प्रश्न : दक्षिण के बाल्मीकि समाज से आने वाले पुरन सिंह की आत्महत्या को किस रूप में देखते है?


प्रश्न : दक्षिण के बाल्मीकि समाज से आने वाले पुरन सिंह की आत्महत्या को किस रूप में देखते है?
उत्तर: दलित आईएएस, आईपीएस, आईआरएस से लेकर तमाम अधिकारियो का शोषण एक आम बात है। नकारा नही जा सकता है। अब से नही बल्कि शुरू से होता आया है। उदाहरण दूँगा।

श्री बलवंत सिंह जी 1957 में आईएएस बने;

1.शोषण का शिकार हुए। 
2.चपरासी भी अलग गिलास रखता था। 
3.नौकरी में परेशान किया गया। 
4.हर स्तर पर छुआछूत का शिकार हुए। 
5.यह 1962 तक हुआ।

जब out of limit हो गया तब इस्तीफा देकर सहारनपुर अपने पैतृक घर आ गए। उंसके बाद आजीवन अम्बेकडरवादी आंदोलन से जुड़े रहे।

6.उनकी अँग्रेजी में अच्छी पकड़ थी। बौद्ध दर्शन पर काफी अच्छा अध्ययन था। कट्टर आंबेडकरवादी थे। इसी दौरान  किताबें लिखी।  Struggle  against  slavery,  An untouchable in IAS, Beauty of Himalya.

7.उनकी Struggle against Slavery यूरोप में काफी बिकी। फ्रांस में रॉयल्टी मिलती थी।।एक बार में अपने घर पर बैठक में सो रहा रहा था, उठा तो देखा कि बलवंत सिंह बराबर में सोफे पर बैठे है। मेरे बड़े भाई से मिलने आये थे जो उस समय यूरोप में रहते थे, तब उनसे मेरी मुलाकात हुई। उंसके बाद काफी बार हुई। चर्चा हुई।

8.श्री रामविलास पासवान जी के पास बार अश्वेत लोगो के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए अमरीका से आमंत्रण आया। उन्होंने हमनर घनिष्ठ श्री दीपक जाटव को वँहा भेजने का निर्णय लिया, लेकिन एक गाँव मे गुरु रविदास जी शोभायात्रा नही निकलने देने पर हुए केस के कारण वीजा नही मिला। तब दीपक जाटव जी की recomndation पर श्री बलवंत सिंह जी को अमरीका भेजा गया, उनकी।स्पीच से अश्वेत सन्गठन काफी प्रभावित हुए ओर काफी गिफ्ट तक दिए।

9.अमीर खान के "प्रसिद्ध छुआछूत कार्यक्रम" कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

अब आपको अपने प्रश्न का उत्तर इसी अमीर खान के सत्यमेव जयते से मिल जाएगा। जिसमे

10.कार्यक्रम छुआछूत पर था। वक्ता एससी थे। लेकिन बिल्कुल गांधीवादी व गाँधी प्रशँसा का कार्यक्रम बना दिया गया इंहा सभी वक्ता में से एक को छोड़कर किसी ने अम्बेडकर का नाम तक नही किया। किसी ने धन्यवाद तक नही दिया। लेकिन एक नए ऐसा नही किया। वो अकेला "बलवंत सिंह" जी थे। अगर बलवंत सिंह जी को कार्यक्रम से हटा दिया जाए तो ऐसा लगेगा कि यह कार्यक्रम छुआछूत के खिलाफ कम बल्कि गाँधी को अछूतों का मसीहा सिद्ध करने का एक प्रयास था। बलवंत सिंह जी ने  बाबा साहब का नाम लिया। अब उसमे वक्ताओं में;

"अधिकतर गैर चमार थे। बलवंत सिंह चमार जाति से थे"

निष्कर्ष
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मेरी उम्र 40 साल हो गयी है। जबसे हौश संभाली है तबसे लेकर आज तक सहारनपुर में एससी की चमार जाति को छोड़कर किसी अन्य जाति द्वारा बाबा साहब की शोभायात्रा निकालते हुए नही देखा है। कार्यक्रम करते हुए तक नही देखा है। सहारनपुर का बाबा साहब अम्बेडकर पार्क भी जाटव ने लाठी खाकर 1991 में बनवाया था, वो भी इसलिए सम्भव हुआ क्योंकि डीएम सागर जी भी जाटव थे।

बिना बाबा साहब;

1.मनोबल वाली जागृति कैसे आएगी?
2.एक समूह का निर्माण कैसे होगा, जो अलग पक्ष बनकर डटकर खड़ा हो सके?
3.जब न तो मनोबल होगा, न जागृति आएगी, तो समस्या का सामना करने का जज़्बा कैसे आएगा।

4.इसलिए बलवंत सिंह जी;

A. आंबेडकरवादी थे।
B. इससे उनका मनोबल उच्च था।
C. आईएएस जैसे पद को लात मारकर भी दृढ़ निश्चय के साथ सामाजिक कार्यो में लगे रहे। किताबे लिखी जो विदेशों तक में मशहूर हुई। 
D.उनमे साथ सबसे मजबूत पक्ष यह था कि;

"जिस उपजाति से वो आते थे, उस जाति ने अम्बेडकरवाद को लपक लिया। जिसके कारण समस्याओं से लड़ने का वातावरण उन्हें अपने इस सामाजिक माहौल से मिला"

5.जबकिं श्री पुरन सिंह जी अबसे नही बल्कि 2008 से शोषण झेल रहे थे। कई बार शिकायत किये। लेकिन उनकी उपजाति के सन्गठन उनकी आवाज बनकर दवाबकारी समूह नही बन सके, जिसके कारण उनका कंही न कंही हौशला टूटा।

में आगे से एससी की हर उपजाति के अधिकारी से कहूँगा की शोषण के मामले में यह सोचकर इतना उच्च मनोबल रखे की उंसके साथ देश के "18%" अनुसुचित जाति के सन्गठन खड़े है। वो दिमाग से अपनी उपजाति निकालकर चलेगा तो उसके हित मे रहेगा।  इसमे चाहे चमार जाति के सन्गठन हो या किसी भी उपजाति के। उनसे सीधा संपर्क रखे। उंसके शोषण के समय उंसकी उपजाति नही बल्कि जाति अथार्त एससी जाति ध्यान में रखी जानी चाहिए।

विकास कुमार जाटव

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Rajesh Kumar Siddharth

राजेश कुमार सिद्धार्थ अबतक मीडिया ग्रुप के संपादक-इन-चीफ हैं, जिन्हें 25 वर्षों से अधिक का पत्रकारिता जगत में अनुभव प्राप्त है, और जो अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता से अबतक मीडिया ग्रुप

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