बहुजन संगठक – संक्षिप्त इतिहास 1. स्थापना और उद्देश्य “बहुजन संगठक” समाचार पत्र की शुरुआत 1970 के दशक के उत्तरार्ध या 1980 के प्रारंभिक काल में हुई थी। इसका प्रकाशन मान्यवर कांशीराम साहब के नेतृत्व में हुआ, जो उस समय BAMCEF (Backward and Minority Communities Employees Federation) संगठन के


बहुजन संगठक – संक्षिप्त इतिहास

1. स्थापना और उद्देश्य

“बहुजन संगठक” समाचार पत्र की शुरुआत 1970 के दशक के उत्तरार्ध या 1980 के प्रारंभिक काल में हुई थी।
इसका प्रकाशन मान्यवर कांशीराम साहब के नेतृत्व में हुआ, जो उस समय BAMCEF (Backward and Minority Communities Employees Federation) संगठन के माध्यम से सामाजिक चेतना फैलाने में जुटे थे।

इस समाचार पत्र का मुख्य उद्देश्य था:

बहुजन समाज को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना,

सामाजिक अन्याय और असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाना,

शिक्षित कर्मचारियों और बुद्धिजीवियों को सामाजिक आंदोलन से जोड़ना।

2. विचारधारा और नारा

“बहुजन संगठक” का नारा था –

यह समाचार पत्र डॉ. भीमराव आंबेडकर, महात्मा फुले, पेरियार ई.वी. रामास्वामी, और शाहूजी महाराज की विचारधारा पर आधारित था।

इसने “मनुवादी व्यवस्था”, “जातिगत भेदभाव” और “राजनैतिक शोषण” के खिलाफ वैचारिक आंदोलन चलाया।

3. प्रकाशन और संपादन

मुख्य संपादक: मान्यवर कांशीराम साहब

संपादन सहयोग: मान्यवर दयानंद भारती, आर.सी. सिंह, और अन्य बहुजन विचारक

यह पत्र BAMCEF के माध्यम से विभिन्न राज्यों में वितरित होता था।

इसे सदस्यता आधारित प्रणाली से चलाया जाता था, ताकि बहुजन समाज के लोग स्वयं अपने आंदोलन को वित्तीय रूप से सहयोग दें।

4. प्रमुख विषय-वस्तु

समाचार पत्र में निम्नलिखित विषयों पर लेख और रिपोर्ट प्रकाशित होती थीं:

सामाजिक अन्याय, भेदभाव और उत्पीड़न के उदाहरण

सरकारी नीतियों पर बहुजन दृष्टिकोण

बहुजन समाज के शिक्षित वर्ग की भूमिका

आंबेडकरवादी आंदोलनों और संगठनों की गतिविधियाँ

राजनीतिक चेतना और आत्म-संगठन के आह्वान

5. प्रभाव और विरासत

“बहुजन संगठक” ने कांशीराम साहब के अगले दो प्रमुख संगठनों की नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाई:

DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) – 1981 में

BSP (बहुजन समाज पार्टी) – 1984 में

इस पत्र के माध्यम से फैलाई गई वैचारिक चेतना ने हजारों युवाओं, कर्मचारियों और समाजसेवियों को आंदोलन से जोड़ा।

6. निष्कर्ष

“बहुजन संगठक” केवल एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि एक विचारधारा का दस्तावेज़ था।
इसने भारत में सामाजिक परिवर्तन, संगठन और राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा तय की।

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