महमूदाबाद में दुर्गा महोत्सव में राष्ट्रीय संरक्षक एस एस दिनकर का हुआ सम्मान
महमूदाबाद के मोहल्ला रमुवापुर में विश्व मानवाधिकार कानून एवं अपराध नियंत्रण ट्रस्ट के राष्ट्रीय संरक्षक एस एस दिनकर का सम्मान हुआ।
प्रतिनिधित्व( आरक्षण) Representation क्यों प्राप्त हुआ । ✍️???????? *आज के डॉ. अम्बेडकर संदेश में पढ़ें।*
प्रतिनिधित्व( आरक्षण) Representation क्यों प्राप्त हुआ ।
✍️???????? *आज के डॉ. अम्बेडकर संदेश में पढ़ें।*
✍️ *(बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङमय खंड -38से*
*???? पृष्ठ संख्या- 228से 236तक*
???? विषय - *जब तक इसदेश में अंग्रेज सरकार है,हमारे हाथ में सत्ता आना संभव नहीं?*
*✍️(पहला गोलमेज सम्मेलन 1930 में लंदन में आयोजित किया गया था।*
????इस परिषद के लिए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को आमंत्रित किया गया था। 20 नवंबर 1930 के दिन हुए इस पहले गोलमेज सम्मेलन में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा किया गया पहला भाषण कई मायनों में क्रांतिकारक साबित हुआ। इंग्लैंड के अखबारों ने उनके भाषण पर विशेष गौर किया।
संपादक)
*डॉ. अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा,*
*????️अध्यक्ष महोदय,*
मैं और मेरे सहयोगी रावबाहदुर श्रीनिवासन दलित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में यहां उपस्थित हुए हैं। भारतीय संविधान के नवीनीकरण के बारे में सोचते हुए यहां सिद्धांततः मैं दलित वर्ग का दृष्टिकोण ध्यान में रखते हुए बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं।
*????????इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करना मेरे और मेरे सहयोगी के लिए सम्मान की बात है। यह दृष्टिकोण चार करोड़ तीस लाख लोगों का अथवा अंग्रेजों के शासन वाले भारत के एक पंचमांश लोगों का नजरिया है।*
????यह दलित लोगों का वर्ग है और मुसलमानों के वर्ग से वह स्पष्ट रूप से अलग वर्ग है। हिंदू समाज के साथ उसे जोड़ कर भला ही देखा जाता हो, लेकिन किसी भी मायने में वह उस समाज का अभिन्न अंग नहीं है।
*????????दलित वर्ग का अलग अस्तित्व है,*
????इतना ही नहीं तो हिंदुओं ने द्वेष भावना के कारण उनका एक अलग सामाजिक दर्जा तय किया हुआ है, जो हिंदू समाज की किसी भी अन्य जाति से बिल्कुल अलग है।
????हिंदू धर्म में कुछ जातियां ऐसी भी हैं, जिन्हें दोयम या निचला दर्जा प्राप्त है, *परंतु दलित वर्ग का दर्जा सबसे अलग है।* उसे भूदास और गुलाम के बीच का दर्जा प्राप्त है। भूदास और गुलामों पर स्पर्श की पाबंदी नहीं लगाई गई थी। *किन्तु दलितों के स्पर्श पर पाबंदियां हैं।* इसलिए गुलाम और भूदासों से भी दलितों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इस कारण अगर कोई भयंकर बात हुई हो तो वह यह कि उन पर गुलामी लाद दी गई। उनके मानवी क्रियाकलापों पर सीमाएं तान दी गई। ऐसा नहीं कि केवल उनके सार्वजनिक जीवन पर ही अस्पृश्यता के इस ठप्पे का असर होता है, समानता के मौके मिलने से भी उन्हें वंचित किया जाता है और मानव का अस्तित्व ही जिस पर आधारित है उन मूलभूत नागरी अधिकारों से उन्हें वंचित किया गया।
*????????????????इंग्लैंड या फ्रांस की सम्पूर्ण जनसंख्या जितनी जिस वर्ग की जनसंख्या है, वे जीवन-कलह में इतने संकटों.विघ्नों से घिरे हैं कि परिणामतः मुझे यकीन है कि राजनीतिक समस्या को हल करने के सही रास्ते तक जाएगा ही। मुझे उम्मीद है कि इस प्रश्न को जितनी जल्दी हो सके हल करने की जिम्मेदारी यह परिषद स्वीकारेगी।*
????जहां तक संभव हो सके, मैं इस समस्या को संक्षेप में प्रस्तुत करने की कोशिश करूगा। मैं बस यह बताना चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो सके भारत में प्रचलित नौकरशाही को रद्द कर
*✍️लोकतंत्र की मांग*
*लोगों की,*
*लोगों के द्वारा*
*और लोगों के लिए चलाई जाने वाली, सरकार स्थापन की जाए।*
????मुझे यकीन है कि दलित वर्ग के दृष्टिकोण से मेरे इस विधान के बारे में कुछ लोगों को अचरज महसूस होगा। क्योंकि दलित वर्ग को ब्रिटिश शासकों के साथ जोड़ने वाला धागा बिल्कुल अलग किस्म का है।
????धर्माध हिंदुओं ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी दलितों पर जो अन्याय किए, उनका जो दमन किया उनसे आंशिक छुटकारा दिलाने वाले मुक्तिदाता के रूप में उन्होंने अंग्रेजों का स्वागत ही किया।
???? हिंदू मुसलमान और सिक्खों के खिलाफ होकर अंग्रेजों के पक्ष में लड़ कर उन्होंने भारत का साम्राज्य उन्हें प्राप्त करवा दिया। इसके बदले में दलितों के विश्वस्त के रूप में भूमिका निभाने का वचन भी अंग्रेजों ने दिया था।
*इस तरह दोनों के बीच जो घनिष्ठ संबंध था,*
????उसकी पृष्ठभूमि पर दलितों के मन में जो यह परिवर्तन आया वह एक लक्षणीय बदलाव की तरफ संकेत कर रहा है। इस मतपरिवर्तन के कारणों को ढूंढना मुश्किल नहीं है।
???? केवल बहुमत के हाथों अपना भविष्य सौंप देना है. इस इच्छा के कारण हमने यह निर्णय नहीं लिया है।
???????? आप जानते ही हैं कि भारत का बहुमत और मैं जिस अल्पमत का प्रतिनिधि हूं, उनमें कभी बेहतर रिश्ते नहीं रहे। हमने अपना निर्णय अलग से लिया है। हम जिन हालात में फंसे हैं, उनके संदर्भ में वर्तमान सरकार को हमने जांचा-परखा है और अच्छी सरकार के लिए जो आवश्यक होते हैं, वे मूलतत्व इस सरकार में नहीं हैं, यह हमने पाया है। आज के हमारे हालात और ब्रिटिशराज से पहले का भारतीय समाज की आपस में तुलना करें तो पता चलता है कि पुराने समाज में हमारे हिस्से जो दुर्भाग्यपूर्ण हालात आए थे, उनसे निकल कर आगे की ओर बढ़ने के बजाय हम बस कालक्रमण कर रहे हैं।
*✍️प्रश्न*
*????????1,ब्रिटिशों के आने से पहले अस्पृश्यता के कारण हम अत्यंत घिनौने हालात में दिन बिता रहे थे. ये हालात दूर करने के लिए अंग्रेज सरकार ने क्या कुछ किया है?*
*???? ????2,अंग्रेजों के आने से पहले हमें गांव के कुएं पर पानी भरने के लिए पाबंदी थी। कुओं पर पानी भरने का अधिकार क्या अंग्रेज शासन ने हमें दिलाया?*
*????????3,अंग्रेजों के आने से पहले हम मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकते थे, क्या अब हम मंदिरों में जा सकते हैं?*
*????????4,अंग्रेजों के आने से पहले पुलिस में हमारी भर्ती की इजाजत नहीं थी उस पर पाबंदी लगी हुई थी।क्या अब अंग्रेज सरकार हमें पुलिस में प्रवेश दिला रही है?*
*????????5,अंग्रेजों के आने से पहले हमें सेना में प्रवेश नहीं दिया जाता था। क्या ये सरकार हमें सेना में नौकरी करने की इजाजत देती है? क्या आज यह क्षेत्र हमारे लिए खुला है?*
*????????6, इनमें से किसी भी चलाई, वह केवल इसलिए कि वे अंग्रेज थे। मैं बड़ी खुशी से यह बात मानता हूँ सवाल का हम हां में जवाब नहीं दे सकते हैं। इतने लंबे अर्से तक जिन्होंने राजसत्ता कि उन्होंने हमारे लिए कुछ अच्छे काम भी किए हैं। लेकिन हमारे हालात में उन्होंन कोई बुनियादी बदलाव नहीं किए। समाज की जो व्यवस्था थी, उसी को उन्होंने सुरक्षा प्रदान की।*
*✍️उदाहरण*
???????? एक चीनी दर्जी को नमुने के तौर पर एक पुराना कोट दिया गया था जिसमें कुछ सिलवटें और छेद पड़े हुए थे। उसने हुबहू नया कोट बनवाते हुए उस पर ठीक जगह पर सिलवटें और छेद भी बना डाले।
????????ठीक इसी तरह का ब्रिटिश सरकार का इस बारे में कार्य रहा है। ब्रिटिशों ने (150 )ड़े सौ सालों तक इस देश पर राज किया, किन्तु हमारे दुःख, खुले जख्मों की तरह वैसे के वैसे ही रहे। उनका कोई इलाज नहीं किया गया।
????????अंग्रेजों ने हमारे प्रति सहानुभूति व्यक्त नहीं की या वे हमारी स्थितियों के बारे में उदासीन रहे इस कारण हम उन्हें दोष दे रहे हैं ऐसा नहीं है। हमने पाया कि हमारी समस्याओं का तोड़ निकालने में वे पूरी तरह अकार्यक्षम हैं।
???????? सिर्फ उदासीनता की समस्या होती, तो हम कह सकते थे कि वह तात्कालिक हो सकती है। उसके कारण फिर हमारी राय में कोई गंभीर बदलाव नहीं आते। लेकिन हालात का गहराई से विश्लेषण करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है, कि यह केवल उदासीनता का मामला नहीं है, अपने कर्तव्य को न जान पाने की अकार्यक्षमता के कारण ही ऐसा हुआ है।
*✍️अंग्रेज सरकार पर दो बंधन*
*???????? दलित वर्ग को लगता है कि भारत की अंग्रेज सरकार पर दो गंभीर तरह के बंधन हैं।*
*???? पहले बंधन* का स्वरूप अंतस्थ है और जो लोग अधिकार के पदों पर हैं, उनकी भूमिका, उनके हितसंबंध और उनकी प्रेरणाओं के कारण ये बंधन निर्माण हुए हैं। अंग्रेज सरकार हमारे मसले को सुलझाने में हमारी मदद नहीं कर सकती। इसलिए नहीं बल्कि वे अगर मदद करते हैं, तो उनके कृत्य, उनकी भूमिका, उनके हितसंबंध और उनकी प्रेरणाओं के साथ मेल नहीं खाते इसलिए वे हमारी मदद नहीं कर सकते। अगर इस तरह कोई उपाय किया तो उसके लिए हिंदू समाज की ओर से तीव्र विरोध होगा, इस बात की आशंका भी उन्हें उपाय करने से रोकता है।
????भारतीय समाज के मर्मस्थान पर वार करने वाले दोषों को खत्म करना जरूरी है, यह बात अंग्रेज सरकार जान गई है। *इन्हीं दोषों की वजहों से दलित वर्ग का जीवन हजारों सालों से सड़ता रहा है,*
????????यह वे जानते हैं। अंग्रेज सरकार को इस बात का अहसास है कि भारत के जमींदार बहुजन समाज को बेरहमी से निचोड़ते रहे हैं। पूंजीपति भी मजदूर वर्ग को जीने लायक मजदूरी नहीं देते और न काम परसहूलियतें उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन इनमें से किसी भी कुव्यवस्था, रीति-रिवाजों के बारे में कुछ करने की
*???? ????पहल सरकार की नहीं, यह बड़े दुःख की बात है। सरकार क्यों नहीं कुछ करती?*
*????????जो करना चाहें वह करने के लिए क्या उनके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं हैं?*
???? ऐसा बिल्कुल नहीं है। सामाजिक और आर्थिक जीवन के प्रचलित दरें को उन्होंने केवल इसलिए छोडना, उसे धक्का लगाना, इसमें बदलाव करना उचित नहीं समझा क्योंकि उन्हें डर था कि हितसंबंधी वर्ग द्वारा इसका तीव्र विरोध किया जाएगा। ऐसी सरकार से किसका और क्या कल्याण होगा?
*???????? इन दो बातों से अपाहिज सरकार से बस यही उम्मीद की जा सकती है, कि भारत की सामाजिक स्थितियां पहले जैसी ही बनी रहें। हम ऐसी सरकार चाहते हैं, जिसके सत्ताधारी देश के सर्वोच्च हित के बारे में प्रतिबद्ध हों।*
*???????? प्रचलित सामाजिक और आर्थिक रीति-रिवाजों में सुधार लाने की कोशिश की जाए तो लोगों में आज्ञापालन की प्रवृत्ति कब नष्ट होगी और कब विद्रोह करने की प्रवृत्ति जोर मारेगी, इन दो बातों के बीच की सीमारेखा को भांपनेवाली और निडरता से सुधारों को लागू करने वाली सरकार हम चाहते हैं।*
???????? क्योंकि ऐसी ही जगह न्यायप्रियता और उपयुक्तता की परख होती है। अंग्रेज सरकार कभी भी इन कर्त्तव्यों को निभाने की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती।
*✍️सरकार कैसी हो*
*????ये कार्य सिर्फ लोगों की,*
*???? ????लोगों द्वारा*
और
*????????लोगों के लिए चलाई जाने वाली सरकार के जरिए ही हो सकता है।*
????दलित वर्ग द्वारा अपने दृष्टिकोण से उपस्थित किए गए कुछ सवाल और उनके संभाव्य जवाब इस प्रकार हैं। इसीलिए हम ऐसे नतीजों पर आ पहुंचे हैं कि हमारी आज की विशिष्ट संकटपूर्ण स्थिति में बदलाव लाने के सोच से आपके उद्देश्य अच्छे हो सकते हैं लेकिन आज की नौकरशाही भारत सरकार पूरी तरह सामर्थ्यहीन है। हमारे दुःख दूर करने का सामर्थ्य किसी में नहीं है, इसका हमें यकीन हो चुका है।
*????????????????????केवल हम ही अपने दुःख दूर कर सकते हैं। और जब तक हमारे हाथ में राजनीतिक सत्ता नहीं आती, तब तक हम अपने दुखों को समाप्त नहीं कर सकते।*
*???????????????????? अंग्रेज सरकार जब तक इस देश में है, तब तक राजनीतिक सत्ता का बूंद भी हमारे हाथ में नहीं आ सकता। केवल स्वराज्य के संविधान के द्वारा ही राजनीतिक सत्ता हमारे हाथ में आने की संभावनाओं का निर्माण संभव है। इसके अलावा हमारे लोगों की मुक्ति किसी और रास्ते संभव नहीं लगती है।*
*????️अध्यक्ष महोदय,*
एक और बात की ओर मैं आपका विशेष ध्यान दिलाना चाहता हूँ। दलित वर्ग का नजरिया आपके सामने स्पष्ट करते हुए मैंने अब तक कभी *स्वयंसत्तात्मक दर्जे का राज्य* ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। इस शब्द का गर्भितार्थ न जानने की वजह से या भारत को *स्वसत्तात्मक राज्य का दर्जा* प्राप्त होने के लिए दलितों का विरोध है इसलिए मैं इस शब्द के प्रयोग करने से बचतारहा ऐसी बात नहीं है। इस शब्द का प्रयोग मैं केवल इसलिए नहीं कर रहा, क्योंकि इस शब्द के जरिए दलित वर्ग की भूमिका पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो रही है।
???? दलित वर्ग के लिए सुरक्षा का प्रबंध वाले स्वसत्तात्मक दर्जे का राज्य दलित भी चाहते हैं। हालांकि वे मुख्य रूप से एक मुद्दे पर जोर देना चाहते हैं। वे जानना चाहते हैं कि स्वसत्तात्मक वर्ज वाले भारत सरकार का कामकाज किन तत्वों के आधार से चलने वाला है?
*????????राजनीतिक सत्ता का केंद्र कहां होगा?*
*????????वह किसके हाथ में रहेगा?*
*????????क्या दलित भी उसका वारिस होगा?*
????इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक नए संविधान की राजनीतिक व्यवस्था जब तक हाथ में नहीं होती तब तक दलितों को संदेह है. कि उन्हें राजनीतिक सत्ता का अल्पांश भी नहीं मिलेगा। इस व्यवस्था का निर्माण करते हुए भारतीय सामाजिक जीवन के कुछ कठोर सत्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
???????? भारतीय समाज विभिन्न जातियों की श्रेणियों से बना हुआ है। इस समाज रचना में एक व्यवस्था पनपी है, जिसके तहत बढ़ती श्रेणी के आधार पर सम्मान और उत्तरती श्रेणी के आधार पर अवमान की जातिगत श्रेणी भी निर्माण हुई है। समता और बंधुभाव जनतंत्र प्रशासन के अत्यावश्यक अंग होते हैं जिन्हें पनपने का अवसर यह समाज रचना कतई नहीं देती।
*???????? दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि,* हमें यह बात भी मान ही लेनी चाहिए कि बुद्धिमान प्रबुद्ध वर्ग को भारतीय समाज में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। लेकिन यह वर्ग केवल श्रेष्ठ श्रेणियों से ही बना है। यह वर्ग भले ही देश के बारे में बोल रहा हो और राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व कर रहा हो, किन्तु जिन जातियों में वह पैदा हुआ, उन जातियों के बारे में संकीर्ण दृष्टिकोण को उसने नहीं त्यागा है।
???????? दूसरे शब्दों में कहना हो तो समाज की मानसिकता और राजनीति की बनावट में आपसी संबंध होना चाहिए। और दलितों का आग्रह है कि उस व्यवस्था को चाहिए कि वह सामाजिक मानसिकता के बारे में गौर करे। ऐसा न हो तो आप जो योजना बनाएंगे वह केवल अग्रकेंद्रित होने के कारण जिस समाज के लिए वह तैयार की जाएगी उसे ही अयोग्य साबित होगी।
*????????अपना भाषण पूरा करने से पहले मैं एक और बात का विवेचन करना चाहता हूं।*
*????????????????????????????हमें बार-बार यह बताया जाता है कि दलित वर्ग का मसला असल में सामाजिक मसला है और उसे हल करने का उपाय राजनीति से अलग है। हम इस विचार का पुरजोर विरोध करते हैं। इस बारे में हमारी पक्की राय है कि जब तक दलित वर्ग के हाथ में राज्य शासन के सूत्र नहीं आएंगे, तब तक उनके प्रश्नों का निराकरण होना कभी भी संभव नहीं है।*
*???? अर्थात्,* दलितों का प्रश्न राजनीतिक हो तो उसे हल भी उसी तरह किया जाना चाहिए। इसीलिए, मैं इस समस्या को राजनीतिक मुद्दा मान कर प्रस्तुत कर रहा हूं। राजनीतिक समस्या के तौर पर ही उस पर विचार होना चाहिए।
*???????????????????? जिन लोगों की हम पर भयावह आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक हुकूमतहै उन्हीं लोगों के हाथों में राजनीतिक सत्ता का हस्तांतरण हो रहा है. इसका हमें अहसास है।*
???????? असल में स्वराज्य शब्द के साथ हमारे मन में वे सारी यादें मंडराती है. अब हम अन्याय, अत्याचार के शिकार हुए थे. हमारा दमन हुआ था और हमारे मन
लगता है कि आजादी मिलनी चाहिए। हमारे देशबंधुओं के साथ हमें भी राज्य की में डर पैदा होता है कि भावी स्वराज्य में उसकी पुनरावृत्ति होगी। इसके बावजूद हमें सत्ता में बराबरी का हिस्सा मिलेगा इसी उम्मीद के साथ इस गंभीर और अनिवार्य जोखिम को उठाने के लिए हम तैयार हैं। बल्कि ऐसा जोखिम उठाने का साहस हम कर रहे हैं। हालांकि इसे हम एक ही शर्त पर मंजूरी दे सकते हैं *कि हमारी समस्या केवल समय की मर्जी पर न छोड़ी जाए बदलते समय के अनुसार कुछ चमत्कार हो जाएंगे,*
????????इस भोली आश के सहारे हम सालों से इंतजार में बैठे हुए हैं। आज मुझे इसी बात से डर लगता है। प्रातिनिधिक सरकार को विशेष अधिकार देने की प्रक्रिया के दौरान ब्रिटिश सरकार ने हर कदम पर हमें दरकिनार किया है। राज्य की सरकार में हमारा भी हिस्सा है, यह विचार किसी के मन में ही नहीं आया है।
*????????????????आज मैं अपनी पूरी ताकत समेट कर, जोर दे कर बोल रहा हूं कि इसके बाद कोई हमारी सहनशीलता को आजमाएं नहीं।*
????????सभी राजनीतिक प्रश्नों के साथ ही हमारी समस्याओं को भी हल किया जाना चाहिए। किसी भी हाल में आगामी अस्थिर राज्यकर्त्ताओं के भरोसे, उनकी सहानुभूति और दया के सहारे नहीं छोड़ देना चाहिए। दलित वर्ग इस बात पर इतना जोर क्यों देता है इसका कारण साफ है। हमारे इस आग्रह के पीछे के कारणों का विश्लेषण भी साफ है।
????????एक व्यावहारिक सत्य सब जानते हैं कि स्वामित्वविहीन व्यक्ति की तुलना में स्वामित्व प्राप्त व्यक्ति हमेशा शक्तिशाली होता है। साथ में यह भी कहीं दिखाई नहीं देता कि स्वामित्वविहीन के लिए स्वामित्व प्राप्त व्यक्ति अपना स्वामित्व छोड़ दे। इसीलिए, हमारी सामाजिक समस्या आगे चल कर हमारे हित साध्य होने से हल होगी, ऐसी आशा हम कर ही नहीं सकते।
????आज इस सवाल को सर्वसहमति से हल किए बगैर यदि हम उनके हाथों में सहजता से सत्ता को जाने देते हैं, तो आज जिन्हें हम सत्ता में लाने के लिए मदद करेंगे, कल उन्हीं को सत्ता से नीचे खींचने के लिए हमें एक बार और *विद्रोह करना पड़ेगा, क्रांति लानी पड़ेगी।* हमारे इस अतिरिक्त संदेह के लिए अगर कोई हमें दोष देना चाहे तो बेशक दे क्योंकि प्रचंड विश्वास के कारण हामी भर कर ध्वस्त होने की तुलना में धिक्कारा जाना बेहतर ही होगा।
????????इसीलिए कहता हूं कि हमारे मसलों को हल करने के लिए *सत्ता में हमारी भी भागीदारी, हमारा हक हो, यही एक न्याय और सही मार्ग है, ऐसा मुझे लगता है।* शासकीय प्रणाली में इस तरह की व्यवस्था करना ही सबसे बढ़िया तरीका है, ऐसा मुझे लगता है। इस सत्ता को अनियंत्रित तरीके से केवल अपने ही हाथों में लेने के लिए जो लोग जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं उनकी मर्जी पर इस मसले को छोड़ देने से इसका हल नहीं निकलने वाला।राज्य की व्यवस्था में दलित वर्ग की सुरक्षा और सुखरूपता, सुरक्षितता के हेतु, उन्हें किस तरह के समझौते, सुलह की उम्मीद है वह सही समय पर मैं इस परिषद के आगे रखने वाला है। हमें उत्तरदायित्व निभाने वाली सरकार की जरूरत है.
*????????????????लेकिन हम यह नहीं चाहते कि नई व्यवस्था में केवल हमारे मालिक बदले, हमारी सुपुर्दगी एक के चंगुल से दूसरे के चंगुल में न हो, इतना ही मैं आज इस अवसर पर कहना चाहता हूं। अगर आप चाहते हैं कि शासक वर्ग जिम्मेदार हो. तो यह जरूरी है विधिमंडल पूरी तरह और सच्चे मायने में प्रातिनिधिक हो। यही आज के इस अवसर मैं कहना चाहता हूं।*
*????️अध्यक्ष महोदय,*
इस तरह साफगोई से मुझे बोलना पड़ रहा है, इस बात का मुझे दुख है। लेकिन इसके अलावा मुझे तो और कोई पर्याय नजर नहीं आ रहा।
*????????????????दलितों का कोई दोस्त नहीं है। आज की सरकार ने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आज तक कई बहाने बना कर उनसे अपना काम निकलवाया है।*
???????????? हिंदुओं ने भी अपनी जरूरत से उन्हें पास लिया है, तब भी अंतिमतः उन्हें दूर करने के लिए ही लिया और स्पष्टता से अगर कहना हो तो, हिंदू उन्हें अपने अधिकारों से पूरी तरह वंचित रखना चाहते हैं।
???????????????????? अपने विशेष अधिकारों में कोई हिस्सेदार न हो इसलिए मुसलमान भी उनका अलग अस्तित्व अस्वीकार करते हैं। यानी सरकार द्वारा दुर्बल बनाया, हिंदुओं के दमन का शिकार और मुसलमानों से अवमानित किया गया वर्ग है यह। मुझे यकीन है कि, और कहीं भी ऐसा वर्ग नहीं होगा, जिसकी इतनी असहाय और असहनीय स्थिति हो गई हो। और इसीलिए मुझे आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना पड़ा है।
????????जिस अगले सवाल पर बातचीत होनी है उसके बारे में कहना हो तो, बड़े खेद के साथ मुझे यह कहना है कि, परिषद के सामान्य विषयों के साथ बेकार में ही इस विषय को जोड़ दिया गया है।
????????????यह सवाल इतना महत्त्वपूर्ण है कि अलग सत्र में ही अल्पसंख्यकों से जुड़ी इन संमस्याओं के बारे में सोचा जाना चाहिए। छुटपुट जिक्र करने भर से इस सवाल का हल निकलना संभव नहीं है। यह प्रश्न दलितों की दृष्टि से भी अहम होने के कारण महत्त्वपूर्ण है। अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि के नाते हमें केन्द्र सरकार से यह उम्मीद है कि सरकार अल्पसंख्यकों के हितों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाए और प्रांत के बहुसंख्यकों द्वारा फैलाई जा रही अव्यवस्था पर नियंत्रण रखा जाए।
???????????????? एक भारतीय होने के नाते भारतीय राष्ट्रवाद के संबंध में मुझे निश्चित रूप से आस्था है और इसे बढ़ावा मिले ऐसा मैं चाहता हूं और इसीलिए केंद्रीय प्रशासन पद्धति में मेरा विश्वास है। इस व्यवस्था को विघटित करने या उसमें दरारें पैदा करने का खयाल भी मुझे बेचैन कर जाता है। एक केंद्रीय शासन व्यवस्था में भारतीय राष्ट्र की छवि बनाने की अपार क्षमता है।
???????? एक केंद्रीय शासन पद्धति के कारण ही भारत में एकराष्ट्र का भाव पनपा है। लेकिन अभी वह पूर्णावस्था तक नहीं महुंची है। इसीलिए आज की राष्ट्र निर्मिति की प्राथमिक स्थिति में इस एक केंद्रीय शासनपद्धति को हटाना मुझे अमान्य है। क्योंकि भारत अभी भी पूरी तरह एक संघ राष्ट्र नहीं बना है।
????????तथापि, जिस तरह से इस सवाल को पेश किया गया है, उसे गौर से देखें तो यह केवल किताबी सवाल महसूस होता है। इसीलिए प्रांत की सरकारें अगर केंद्रीय सरकार के साथ विसंगत नहीं चलने वाली हों, तो संघ शासनपद्धति के बारे में भी सोचने के लिए मैं तैयार हूं।
*????️अध्यक्ष महोदय*
, दलितों के प्रतिनिधि के तौर पर उनकी तरफ से जो भी कुछ मैं कहना चाहता था, वह सब मैंने आपके सामने रखा है। आज एक भारतीय के नाते हमें किन स्थितियों से मुकाबला करना पड़ता है, इस बारे में दो शब्द कहने की इजाजत मिले तो मैं कुछ कहना चाहूंगा। राष्ट्रीय आंदोलन का मूक प्रेक्षक ना होने पर भी अब तक इस विषय पर जो गंभीर राय सामने रखी गई हैं उनके बारे में मैं अलग से भाष्य नहीं करना चाहता। हमारी समस्या का हल निकलने के दृष्टिकोण से क्या हम सही रास्ते पर चल रहे हैं अथवा नहीं, इस बात को लेकर मैं चिंतित हूं। इन उपायों का स्वरूप क्या हो यह तय करना अंग्रेजों के प्रतिनिधियों के दृष्टिकोण पर निर्भर है। मैं उन्हें इतना ही कहना चाहता हूं कि इन स्थितियों से राह निकालने के लिए सुलह का रास्ता अपनाना है या दमन का इसका निर्णय उन्हें करना है। क्योंकि निर्णय भले कोई भी हो, अंतिम जिम्मेदारी उन्हीं की होगी।
????????????????आपमें से जिनका बलप्रयोग में विश्वास है उन्हें राजनीतिक दर्शन के एक महान शिक्षक एडमंड बर्क के एक चिरस्मरणीय वाक्य की याद दिलाना चाहता हूं। अमेरिका के उपनिवेश की समस्याओं के बारे में विचार कर उन्होंने अंग्रेजों के राष्ट्र को उद्देश्य कर कहा,
*????️"बल का प्रयोग (उपयोग) केवल क्षणिक होता है। कुछ समय के लिए उसके सहारे सत्ता चलाई जा सकती है। लेकिन उन्हें हमेशा अपने अधीन रखने के लिए बल का प्रयोग करने की आवश्यकता बढ़ाने के लिए दूर नहीं कर सकते।*
जिस राष्ट्र को हमेशा अपने शासन में रखना हो उस पर इस प्रकार शासन नहीं किया जा सकता।"
*????????????मेरी दूसरी आपत्ति है, बल* की परिणामकारकता की अनिश्चितता के संदर्भ में। बल के प्रयोग से हमेशा दहशत कायम रहेगी, ऐसा नहीं है और सुसज्ज सेना का मतलब विजय नहीं होता। आपको अगर सफलता नहीं मिली, तो फिर कोई भी मार्ग नहीं बचता। बातचीत से हल न निकले तो बल का ही प्रयोग करना पड़ता है। बल के प्रयोग से हर बार दहशत पैदा हो यह जरूरी नहीं। लेकिन बल का प्रयोग भीअगर असफल रहे तो बातचीत में कुछ उम्मीद नहीं बचती। दया के बदले-कभी कभी सत्ता और अधिकार पाए जा सकते हैं, लेकिन शक्तिपात और हारी हुई हिंसा को भीख के तौर पर सत्ता और अधिकार की मांग नहीं की जा सकती.......
????????बल के इस्तेमाल के मेरे विरोध की अगली वजह है जी-तोड़ कोशिश कर आप जो कमाएंगे, उसे ही हानि पहुंचाएंगे। आप जो पाते हैं वह उसके मूल रूप में नहीं पाते हैं, आपको जो मिलता है, उसका पहले ही अवमूल्यन हुआ होता है, वह मटियामेल हुआ होता है, वह उजाड़ और उसका सर्वनाश हुआ होता है।
????????इस यथार्थ को आपने नजरंदाज किया और महान अमेरिका खंड आपके हाथ से निकल गया। आपने उसकी सुध ली तभी बाकी बचे राज्य आपके नियंत्रण में हैं। हममें से जो लोग सुलह की बात को मानते हैं उन्हें मैं एक सलाह देना चाहता हूं यहां के प्रतिनिधियों को शायद ऐसा लगता है कि स्वसत्ता वाले राज्यों के स्तर के बारे में होने वाली यह लड़ाई निर्णायक साबित होगी और उसी पर अंतिम निर्णय निर्भर होगा। लेकिन इतने बड़े सवाल को तार्किक सूत्रों में बांधने की कोशिश करने जैसी कोई बड़ी गलती नहीं होगी। तर्क विज्ञान से मेरा बैर नहीं है, लेकिन यहां के विद्वान अपने पूर्वानुमान ज्ञान से चुनें, यही मेरा कहना है। वरना जिन्हें दूर नहीं किया जा सकता ऐसे संकट आन खड़े होंगे। मेरा उनके लिए यही संकेत है।
*????️डॉ. जॉनसन* ने जिस तरह बर्कले के सारे विरोधाभासों को कुचल दिया, उसी तरह तर्क के बल पर हार होने के बाद आप हार मान लेते हो या फिर से तर्क करते हुए उस राय को गलत साबित करने की कोशिश करते हो, यह पूरी तरह आपके स्वभाव पर निर्भर करता है। एक बात शायद कोई ठीक तरह से समझ नहीं पाया है। वह यह कि, देश की फिलहाल मानसिकता और प्रवृत्ति ऐसी है, कि बहुसंख्यक लोगों को जो अस्वीकार है, ऐसी कोई भी घटना यहां पर काम की साबित नहीं हो पाती। आप चयन करें, और हम उसको चुपचाप स्वीकार करें, यह व्यवस्था कब की खत्म हो चुकी है। वह कभी भी लौट कर नहीं आने वाली है।
???????? इसीलिए संविधान लागू हो, ऐसी अगर आपकी इच्छा हो तो नया संविधान तय करते वक्त नए संविधान को तर्क के आधार के बजाय लोक सम्मति की कसौटी पर कसना चाहिए, यही सही होगा।
*???????? प्रश्न- गोलमेज सम्मेलन में चाइना दर्जी का उदाहरण किस संदर्भ में और क्यों दिया गया है?* *------समाप्त------*
आपने *अम्बेडकर संदेश* को पढ़ने के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया, इसके लिए साधुवाद।
????आप सभी प्रबुद्ध जनों को सहर्ष अवगत कराना है कि *बाबासाहब की इच्छानुकूल* एक वैचारिकी सेन्टर बनाने के लिए, रिंगरोड ग्रीन सिटी फरीदपुर सारनाथ वाराणसी,उत्तर प्रदेश में 14000sq ft जमीन की खरीदारी हो चुकी है। अब इसका निर्माणकार्य प्रगति पर है।
आप सभी बाबासाहब के अनुयाइयों से अनुरोध है कि यदि इस वैचारिकी सेन्टर के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान करना चाहते हैं में अवश्य धम्मदान करेंगे।
*
????????सभी बुद्विजीवियों से अनुरोध है धम्मदान कि स्क्रीनशॉट/ छाया प्रति भेजनें का कष्ट करेगें।
???? *महत्वपूर्ण सभाओं में आपको,राष्ट्रीय पदाधिकारियों द्वारा सम्मानित किया जाएगा।*
नोट- आपको डा अम्बेडकर संदेश कैसा लगता है, इस बारे में अपने विचारों/ सुझावों से सहर्ष अवगत कराएंगे।
इसी आशा और विश्वास के साथ
????आपको नमो बुद्धाय जय भीम व बहुत बहुत साधुवाद।
????????????????????????????
*????आपका मिशनरी साथी*
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राजेश कुमार सिद्धार्थ अबतक मीडिया ग्रुप के संपादक-इन-चीफ हैं, जिन्हें 25 वर्षों से अधिक का पत्रकारिता जगत में अनुभव प्राप्त है, और जो अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता से अबतक मीडिया ग्रुप
महमूदाबाद के मोहल्ला रमुवापुर में विश्व मानवाधिकार कानून एवं अपराध नियंत्रण ट्रस्ट के राष्ट्रीय संरक्षक एस एस दिनकर का सम्मान हुआ।
दिनांक 24 सितंबर 2025 को संविलित उच्च प्राथमिक विद्यालय महमूदाबाद में कक्षा 1 से कक्षा 8 तक के बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण स्वास्थ्य विभाग की दो टीमों द्वारा किया गया। बच्चों के स्वास्थ्य की जांच उपरांत बच्चों को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए गए।
मलिहाबाद , संवाददाता:रहीमाबाद थाने में कई वर्षों से जमे रसूखदार सिपाही ओपी यादव इसे रसूख कहा जाए या जुगाड़ या कुछ और।ऐसे सिपाहियों को अधिकारी हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।ओपी यादव कई वर्षों से तैनात हैं।थाने पर डेरा जमाए हुए हैं।
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