बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर दरार और खींचतान खुलकर सामने आ गई है. पार्टियों के बीच अंतिम समय तक सहमति नहीं बन पाई है. राज्य की 8 सीटों पर महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच फ्रेंडली मुकाबला हो रहा है और सभी सहयोगी पार्टी अपने-अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर रहे हैं. कुल मिलाकर बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन टूटता दिख रहा है.
लेकिन सवाल यह है कि बिहार चुनाव से पहले वोटर अधिकार यात्रा में एक साथ भाजपा, नीतीश कुमार और चुनाव आयोग पर हमला बोलने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव आज अलग-अलग राह पर क्यों चल पड़े हैं? सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बनना राहुल गांधी या फिर तेजस्वी यादव किसकी विफलता है? और महागठबंधन में दरार का चुनाव परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव से सबसे ज्यादा प्रभावित कौन होगा? तेजस्वी यादव या फिर राहुल गांधी.
वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताया और बार-बार दावा करते रहे कि बिहार चुनाव में सीएम पद के वो उम्मीदवार हैं, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक सीएम पद के उम्मीदवार के तेजस्वी यादव के दावे पर सहमति नहीं जताई है. इससे राजद के नेताओं में नाराजगी है. यह बात और तब बिगड़ गई और जब सीट बंटवारे को लेकर तेजस्वी यादव दिल्ली पहुंचे. राहुल गांधी से मुलाकात का समय मांगा, लेकिन उन्हें मिलने का समय नहीं मिला. इससे उनकी नाराजगी और भी बढ़ गई.
सीटों के बंटवारे पर बंटा महागठबंधन
इस बीच, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने राजद उम्मीदवारों को सिंबल देना शुरू कर दिया. उसके बाद धीरे-धीरे अन्य सहयोगी पार्टियों ने भी उम्मीदवारों का ऐलान करना शुरू कर दिया. महागठबंधन ने राज्य में दो चरणों वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए शुक्रवार को नामांकन बंद होने के बावजूद सीट बंटवारे की घोषणा नहीं की.
नतीजतन, कांग्रेस, राजद और वामपंथी दलों के उम्मीदवार पहले चरण के मतदान वाले कई निर्वाचन क्षेत्रों में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इस चरण में 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान होगा.
कुटुम्बा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के खिलाफ राजद द्वारा उम्मीदवार उतारने के फैसले ने तनाव को और बढ़ा दिया है औरंगाबाद जिले की कुटुम्बा सीट पर दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोटिंग होगी.
कलह के बीच पार्टियों ने बांटे टिकट
बढ़ती कलह के बीच, कांग्रेस ने कल रात पांच उम्मीदवारों की अपनी दूसरी सूची जारी की. इसके साथ ही पार्टी अब तक कुल 53 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुकी है. इस बीच, राजद ने आधिकारिक तौर पर नामों की घोषणा किए बिना ही उम्मीदवारों को अपना पार्टी चिन्ह आवंटित कर दिया है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने रोसड़ा, राजापाकर और बिहारशरीफ सहित कई निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे हैं.
राजगीर विधानसभा क्षेत्र में, भाकपा (माले) ने कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ एक उम्मीदवार को टिकट दिया है. इसी तरह, बेगूसराय की बछवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने भाकपा उम्मीदवार के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारा है. राजद ने वैशाली और लालगंज निर्वाचन क्षेत्रों में भी कांग्रेस के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
तनाव को और बढ़ाते हुए, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने घोषणा की है कि वह छह सीटों पर महागठबंधन उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, जबकि भारतीय समावेशी पार्टी (आईआईपी) ने सहरसा और जमालपुर से नामांकन दाखिल किया है.
एनडीए एकजुट, बिखर रहा है इंडिया गठबंधन
कांग्रेस के भीतर भी आंतरिक असंतोष सामने आया है, जिसमें पूर्व विधायक गजानंद शाही और विधायक छत्रपति यादव जैसे नेताओं ने नेतृत्व पर टिकट वितरण में अनियमितताओं का आरोप लगाया है. इस बीच, दूसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का काम जारी है, कल नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि है. इस चरण में 11 नवंबर को 20 जिलों के 122 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा.
ऐसे में महागठबंधन के बिखरने या बिखरने के आसार के साथ, कांग्रेस और विपक्षी नेता राहुल गांधी की एक मोर्चे और चुनावों का नेतृत्व करने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में एनडीए बिहार चुनाव में मजबूत होकर उभरा है और सभी सीटों पर सहमति बना ली है, लेकिन विपक्ष बिखरा हुआ नजर आ रहा है.
लेकिन एक तरह से बिहार से चुनावी राजनीति के अपने प्रयोग शुरू करने वाले नेता प्रतिपक्ष को अब भाजपा-कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम जैसे अपने पार्टी नेताओं के रहस्यमयी काव्यात्मक पोस्टों से निपटना पड़ रहा है. इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अपनी ताकत दिखा रहा है और लालू प्रसाद राहुल गांधी को गठबंधन मर्यादा का पाठ पढ़ा रहे हैं. इससे भी बदतर बात यह है कि अब झारखंड में कांग्रेस के कट्टर सहयोगी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने छह सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
राहुल के नेतृत्व पर पहले भी उठ चुके हैं सवाल
इससे पहले भी इंडिया गठबंधन के नेतृत्व को लेकर सवाल उठ चुके हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इंडिया गठबंधन के नेतृत्व उठा चुकी हैं, हालांकि एसआईआर और चुनाव आयोग के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियां चुनाव से पहले एकजुट दिख रही थी, लेकिन बिहार चुनाव से पहले जिस तरह से हरियाणा और दिल्ली की तरह विपक्षी पार्टियां बिखरती दिख रही हैं. उससे फिर से इंडिया गठबंधन के नेतृत्व पर सवाल उठना स्वाभाविक है.
भाजपा लगातार राहुल गांधी पर चुनाव में हारने से बचने के लिए लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाती रही है. ऐसे में यदि इस दरार के वजह से चुनाव परिणाम प्रभावित होता है तो तेजस्वी यादव का भविष्य तो दांव पर लगेगा ही. साथ ही राहुल गांधी के नेतृत्व भी सवाल उठेंगे और इसका परिणाम आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा, चाहे वो पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव हो या फिर तमिलनाडु का. क्योंकि इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस को अपनी सहयोगी पार्टियां टीएमसी और डीएमके का सहारा लेना लड़ेगा.
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