दीपावली: प्रकाश का उत्सव, आत्मा का आलोक
भारत की सभ्यता जितनी प्राचीन है, उतनी ही उज्जवल भी। इस भूमि पर ऋतुओं की तरह ही त्यौहार आते हैं—हर त्यौहार अपने साथ जीवन की नई चेतना, नई ऊर्जा और एक गहन प्रतीक लेकर आता है। इन्हीं में सबसे प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है दीपावली, जिसे भारतवासी केवल एक धार
दीपावली: प्रकाश का उत्सव, आत्मा का आलोक
भारत की सभ्यता जितनी प्राचीन है, उतनी ही उज्जवल भी। इस भूमि पर ऋतुओं की तरह ही त्यौहार आते हैं—हर त्यौहार अपने साथ जीवन की नई चेतना, नई ऊर्जा और एक गहन प्रतीक लेकर आता है। इन्हीं में सबसे प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है दीपावली, जिसे भारतवासी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्जागरण के रूप में मनाते हैं। दीपावली का अर्थ है—दीपों की पंक्ति। यह केवल मिट्टी के दीयों का उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर जगे प्रकाश का प्रतीक है।
1. दीपावली का शाब्दिक और सांस्कृतिक अर्थ
‘दीपावली’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है—‘दीप’ अर्थात् प्रकाश और ‘आवली’ अर्थात् श्रृंखला या पंक्ति। यानी दीयों की श्रृंखला। जब अमावस्या की अंधेरी रात में असंख्य दीप जल उठते हैं, तो केवल घर ही नहीं, हृदय भी जगमगा उठता है। यह दृश्य केवल प्रकाश का नहीं, प्रतीकात्मक विजय का है—अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की, असत्य पर सत्य की, और निराशा पर आशा की।
भारत के हर कोने में दीपावली का स्वरूप भिन्न है, पर भावना एक ही—“प्रकाश फैलाओ।” यह त्योहार धार्मिक सीमाओं से परे जाकर सामूहिक आनंद और सामाजिक एकता का संदेश देता है।
2. पौराणिक आधार और कथाएँ
दीपावली की जड़ें भारतीय पौराणिक परंपराओं में गहराई तक समाई हैं। इसके साथ जुड़ी अनेक कथाएँ हैं जो विभिन्न युगों और परंपराओं में फैली हैं।
(क) रामायण की कथा
सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम जब 14 वर्ष के वनवास और रावण-वध के बाद अयोध्या लौटे, तो नगरवासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। उस दिन कार्तिक अमावस्या थी, और तभी से यह दिन दीपों का पर्व बन गया। यह लौटती हुई सत्य की विजय थी, धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक।
(ख) लक्ष्मी और विष्णु कथा
अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन देवी लक्ष्मी का समुद्र मंथन से प्रकट होना हुआ था। इसलिए दीपावली को लक्ष्मी पूजन दिवस भी कहा जाता है। लोग अपने घरों की सफाई करके, दीपक जलाकर, माता लक्ष्मी का स्वागत करते हैं ताकि उनके घर में धन, वैभव और समृद्धि का प्रवेश हो।
(ग) भगवान कृष्ण और नरकासुर
कृष्ण ने इस दिन नरकासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध किया था। इस कारण दक्षिण भारत में इसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है—अर्थात् बुराई के अंत का प्रतीक।
(घ) जैन और सिख परंपरा
जैन धर्म में, दीपावली का दिन भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह आत्मज्ञान और मोक्ष का पर्व है। सिख परंपरा में, यह गुरु हरगोबिंद सिंह जी के कारावास से मुक्ति दिवस (बंदी छोड़ दिवस) के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार दीपावली का संबंध केवल हिंदू परंपरा से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्वतंत्रता और मानवता के उदय से है।
3. पांच दिवसीय पर्व का महत्व
दीपावली केवल एक दिन का त्योहार नहीं, बल्कि पाँच दिनों की आनंदयात्रा है, जो जीवन के विविध आयामों को स्पर्श करती है।
पहला दिन – धनतेरस
यह दिन स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। लोग इस दिन सोना, चाँदी या बर्तन खरीदते हैं। आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि जी का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए इसे स्वास्थ्य दिवस भी माना जाता है।
दूसरा दिन – नरक चतुर्दशी
जिसे छोटी दीपावली कहते हैं। यह दिन बुराई, आलस्य, और अशुद्धि के नाश का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस दिन तेल से स्नान करने से नकारात्मकता दूर होती है।
तीसरा दिन – मुख्य दीपावली
इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है। परिवार के लोग मिलकर दीप जलाते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं। यह दिन भक्ति, प्रेम और कृतज्ञता का पर्व है।
चौथा दिन – गोवर्धन पूजा
यह दिन श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में मनाया जाता है। यह प्रकृति के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन का संदेश देता है।
पाँचवाँ दिन – भाई दूज
इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। यह पारिवारिक प्रेम और संबंधों की गहराई का प्रतीक है।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से दीपावली
दीपावली केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का पर्व है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, अपने-अपने पुराने झगड़े भूल जाते हैं, और नए सिरे से रिश्तों की शुरुआत करते हैं। व्यापारी वर्ग के लिए यह नववर्ष का आरंभ माना जाता है। पुराने खाते बंद कर नए खातों की शुरुआत होती है—यानी यह आर्थिक पुनरारंभ का प्रतीक है।
ग्रामीण भारत में यह त्यौहार कृषि चक्र से भी जुड़ा है। यह फसल कटने और नई आशाओं के आने का संकेत देता है। शहरों में यह व्यापारिक गतिविधियों का चरम समय होता है। रोशनी, सजावट, मिठाइयाँ, उपहार—all मिलकर एक सामूहिक आनंद वातावरण बनाते हैं।
5. आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता
दीपावली का सबसे बड़ा संदेश “अंतर के अंधकार को मिटाना” है। अमावस्या की रात अंधेरी होती है, पर एक दीपक जलता है और अंधकार पीछे हट जाता है। यही दीपावली का रहस्य है—हर व्यक्ति अपने भीतर का दीपक जलाए, अपने अंतःकरण को शुद्ध करे, और अपने कर्मों से संसार को प्रकाशित करे।
जैसे मिट्टी का दिया अपने भीतर का तेल जलाकर प्रकाश देता है, वैसे ही मनुष्य को भी स्वार्थ का त्याग करके दूसरों के लिए जीना चाहिए। यही सच्चा धर्म, यही सच्ची दीपावली है।
6. पर्यावरण और आधुनिक युग की चुनौतियाँ
समय के साथ दीपावली का स्वरूप भी बदलता गया है। आज यह उत्सव कभी-कभी अत्यधिक उपभोग, प्रदूषण और शोर का रूप ले लेता है। मगर दीपावली का असली अर्थ पटाखों की आवाज़ में नहीं, बल्कि शांत प्रकाश में है। हमें ऐसी दीपावली मनानी चाहिए जो प्रकृति के प्रति संवेदनशील हो। मिट्टी के दीए, जैविक रंग, प्राकृतिक सजावट और सादगी में भी वही आनंद है जो भव्यता में मिलता है।
7. साहित्य, कला और दीपावली
भारतीय साहित्य में दीपावली पर अनेकों कविताएँ, निबंध और गीत लिखे गए हैं। महाकवि जयशंकर प्रसाद से लेकर हरिवंश राय बच्चन, मैथिलीशरण गुप्त और आधुनिक कवियों तक, सभी ने दीपावली को आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक बताया है। चित्रकला, नृत्य, संगीत और नाटक—all में दीपावली का उल्लास झलकता है। यह पर्व भारतीय रचनात्मकता को नई ऊर्जा देता है।
8. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
दीपावली का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इस समय बाजारों में चहल-पहल बढ़ जाती है—कपड़े, मिठाइयाँ, सजावट, उपहार, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि की बिक्री में वृद्धि होती है। यह समय रोजगार, व्यापार और सामाजिक सहयोग का भी होता है। लोग गरीबों और जरूरतमंदों को दान देते हैं। कई संस्थाएँ “एक दीप गरीब के घर” अभियान चलाती हैं, जिससे समाज में समानता और संवेदना की भावना पनपती है।
9. भारतीय संस्कृति का वैश्विक संदेश
आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं रही। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के अनेक देशों में भी यह पर्व उत्साह से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने भी दीपावली को अंतरराष्ट्रीय पर्व के रूप में मान्यता दी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दीपावली केवल हिंदू धर्म का नहीं, बल्कि मानवता का पर्व बन चुकी है—जो यह कहता है कि “जहाँ भी अंधकार है, वहाँ एक दीप जलाओ।”
10. निष्कर्ष: प्रकाश बनो, परोपकार करो
दीपावली हमें यह सिखाती है कि जैसे दीया अंधकार में जलता है और स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, वैसे ही हमें भी अपने भीतर का प्रकाश जगाना चाहिए। यह त्योहार केवल सजावट का नहीं, बल्कि आत्म-विकास का अवसर है। अगर हर व्यक्ति अपने भीतर के लोभ, ईर्ष्या और अहंकार को मिटाकर प्रेम, करुणा और सत्य का दीप जलाए—तो संसार स्वयं उज्जवल हो जाएगा।
इसलिए कहा गया है—
“तमसो मा ज्योतिर्गमय।” (हे ईश्वर, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल।)
दीपावली इसी प्रार्थना का साकार रूप है—एक ऐसी रात जब हर घर, हर हृदय और हर आत्मा में प्रकाश का पर्व मनाया जाता है।
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प्रोपराइटर - श्री सत्यनारायण जोया व मुकेश जोया( पत्रकार)
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