Raksha Bandhan 2025: पूरा देश आज रक्षाबंधन का त्योहार मना रहा है. बहने अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हुए उनकी कलाइयों पर राखी बांध रही हैं और ईश्वर से उनकी लंबी आयु और स्वस्थ स्वास्थ्य की कामना कर रही हैं. वहीं इस देश का एक तबका ऐसा भी है जो मजबूरी के चलते भारत तो पहुंच चुका है, लेकिन उनका दिल आज भी पाकिस्तान में रह रहे अपने बहन भाइयों के लिए धड़कता है.
रक्षाबंधन का त्योहार जिसे हर कोई हर्षोल्लास से मना रहा है, लेकिन पाकिस्तान के अत्याचारों से परेशान हो भारत में आकर रहने वाले रिफ्यूजी इस त्योहार पर हताश नजर आ रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच दूरियां बढ़ चुकी हैं और आने-जाने पर भी प्रतिबंध लग चुका है. इसके चलते पाकिस्तान से भारत आए पाक विस्थापित इस रक्षाबंधन के दिन अपने बहन भाइयों को खूब याद कर रहे हैं.
पाक विस्थापितों की आंखें नम
यह रिफ्यूजी पाकिस्तान के अत्याचारों से परेशान होकर भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जिले जैसलमेर में काफी तादाद में रह रहे हैं. रक्षाबंधन के इस पर्व पर इन पाक विस्थापितों की आंखें नम हैं. इसका कारण यह है कि इनके बहन-भाई इनसे दूर हैं. ये खुद भले ही जैसलमेर में आकर बस गए हैं, लेकिन इनके बहन-भाइयों के पाकिस्तान में होने के कारण इनका यह राखी का त्योहार फीका है.
अपने बहन-भाइयों को याद कर इनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. इन्हें इस बात की भी चिंता है कि क्या ये अपने जीते जी अपने उन बहन भाइयों को देख भी पाएंगे या नहीं. भारत को ये अपना वतन मानते हैं, लेकिन रक्षाबंधन के दिन अपनों की दूरी का इन्हें मलाल है. ये सरकार से अपील कर रहे हैं कि सरकार इनकी सुध ले और पाकिस्तान में रह रहे इनके दुखी बहन भाइयों को भी भारत में स्थान दें.
पति संग भारत आई, लेकिन भाई पाकिस्तान में
पाकिस्तान से एक साल पहले ही जैसलमेर आई कसुंबी नामक महिला बताती है कि वह अपने बच्चों और पति के साथ भारत आ गई है, लेकिन उसके भाई आज भी पाकिस्तान में हैं और रक्षाबंधन के त्योहार पर उसे अपने भाइयों की याद आ रही है. कसुंबी पांच भाइयों की एक बहन है. उसके पांचो भाई पाकिस्तान में हैं. जब भी वो अपने भाइयों से बात करती है, तो उसका गला भर आता है.
वहीं आज से ठीक 20 साल पहले पाकिस्तान से जैसलमेर आई अकलो नामक महिला बताती है कि उसकी 9 संताने हैं, जिसमें एक सबसे बड़ी बेटी पाकिस्तान में है और उसके आठ बेटे जैसलमेर में हैं. बेटी से जब कभी बात होती है, तो उसकी आंखें भर आती हैं. अकलो के आठों बेटों को अपनी बहन का यहां जैसलमेर में इंतजार है.
हरचंद को आती है बहनों की याद
वहीं अकलो के दो भाई पाकिस्तान में हैं, उन्हें भी अपनी बहन की राखी का इंतजार है. जिया और इलमा की भी यही कहानी है. इसी तरह 70 वर्षीय हरचंद बताते हैं कि उन्हें पाकिस्तान से जैसलमेर आए 3 साल हुए हैं. उनकी चार बहनें और एक बेटा पाकिस्तान में रहते हैं. हरचंद को अपनी बहनों की खूब याद आती है. बहनों के पाकिस्तान में होने के कारण भारत में बैठे हरचंद की कलाई सूनी है.
50 वर्षीय केसराराम बताते हैं कि उन्हें पाकिस्तान से जैसलमेर आए 12 साल हो गए. उन्हें भारत की नागरिकता भी मिल चुकी है. केसराराम की तीन बेटियों के साथ ही तीन बहनें भी पाकिस्तान में हैं, जिसके कारण आज रक्षाबंधन के दिन उन्हें बेटियों के साथ ही बहनों की दूरी का दुख सता रहा है.
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