लोकसभा चुनाव के परिणाम से पता चलेगा कि कांग्रेस के प्रयोग कितने काम के रहे। चुनाव परिणाम कांग्रेस की नई प्रयोगशाला का भविष्य तय करेगा। अगड़ों की परवाह किए बिना कांग्रेस ने पिछड़ों पर दांव लगाया है।


लोकसभा चुनाव परिणाम कांग्रेस की नई प्रयोगशाला का भी भविष्य तय करेगा। क्योंकि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में दो अहम प्रयोग किए। एक तरफ अगड़ों की परवाह किए बिना पिछड़ा और दलित कार्ड खेला, तो दूसरी तरफ अयोध्या में राममंदिर नहीं जाकर अल्पसंख्यकों को भी भरोसा दिलाया।

खास बात यह रही कि यूपी में सिर्फ 17 सीटों पर लड़ते हुए राहुल गांधी को विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित करने का पूरा प्रयास किया गया। अब देखना यह होगा कि ये प्रयोग कितने सफल हुए हैं।

लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने से ठीक पहले कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। इसके जरिये पूरे देश में दलितों को जोड़ने का संदेश दिया गया। फिर राहुल गांधी ने न्याय यात्रा निकाली और जातीय जनगणना का मुद्दा जोरशोर से उठाया। 

उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष भले अजय राय बनाए गए, लेकिन उनकी कार्यकारिणी में पिछड़ों और दलितों को भरपूर भागीदारी देने की कोिशश हुई। प्रदेश में संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ सम्मेलन, दलित संवाद जैसे कार्यक्रमों के जरिये जातीय जनगणना कराने की पुरजोर वकालत की गई। 
 

न्याय यात्रा के दौरान प्रदेश में राहुल गांधी पूरी तरह से जातीय जनगणना और पिछड़ों, दलितों पर ही केंद्रित रहे। चुनाव के दौरान भी जातीय जनगणना के बहाने उन्होंने न सिर्फ भागीदारी का मुद्दा उठाया, बल्कि मीडिया पर भी हमलावर रहे। यह भी एक तरह की सियासी रणनीति का हिस्सा था, तो पिछड़ों, दलितों को संदेश देने का प्रयास भी।
 

चुनाव के बीच लखनऊ में राहुल गांधी के मुख्य आतिथ्य में हुए आरक्षण बचाओ, संविधान बचाओ सम्मेलन से दलित मतदाताओं की गोलबंदी करने का प्रयास हुआ। चौथे से लेकर सातवें चरण की 54 सीटों के चुनाव में कांग्रेस और सपा ने बूथ कमेटियों में भी सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया। 

 

ऐसे में देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में किए गए ये नए प्रयोग वोट की फसल काटने का हथियार बन पाए या नहीं। क्योंकि ये प्रयोग सफल हुए तो कांग्रेस के लिए नया रास्ता खुलेगा, लेकिन फेल हुए तो उसे नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।

 

अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाने की कोशिश
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय भले अयोध्या में दर्शन करने पहुंचे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के तौर पर राहुल गांधी और प्रियंका न तो दर्शन करने गए और न ही इस मुद्दे पर खुलकर कुछ बोले। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि उनके सामने अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाने की चुनौती थी और इस चुनाव में वे अल्पसंख्यकों को जोड़ने में सफल रहे।

 

यही वजह है कि सिर्फ 17 सीटें मिलने पर भी कांग्रेस सपा के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलती रही। क्योंकि वह दलित और अल्पसंख्यकों को अपना कोर वोटबैंक मानती है। इसके खिसकने के बाद से ही पार्टी रसातल की ओर गई।

 

वोटबैंक के लिहाज से भी अहम है यह चुनाव
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोटबैंक लगातार खिसकता रहा है। वर्ष 2014 में कांग्रेस को 7.53 फीसदी, भाजपा को 42.63 फीसदी, बसपा को 19.77 फीसदी और सपा को 22.35 फीसदी वोट मिला था। 

 

  • 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था। ऐसे में कांग्रेस को 6.36 फीसदी, भाजपा को 49.97 फीसदी और बसपा को 19.42 एवं सपा को 18.11 फीसदी वोट मिले। 

 

  • लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का पहली बार गठबंधन है। ऐसे में नए प्रयोगों के साथ ही गठबंधन की भी परीक्षा है। इससे पहले सपा और कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था, लेकिन वह सफल नहीं रहा।

 

मतदाताओं ने दिखाया है दम
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय कहते हैं, हमें भरोसा है कि हमारा नया प्रयोग पूरी तरह से सफल होगा। पार्टी के हर नेता और कार्यकर्ता ने मेहनत की है। गठबंधन में शामिल दलों ने पूरी निष्ठा से साथ दिया है। ऐसे में हम सीटें भी जीतेंगे और मत प्रतिशत भी बढ़ाएंगे। इस वोटबैंक के जरिये आगे की रणनीति तैयार करेंगे।
 

परिणाम कांग्रेस के भविष्य के लिए अहम होंगे
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने निश्चित तौर पर कई नए-नए प्रयोग किए हैं। इन प्रयोगों के जरिये कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी को नए अवतार में प्रस्तुत करने में सफल रही है। संविधान बचाने, जातीय जनगणना, सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे उठाने से राहुल गांधी के प्रति न केवल लोगों का आकर्षण बढ़ा है, बल्कि यह भरोसा भी बढ़ा कि वह सामाजिक बदलाव में भूमिका निभा सकते हैं। यह सोच वोटबैंक में तब्दील हुई या नहीं, यह तो मतगणना के बाद पता चलेगा। यह चुनाव परिणाम कांग्रेस के भविष्य के लिए अहम है। उसके नए प्रयोगों से जनता पर हुए असर का प्रमाण भी देगा। - वीरेंद्र सिंह यादव    पूर्व न्यायाधीश (हाईकोर्ट) एवं संस्थापक सामाजिक चेतना फाउंडेशन न्यास

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