सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जिन न्यायिक अधिकारियों ने सेवा में आने से पहले बार में 7 साल की प्रैक्टिस पूरी कर ली है, वे जिले में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे. यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया. पीठ ने कहा, "


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जिन न्यायिक अधिकारियों ने सेवा में आने से पहले बार में 7 साल की प्रैक्टिस पूरी कर ली है, वे जिले में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे.

यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया. पीठ ने कहा, "न्यायिक अधिकारी जो अधीनस्थ न्यायिक सेवा में भर्ती होने से पहले बार में 7 वर्ष का अनुभव पूरा कर चुके हैं, वे सीधी भर्ती प्रक्रिया में जिला न्यायाधीशों के पद के लिए चयन प्रक्रिया में जिला न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के हकदार होंगे."

पीठ ने कहा कि जिला न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता आवेदन के समय देखी जानी चाहिए.

"यद्यपि अनुच्छेद 233(2) के तहत केंद्र या राज्य की न्यायिक सेवा में पहले से कार्यरत किसी व्यक्ति के लिए जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए कोई पात्रता निर्धारित नहीं है, फिर भी समान अवसर प्रदान करने के लिए, हम निर्देश देते हैं कि सेवाकालीन उम्मीदवार के रूप में आवेदन करने वाले उम्मीदवार के पास न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता के रूप में संयुक्त रूप से 7 वर्ष का अनुभव होना चाहिए."

पीठ ने कहाकि कोई व्यक्ति, जो न्यायिक सेवा में रहा हो या है और जिसके पास अधिवक्ता या न्यायिक अधिकारी के रूप में 7 वर्ष या उससे अधिक का संयुक्त अनुभव हो, संविधान के अनुच्छेद 233 के तहत जिला न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में विचार और नियुक्ति के लिए पात्र होगा.

पीठ ने कहा, "समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए, हम आगे निर्देश देते हैं कि अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों, दोनों के लिए जिला न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में विचार और नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु आवेदन की तिथि को 35 वर्ष होगी."

शीर्ष न्यायालय ने राज्य सरकारों को सेवारत उम्मीदवारों के लिए पात्रता निर्दिष्ट करने वाले नियम बनाने का निर्देश दिया. शीर्ष न्यायालय ने इस दावे को खारिज कर दिया कि अनुच्छेद 233(2) सीधी भर्ती के लिए 25% कोटा आरक्षित करता है.

पीठ ने कहा कि न्यायिक सेवा के सदस्यों को अन्याय का सामना करना पड़ा है, और स्पष्ट किया कि उसका फैसला फैसले की तारीख से लागू होगा, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहां उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित किए हों.पीठ ने कहा कि सत्य नारायण सिंह से लेकर धीरज मोर तक के निर्णयों द्वारा की गई व्याख्या, हमारे विचार में, संविधान के अनुच्छेद 233 के खंड (2) के प्रावधानों के साथ पूरी तरह से असंगत है. पीठ ने कहा, "इस प्रकार यह पाते हुए कि उपरोक्त मामलों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून अनुच्छेद 233 के प्रावधानों की सही व्याख्या नहीं करता है, यदि हम कानूनी स्थिति को सही करने में विफल रहते हैं, तो हम दशकों से किए जा रहे अन्याय को जारी रखेंगे."

अनुच्छेद 233 में कहा गया है, "किसी भी राज्य में जिला न्यायाधीशों के रूप में व्यक्तियों की नियुक्ति, तथा उनकी पदस्थापना और पदोन्नति, उस राज्य के संबंध में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से उस राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी." इसमें आगे कहा गया है, "कोई व्यक्ति जो पहले से ही संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, केवल तभी जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य होगा यदि वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रहा हो और उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्ति के लिए उसकी सिफारिश की गई हो."

सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला 12 अगस्त, 2025 को इस प्रश्न पर आए संदर्भ पर आया कि क्या सात वर्षों तक अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस करने के बाद अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में चयनित न्यायिक अधिकारी भी जिला न्यायाधीशों के पद पर सीधी भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो केवल अनुभवी बार सदस्यों के लिए उपलब्ध है.

पीठ में न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, अरविंद कुमार, सतीश चंद्र शर्मा और के विनोद चंद्रन भी शामिल थे. धीरज मोर बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय (2020) मामले में 19 फरवरी, 2020 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिकाएं दायर की गई थीं.

तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था कि किसी राज्य की न्यायिक सेवा के सदस्यों को पदोन्नति या सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है.

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने 12 सितंबर को कहा था कि वह 23 सितंबर से इन मुद्दों पर सुनवाई शुरू करेगी और 25 सितंबर तक तीन दिनों तक दलीलें सुनेगी. पीठ ने कहा था कि उसे इस बात की जांच करनी होगी कि क्या बार में प्रैक्टिस और उसके बाद न्यायिक सेवा के संयुक्त अनुभव को पात्रता में गिना जा सकता है.

एडीजे के पद, जो उच्च न्यायिक सेवा का हिस्सा हैं, निचले न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं. ये पद उन वकीलों की सीधी भर्ती के माध्यम से भी भरे जाते हैं जिनके पास बार में कम से कम सात साल का अनुभव हो

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