अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित बांसगांव संसदीय सीट की सियासी तस्वीर तेजी से बदली है। बसपा के प्रत्याशी मैदान में नहीं आने से पहले यहां भाजपा और गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई दिख रही थी। पर, बसपा ने पूर्व आयकर आयुक्त डॉ. रामसमुझ को मैदान में उतारकर दोनों दलों के समीकरणों को उलझा दिया है।
रोचक होती लड़ाई में दलित और सवर्ण वोटरों को साधने के लिए सभी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। सियासी पंडितों का भी मानना है कि यह सीट इस बार उसी के हाथ लगेगी जो इन मतदाताओं को अपने पाले में लाने में कामयाब होगा।
भाजपा प्रत्याशी कमलेश पासवान जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। अब चौथी बार जीत हासिल कर कांग्रेस के कद्दावर नेता महावीर प्रसाद की बराबरी करना चाहते हैं। जबकि, तीन बार बसपा से चुनाव लड़ चुके और तीनों बार दूसरे स्थान पर रहे पूर्व मंत्री सदल प्रसाद पाला बदलकर विपक्षी गठबंधन की ओर से कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं।
उन्हें सहानुभूति की भी आस है। अपने हर चुनावी सभा में इसकी चर्चा वह जरूर करते हैं। रोचक तथ्य यह भी है दलितों की राजनीति करने वाली बसपा ने इस सुरक्षित सीट पर कभी जीत हासिल नहीं कर सकी। पिछल चार चुनावों में बसपा ही मुख्य लड़ाई में रही है, पर उसका खाता नहीं खुल सका।
बांसगांव संसदीय सीट पर जातीय समीकरण कुछ ऐसा है कि दलित और सवर्ण वोटरों की संख्या मिलाकर करीब आठ लाख हो जाती है। इस बार दलित वोटर दूसरे दलों की ओर खिसक रहे हैं।
ऐसे में गठबंधन के प्रत्याशी का पूरा फोकस दलित मतदाताओं पर है। वहीं, भाजपा प्रत्याशी सवर्ण वोटरों को साधने में पूरा जोर लगाए हुए हैं। जबकि, बसपा प्रत्याशी डॉ. रामसमुझ काडर वोटरों के अलावा अन्य बिरादरी को सहेजने में लगे हैं।
सड़क, उद्योग, बाढ़ बड़े मुद्दे
- रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र के आदर्शनगर के रहने वाले मिर्जा आदिल बेग चुनावी मुद्दों के सवाल पर बेहद तल्ख अंदाज में जवाब देते हैं। वह कहते हैं, यहां विकास की बात अगर कोई करता है, तो समझिए झूठे वादे किए जा रहे हैं। न तो सड़कें ठीक हैं और न ही उद्योग लगे। बाढ़ से लोग परेशान रहते हैं। नौकरी है नहीं, तो युवा पलायन को मजबूर हैं।
- टिघरा खैरवा गांव के विनोद सिंह का कहना है कि मुद्दों की बात कहां होती है। वैसे भी मोदी सरकार में बहुत विकास हुआ है। नौकरियां कम मिली हैं पर पारदर्शिता तो आई है।
- बरहज विधानसभा क्षेत्र के सुरेंद्र मिश्र मुद्दों की बात होते ही तमतमा जाते हैं। कहते हैं, सबसे बड़ा मुद्दा तो रोजगार का है। मेरे घर के दो लड़कों ने प्रतियोगी परीक्षाएं दी। फिर पता चला कि पेपर लीक हो गया।
महावीर प्रसाद के गढ़ में कांग्रेस को जीत की तलाश
बांसगांव संसदीय सीट कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व राज्यपाल रहे महावीर प्रसाद की कर्मस्थली रही है। लेकिन, उनके गढ़ में भाजपा का कब्जा है। यहां से कांग्रेस को जीत की तलाश है। सदल प्रसाद गठबंधन से कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं।
- छात्र राजनीति से कैबिनेट मंत्री तक महावीर प्रसाद का सफर संघर्षों से भरा रहा है। 1980 में पहली बार सांसद का चुनाव लड़े और उनके सामने दो पूर्व सांसद राम सूरत व फिरंगी प्रसाद थे। अपनी राजनीतिक सूझबूझ से महावीर ने दोनों सूरमाओं को धूल चटा दी और फिर जीत की हैट्रिक लगाई।
- 1991 में भगवा लहर में यहां से राज नारायण पासवान ने महावीर प्रसाद को पराजित कर पहली बार कमल का फूल खिलाया। यहीं से यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई और महावीर ने खुद को बांसगांव की सियासत से अलग कर लिया।
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