बुढार में एक बार फिर बवाल चक्का जाम का सिलसिला जारी।
बुढार में फिर बवाल: चार पहिया वाहन ने बाइक को मारी ठोकर एक की मौत, लोगों ने किया चक्का जाम, वाहन में की तोड़ फोड़
पैत्रिक भूमि पर दबंगों का कब्ज़ा, पुलिस पर मिलीभगत के आरोप — न्याय की गुहार लेकर पीड़ित विनोद कुमार पहुंचे प्रशासनिक दरवाजों तक रिपोर्ट: ब्यूरो चीफ सुजीत कुमार स्थान: ग्राम लक्ष्मणपुर, खंड रामपुर सखरेज, जनपद कानपुर कानपुर जनपद के ग्रामीण अंचल में एक बार फिर दबंगई और प्रशासनिक उदासीनता का
रिपोर्ट: ब्यूरो चीफ सुजीत कुमार
स्थान: ग्राम लक्ष्मणपुर, खंड रामपुर सखरेज, जनपद कानपुर
कानपुर जनपद के ग्रामीण अंचल में एक बार फिर दबंगई और प्रशासनिक उदासीनता का मामला सामने आया है। ग्राम लक्ष्मणपुर निवासी पंडित विनोद कुमार ने अपने ही पड़ोसियों पर पैत्रिक भूमि हड़पने का गंभीर आरोप लगाया है। यह मामला केवल एक व्यक्ति की ज़मीन पर कब्ज़े तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में कानून-व्यवस्था और पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करता है।
विनोद कुमार के अनुसार, उनके पड़ोसी प्रताप नारायण, प्रेम नारायण, राज नारायण और उनके कुछ सहयोगियों ने मिलकर उनकी पैत्रिक भूमि पर अवैध कब्ज़े की कोशिश शुरू कर दी। यह जमीन उनके पूर्वजों की थी, जिसका बँटवारा परिवार में वर्षों पहले हो चुका था।
पीड़ित का कहना है कि लगभग तीन से चार दिन पहले इन लोगों ने बिना किसी अधिकार या अनुमति के जमीन पर अवैध निर्माण कार्य शुरू कर दिया। जैसे ही उन्हें इसकी जानकारी मिली, उन्होंने तत्काल शिवराजपुर थाने में इसकी सूचना दी।
विनोद कुमार बताते हैं, “मैंने पुलिस को बताया कि यह मेरी पुश्तैनी जमीन है और मेरे नाम पर खतौनी दर्ज है। दबंग लोग जबरन निर्माण कर रहे हैं, लेकिन पुलिस ने मौके पर जाकर कोई कार्रवाई नहीं की। केवल ‘देखेंगे’ कहकर मामला टाल दिया गया।”
पुलिस की निष्क्रियता से निराश विनोद कुमार ने मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का निर्णय लिया। उन्होंने क्रमशः मुख्यमंत्री पोर्टल, एसडीएम कार्यालय, कमिश्नर ऑफिस और डीसीपी ऑफिस में शिकायत दर्ज कराई।
उनका कहना है कि हर जगह से केवल आश्वासन मिला, लेकिन ज़मीनी स्तर पर किसी भी विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया। इस बीच दबंगों ने अवैध निर्माण जारी रखा और अब लगभग पूरी जमीन पर दीवारें खड़ी कर दी हैं।
पीड़ित विनोद कुमार का कहना है, “शायद अगर पुलिस ने शुरुआत में कार्रवाई की होती तो इतना बड़ा विवाद नहीं होता। अब तो मेरी ज़मीन पर स्थायी निर्माण हो चुका है। दबंगों का कहना है कि वे वहीं रहेंगे, चाहे कोई कुछ भी कर ले।”
विनोद कुमार ने आरोप लगाया है कि थाना शिवराजपुर की पुलिस और दबंगों के बीच मिलीभगत है। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने पहली बार शिकायत की थी, तो पुलिस ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। उलटे उन्हें यह सलाह दी गई कि “गांव में ही आपस में सुलह कर लो।”
उनका कहना है कि यह ‘सुलह’ का सुझाव दरअसल दबंगों को बचाने का तरीका था। विनोद का दावा है कि संबंधित पुलिसकर्मी दबंगों से मिले हुए हैं और उन्हीं के इशारे पर कार्रवाई टाल रहे हैं।
स्थानीय ग्रामीणों ने भी यह बात स्वीकार की कि “पुलिस की मौजूदगी में भी निर्माण जारी रहा।” यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर कानून की परछाई में भी अवैध काम कैसे चल सकता है?
विनोद कुमार ने यह भी बताया कि जब उन्होंने अवैध निर्माण का विरोध किया, तो दबंगों ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी। उनका कहना है कि “मुझे कहा गया कि अगर ज्यादा बोले तो गांव लौटना मुश्किल कर देंगे।”
डर और धमकी के माहौल के कारण विनोद फिलहाल कानपुर के पनकी क्षेत्र में रह रहे हैं। उनके अनुसार, वे अपनी सुरक्षा के लिए गांव जाना भी छोड़ चुके हैं। यही कारण है कि दबंगों को कब्जा करने का मौका मिला।
उन्होंने कहा, “मैं हर बार प्रशासन से न्याय की उम्मीद करता हूं, लेकिन वहां सिर्फ फाइलें आगे बढ़ती हैं, न्याय नहीं।”
ग्राम लक्ष्मणपुर के कुछ ग्रामीणों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि इलाके में ऐसे कई छोटे-बड़े विवाद पहले भी हुए हैं, जिनमें “सत्ता या पुलिस से करीबी रखने वाले” लोग आम नागरिकों की जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं।
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, “पहले गांव में पंचायत के फैसले से झगड़े सुलझते थे, पर अब जो ताकतवर है वही सही साबित हो जाता है। गरीब या सामान्य व्यक्ति पुलिस के पास जाता है तो उल्टा वही परेशान हो जाता है।”
इस घटना ने ग्रामीण समाज में भय और असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है।
जब इस मामले में प्रशासनिक अधिकारियों से प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया गया, तो किसी ने भी औपचारिक बयान देने से परहेज़ किया।
एसडीएम कार्यालय के एक कर्मचारी ने केवल इतना कहा कि “शिकायत प्राप्त हुई है, जांच कराई जा रही है।”
हालांकि, पीड़ित पक्ष का कहना है कि “जांच” का यह बहाना कई महीनों से चलता आ रहा है, पर अब तक न तो निर्माण रुका और न ही कब्जा हटाया गया।
इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासन की निष्क्रियता और पुलिस पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि विनोद कुमार के नाम पर जमीन का वैध दस्तावेज़ मौजूद है, तो अवैध कब्जा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 441 और 447 के तहत अपराध है। इसके अतिरिक्त, धमकी देना धारा 506 के अंतर्गत दंडनीय है।
एडवोकेट संजय तिवारी कहते हैं, “इस तरह के मामलों में पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है कि वह मौके पर जाकर निर्माण को रोक दे और यथास्थिति बनाए रखे। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह कर्तव्य की उपेक्षा का मामला है।”
अपनी लड़ाई से थक चुके विनोद कुमार अब मुख्यमंत्री दरबार तक जाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “अगर मेरी सुनवाई कहीं नहीं हुई, तो मैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से सीधा मिलकर न्याय की मांग करूंगा।”
विनोद का कहना है कि उन्हें न तो राजनीतिक समर्थन है और न कोई रसूख, लेकिन वे अपनी जमीन किसी भी हालत में छोड़ने वाले नहीं हैं।
उन्होंने कहा, “यह जमीन मेरे पूर्वजों की विरासत है। अगर मैं इसे छोड़ दूं, तो यह आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा। मैं आखिरी सांस तक अपनी हक की लड़ाई लड़ूंगा।”
यह घटना केवल एक व्यक्ति के अन्याय की कहानी नहीं है। यह उस तंत्र पर सवाल उठाती है, जो आम आदमी की आवाज़ सुनने में असमर्थ या अनिच्छुक दिखता है।
ग्रामीण भारत में ऐसे असंख्य मामले हैं, जहां कमजोर वर्ग या साधारण नागरिक अपनी ही संपत्ति के लिए वर्षों तक संघर्ष करता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब पुलिस और प्रशासन ही निष्क्रिय दिखने लगें, तो लोगों का सिस्टम पर विश्वास डगमगाने लगता है।
विनोद कुमार का मामला न्याय प्रणाली के उस हिस्से को उजागर करता है, जो अब भी ग्रामीण भारत में सुस्त और प्रभावशाली लोगों के दबाव में झुका हुआ है।
यदि ऐसे मामलों में निष्पक्ष कार्रवाई नहीं होती, तो यह प्रवृत्ति समाज में ‘कानून से ऊपर ताकतवर’ की मानसिकता को और बढ़ावा देगी।
विनोद कुमार जैसे पीड़ितों के लिए अब उम्मीद केवल प्रशासनिक जागरूकता और न्यायिक हस्तक्षेप से ही बंधी है।
अब देखना यह है कि क्या शासन-प्रशासन जागेगा या यह मामला भी फाइलों के ढेर में दबकर रह जाएगा।
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राजकुमार वर्मा
राजकुमार वर्मा
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