जगदीश सिंह का दीपावली
"दीप जलाएं, लेकिन सच की लौ भी प्रज्वलित करें"
मेरे प्यारे देशवासियो,
आज जब हम दीपावली मना रहे हैं, तो हमें यह भी सोचना चाहिए कि आखिर किसके घर में सचमुच रोशनी है और किसके घर में अब भी अंधेरा पसरा हुआ है। क्या केवल शहरों की जगमगाहट से हम यह मान लें कि देश खुशहाल है?
जगदीश सिंह का दीपावली
"दीप जलाएं, लेकिन सच की लौ भी प्रज्वलित करें"
मेरे प्यारे देशवासियो, आज जब हम दीपावली मना रहे हैं, तो हमें यह भी सोचना चाहिए कि आखिर किसके घर में सचमुच रोशनी है और किसके घर में अब भी अंधेरा पसरा हुआ है। क्या केवल शहरों की जगमगाहट से हम यह मान लें कि देश खुशहाल है? नहीं, असली भारत तो गांवों में बसता है — उस भारत में जो अब भी बिजली, पानी, रोजगार और सम्मान जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
सरकारें आईं और गईं, पर किसान की दशा आज भी वही है। भाजपा सरकार ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि किसानों की आय दोगुनी की जाएगी, लेकिन वास्तविकता यह है कि किसान की उपज की कीमतें आधी रह गईं और लागत दोगुनी बढ़ गई।
खेती का संकट अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि अस्तित्व का संकट बन चुका है। सरकार बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों को टैक्स में छूट देती है, लेकिन जब गरीब किसान बिजली बिल में राहत या खाद की सब्सिडी की बात करता है, तो सरकार को घाटा याद आ जाता है। यह दोहरा रवैया ही आज के अंधकार का सबसे बड़ा कारण है।
किसानों की स्थिति और सरकारी उपेक्षा
मित्रो, आज जब किसान अपनी फसल उगाता है, तो सबसे पहले उसे मौसम की मार झेलनी पड़ती है — कभी सूखा, कभी बाढ़, कभी ओलावृष्टि। इसके बाद जब फसल तैयार होती है, तो मंडियों में बिचौलिए और व्यापारी उसकी मेहनत का मूल्य छीन लेते हैं। MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) केवल कागजों में दिखाई देता है।
सरकार ने किसानों के नाम पर कृषि कानून बनाए, लेकिन असल में वे कानून किसानों को कॉरपोरेट के हवाले करने का प्रयास थे। जब किसान दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक ठंड, बारिश और गर्मी झेलते हुए बैठा रहा, तब भाजपा सरकार ने संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिखाते हुए उन्हें “आंदोलनजीवी” कहकर अपमानित किया।
यह वही किसान है, जिसने महामारी के दौरान भी देश के हर घर में अन्न पहुँचाया। लेकिन बदले में उसे क्या मिला? — कर्ज का बोझ, — आत्महत्या की खबरें, — और सरकार की बेरुखी।
दीपावली के अवसर पर मैं देश के उन किसानों को नमन करता हूँ, जिनकी कुर्बानियों पर यह देश टिका है। और मैं कहना चाहता हूँ कि जब तक किसान की हालत सुधरेगी नहीं, तब तक दीपावली का असली अर्थ अधूरा रहेगा।
मजदूर और आम जनता की कठिनाइयाँ
अब मजदूर वर्ग की बात करें। आज निर्माण कार्यों से लेकर फैक्ट्रियों तक, हर जगह मजदूरों का शोषण चरम पर है। न्यूनतम मजदूरी कानून केवल किताबों में है, और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के पास कोई सुरक्षा नहीं। भाजपा सरकार ने श्रम कानूनों में जो बदलाव किए, वे मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करने वाले साबित हुए।
एक मजदूर सुबह से शाम तक मेहनत करता है, लेकिन उसके घर में न स्थायी नौकरी की सुरक्षा है, न पेंशन की गारंटी। क्या यही “अमृतकाल” है? क्या यही “विकास” है?
मित्रो, दीपावली का मतलब है — हर उस घर में उजाला पहुँचना जहाँ अभी तक अंधकार है। लेकिन भाजपा सरकार की नीतियाँ ऐसी हैं कि उजाला केवल पूंजीपतियों के महलों तक सीमित है, जबकि गरीबों के झोंपड़ों में आज भी अंधेरा कायम है।
व्यापारी और लघु उद्योगों की दुर्दशा
हमारे छोटे व्यापारी, दुकानदार, और लघु उद्योग संचालक भी इस नीति के शिकार हैं। नोटबंदी और जीएसटी के नाम पर भाजपा सरकार ने छोटे व्यापारियों की रीढ़ तोड़ दी। लाखों छोटे व्यवसाय बंद हो गए, करोड़ों लोगों की रोज़ी छिन गई।
सरकार “Ease of Doing Business” की बात करती है, लेकिन छोटे दुकानदार के लिए अब व्यापार करना “Survival of Doing Business” बन गया है।
जीएसटी के जाल में फंसे व्यापारी आज बैंक कर्ज और ब्याज की मार झेल रहे हैं। हर नीति अमीरों के लिए “राहत पैकेज” बन जाती है, जबकि गरीब और मध्यम वर्गीय व्यापारियों के लिए “कर्ज का जाल” बन जाती है।
युवा पीढ़ी और बेरोजगारी का संकट
और अब बात युवाओं की। भाजपा सरकार ने युवाओं को “रोजगार” नहीं, बल्कि “सपनों का व्यापार” बेचा है। हर साल लाखों डिग्रीधारी युवा निकलते हैं, लेकिन सरकारी भर्तियाँ या तो रद्द हो जाती हैं या वर्षों तक लटकाई जाती हैं।
अग्निवीर योजना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है — जहां युवाओं को 4 साल की नौकरी का झांसा देकर भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। देश का युवा बेरोजगारी के कारण हताश है, और इस हताशा को छिपाने के लिए सरकार “धर्म और जाति” की राजनीति को हवा दे रही है।
मित्रो, दीपावली आत्मचिंतन का पर्व है। हमें पूछना होगा — क्या यह वही भारत है जिसका सपना हमने देखा था? जहाँ रोजगार की जगह विज्ञापन हैं, शिक्षा की जगह प्रोपेगेंडा है, और विकास की जगह घोषणाएं हैं।
दलितों और वंचितों की स्थिति
आज भी दलित समाज को न्याय नहीं मिल पा रहा है। हर दिन अत्याचार की खबरें आती हैं — कहीं खेत में काम करने पर मारा जा रहा है, कहीं मंदिर में प्रवेश पर रोका जा रहा है। भाजपा सरकार के राज में संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ है, जिससे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है।
अंबेडकर जी ने कहा था कि “राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी जब सामाजिक और आर्थिक समानता होगी।” लेकिन भाजपा सरकार ने सामाजिक न्याय के नाम पर केवल दिखावा किया है।
आज जरूरत है कि समाज का हर वर्ग — किसान, मजदूर, व्यापारी, दलित और युवा — एक साथ आए और इस अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करे। दीपावली हमें यही सिखाती है कि जब सब दीये एक साथ जलते हैं, तो सबसे गहरा अंधकार भी मिट जाता है।
लोकतंत्र और मीडिया की भूमिका
लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत जनता की होती है। लेकिन आज सत्ता ने जनता की आवाज को दबाने के लिए मीडिया और एजेंसियों का इस्तेमाल एक औजार के रूप में किया है। पत्रकारों को धमकाया जा रहा है, विपक्ष की आवाज को कुचलने की कोशिश की जा रही है।
एक स्वस्थ लोकतंत्र में असहमति को जगह मिलनी चाहिए, लेकिन भाजपा सरकार आलोचना को दुश्मनी समझती है। दीपावली हमें यह सिखाती है कि रोशनी तभी कायम रहती है जब सत्य की लौ बुझने न दी जाए।
महंगाई और आम जनजीवन
देश की जनता आज महंगाई की मार झेल रही है। गैस सिलेंडर, बिजली बिल, खाद्य पदार्थ — सबकी कीमतें आसमान छू रही हैं। सरकार प्रचार में करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन आम नागरिक की जेब खाली है।
भाजपा सरकार ने “अच्छे दिन” का सपना दिखाया था, पर जनता को मिला केवल “महंगाई का अंधकार”। आज मध्यम वर्ग अपनी बचत से जीवन चला रहा है और गरीब अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कर्ज में डूब रहा है।
मित्रो, जब तक इस महंगाई का अंत नहीं होगा, तब तक दीपावली की मिठास अधूरी रहेगी।
एकता और संघर्ष का संकल्प
मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ कि अब समय आ गया है जब हमें जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर बाँटने वाली राजनीति को ठुकराकर एकजुट होना होगा। किसान कांग्रेस का यह संकल्प है कि हम हर गांव, हर खेत, हर श्रमिक के घर तक यह सन्देश पहुंचाएंगे कि दीपावली तभी सच्ची होगी जब न्याय हर घर तक पहुँचेगा।
आज जरूरत है एक ऐसे आंदोलन की, जो केवल नारे नहीं, बल्कि नीति बदले। हमें मिलकर एक ऐसा भारत बनाना है जहां किसान आत्महत्या न करे, मजदूर का बेटा स्कूल जाए, व्यापारी सम्मान से जिए, और युवा आत्मनिर्भर बने।
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ता
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