आधुनिक भारत में धम्म दीपावली (ज्ञान, करुणा और समता का प्रकाश) भारत विविध परंपराओं का देश है, जहाँ हर पर्व अपने भीतर गहरी सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना समेटे हुए है। दीपावली पारंपरिक रूप से अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व माना जाता है। किंतु आधुनिक भारत मे


आधुनिक भारत में धम्म दीपावली

(ज्ञान, करुणा और समता का प्रकाश)

भारत विविध परंपराओं का देश है, जहाँ हर पर्व अपने भीतर गहरी सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना समेटे हुए है। दीपावली पारंपरिक रूप से अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व माना जाता है। किंतु आधुनिक भारत में जब सामाजिक समानता और मानवता की चेतना प्रबल हुई, तब इसी दीपावली ने एक नया रूप धारण किया — “धम्म दीपावली”, जो अज्ञान पर ज्ञान और भेदभाव पर समता की विजय का प्रतीक बन गई।

धम्म दीपावली की ऐतिहासिक जड़ें

बौद्ध परंपरा के अनुसार, भगवान बुद्ध कार्तिक पूर्णिमा के दिन तावतिंस स्वर्ग से पृथ्वी पर लौटे थे, जहाँ वे अपनी माता माया देवी को उपदेश देने गए थे।
उनके आगमन पर लोगों ने दीप जलाकर स्वागत किया — यही परंपरा “दीपमालिका” कहलायी और आगे चलकर धम्म दीपावली बनी।

बुद्ध का यह आगमन केवल धार्मिक नहीं था; यह ज्ञान, करुणा और जागरण का प्रतीक था।

अशोक से अम्बेडकर तक: दीप से धम्म तक की यात्रा

सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध की विभीषिका देखकर हिंसा का त्याग किया और बौद्ध धर्म को अपनाया।
उनकी “धम्म विजय” ने दीपावली को एक नया अर्थ दिया — सत्ता का नहीं, बल्कि धर्म और करुणा का प्रकाश।

सदियों बाद, 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने नागपुर के दीक्षाभूमि में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया।
उनके इस ऐतिहासिक कदम ने भारत में सामाजिक परिवर्तन की एक नई ज्योति जलाई।
अम्बेडकर के अनुयायियों ने इस चेतना को दीपावली के प्रतीक से जोड़ा और इसे “धम्म दीपावली” के रूप में मनाना शुरू किया।

धम्म दीपावली का आधुनिक अर्थ

धम्म दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और सामाजिक जागरण का उत्सव है।
इस दिन बुद्ध, अशोक और अम्बेडकर की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए लोग यह संकल्प लेते हैं कि समाज से अन्याय, भेदभाव और अंधविश्वास को दूर किया जाए।

आज धम्म दीपावली के अवसर पर देशभर में नवबौद्ध समुदाय — विशेषकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में — ध्यान, धम्म प्रवचन, विचार गोष्ठियाँ, शिक्षा शिविर और सामाजिक सेवा के कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
कई संस्थाएँ गरीब बच्चों को किताबें बाँटती हैं, महिलाओं के लिए स्वावलंबन कार्यक्रम चलाती हैं और करुणा व समानता का संदेश फैलाती हैं।

धम्म दीपावली के मूल सिद्धांत

धम्म दीपावली पाँच मूल आधारों पर टिकी है —

प्रज्ञा (ज्ञान): अंधविश्वास और अज्ञान का अंत।

शील (नैतिकता): सत्य और संयम का पालन।

करुणा (दया): दूसरों के दुःख को समझना और मदद करना।

समता (समानता): जाति, धर्म, लिंग के भेद को मिटाना।

बंधुत्व (मैत्री): समाज में सहयोग और एकता का वातावरण बनाना।

इन सिद्धांतों के अनुरूप मनाई जाने वाली दीपावली ही धम्म दीपावली कहलाती है।

धम्म दीपावली बनाम पारंपरिक दीपावली

पक्षपारंपरिक दीपावलीधम्म दीपावली
मुख्य कारणभगवान राम की अयोध्या वापसीबुद्ध के पृथ्वी पर आगमन, अम्बेडकर की धम्म दीक्षा
प्रतीकलक्ष्मी पूजन, धन की प्राप्तिज्ञान, करुणा और समता
मुख्य उपासनापूजा, आरती, दीपदानध्यान, प्रवचन, सेवा
संदेशबुराई पर अच्छाई की विजयअज्ञान पर ज्ञान की विजय

आधुनिक समाज में महत्व

आज के भारत में जब असमानता, हिंसा और विभाजन की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, तब धम्म दीपावली का संदेश पहले से अधिक प्रासंगिक है।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्चा दीप वह नहीं जो तेल से जलता है, बल्कि वह है जो मनुष्य के भीतर विवेक, करुणा और न्याय का प्रकाश फैलाता है।

धम्म दीपावली हमें प्रेरित करती है कि हम केवल घरों को नहीं, बल्कि विचारों को भी प्रकाशित करें — ताकि समाज में ज्ञान और मानवता की ज्योति जलती रहे।

उपसंहार

“धम्म दीपावली” आधुनिक भारत की चेतना का प्रतीक है — जहाँ दीप का अर्थ बाहरी रोशनी नहीं, बल्कि भीतर की करुणा और प्रज्ञा है।
बुद्ध ने अज्ञान मिटाने की बात की, अशोक ने करुणा का राज्य स्थापित किया, और अम्बेडकर ने समानता का दीप जलाया।
इन तीनों की परंपरा आज भी “धम्म दीपावली” के रूप में समाज को यह संदेश देती है —

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