर्ष

दीपावली को केवल अंधविश्वास कह देना उसकी गहराई को नकारना होगा।
यह एक ऐसा उत्सव है जिसमें

धार्मिक आस्था,

सामाजिक एकता,

आर्थिक सक्रियता, और

वैज्ञानिक उपयोगिता
— सभी तत्व एक साथ जुड़े हैं।

जहाँ कुछ लोकमान्यताएँ अंधविश्वास का रूप ले चुकी हैं, वहीं दीपावली का मूल उद्देश्य अंधकार मिटाकर प्रकाश फैलाना — मानव सभ्यता का सार्वभौमिक संदेश है।
यदि हम दीपावली को स्वच्छता, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और मानसिक प्रसन्नता से जोड़कर मनाएँ, तो यह पूर्णतः वैज्ञानिक और तर्कसंगत पर्व बन जाता है।

अतः कहा जा सकता है कि —

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