विज्ञानी नें सिद्ध किया।।


मानव होकर दर्द न जाने,
धिक्कार है तेरे जीवन को।
जीवों का भोजन क्यों करता,
वध करवाता क्यों पशु धन को।।
जैसे शरीर में तेरे पीड़ा,
वैसी ही है हर जीवों में।
वंश नाश क्यों करवाता है,
दुष्ट बना है सजीवों में।।
तेरे यदि कांटा चुभ जाए,
दर्द से तू चिल्लाता है।
दूजे जीवों पर चले कटारी,
फिर क्यों खुशी मनाता है।।
जीनें का अधिकार दिया है,
भूमंडल के स्वामी नें।
क्यों आहार करे तू उनका,
फ़रमाया सतनामी नें ।।
सोंच ज़रा हे ज्ञानी मानव,
हत्या जीवों की बंद करो।
बनों दयालू इस पृथ्वी के,
सब मिलकर आनंद करो।।ईसा पूर्व बुद्ध भगवन् नें, पंचशील का ज्ञान दिया।
करुणा मैत्री का वाहक बन,
जन जन शील बखान किया।।
नाना प्रकार के अन्न दूध घी,
खानें को उपलब्ध किया।
शाकाहारी है तू प्राणी,
विज्ञानी नें सिद्ध किया।।

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