मैनपुरी रामलीला मंच पर आज भगवान श्री राम के द्वारा राम सेतु का निर्माण किया गया जिसके लिए भगवान श्री राम भगवान ने समुद्र


मैनपुरी रामलीला मंच पर आज भगवान श्री राम के द्वारा राम सेतु का निर्माण किया गया जिसके लिए भगवान श्री राम भगवान ने समुद्र से बैठकर तीन दिन तक भगवान श्री राम ने आग्रह की कि मुझे रास्ता दें लेकिन उन्होंने एक भी ना सुनी जब भगवान श्री राम को क्रोध आया तब उन्होंने अपना धनुष निकला और बढ़  चढ़ाया फिर भगवान समुद्र देव प्रगट हुए  और उन्होंने कहा प्रभु मुझे क्षमा करदे मुझसे गलती हो गई और आपके सेवा में दो बालक हैं  नाल और नीर उन्हें सर्प लगा हुआ है  की वह कोई भी पत्थर आपका नाम लेकर फेंकेंगे वह डूबेगा नहीं और मैं भी आपका सहयोग करूंगा इतना कहकर भगवान श्री राम से आज्ञा लेकर समुद्र देव चले गए फिर भगवान श्री राम नल और नीर को  फिर भगवान श्री राम ने आज्ञा दी सेतु का निर्माण हुआ फिर भोले बाबा की पूजा की उसके लिए भगवान श्री राम ने रावण को बुलवाया अपने दूतो के द्वारा  की मेरी पूजा संपन्न करवाई  ब्राह्मण देव के द्वारा जब रावण  आया उसने बताया कि यह पूजा ऐसी संपन्न नहीं होगी इसमें दोनों की जरूरत होती है फिर रावण ने हनुमान जी से कहा कि जाओ सीता को ले आओ जब हनुमान जी लंका गए और सीतामाता को लेकर आए फिर रावण ने पूजा संपन्न कराई उसके बाद रावण चला गया सीता को लेकर उसके बाद श्री राम जी ने अपना एक दूत अंगद को भेजा कि सीता को वापस कर दो  फिर अंगद लंका में गए और रावण को खूब समझाया लेकिन रावण ने कोई भी बात नहीं समझी अंगद ने कहा कि अभी भी आप सीता माता को वापस कर दें और श्री राम प्रभु की सारण में चले जाएं वह आपको क्षमा कर देंगे लेकिन रावण ने फिर भी नहीं मानी फिर अंगद को क्रोध आ गया फिर अंगद ने पैर जमाया कहा जिसमें भी दम है बो हमारा पैर हिला कर दिखा दे फिर रावण ने अपनी सेना से कहा कि जओ इस बंदर को पैर पकड़ कर घूमकर  इतनी दूर फेंको की यह समुद्र के उस पर गिरे लेकिन किसी आशुर ने पैर नहीं हिला पाया फिर रावण खुद सिंगासन से उतर के आया अंगद ने कहा कि मेरे पैरों में क्या रखा है अगर पैर पकड़ने हैं तो प्रभु श्री राम के पकड़ो वह क्षमा  करेंगे इसके बाद अंगद वापस राम दाल मैं आ गए से बैठकर तीन दिन तक भगवान श्री राम ने आग्रह की कि मुझे रास्ता दें लेकिन उन्होंने एक भी ना सुनी जब भगवान श्री राम को क्रोध आया तब उन्होंने अपना धनुष निकला और बढ़  चढ़ाया फिर भगवान समुद्र देव प्रगट हुए  और उन्होंने कहा प्रभु मुझे क्षमा करदे मुझसे गलती हो गई और आपके सेवा में दो बालक हैं  नाल और नीर उन्हें सर्प लगा हुआ है  की वह कोई भी पत्थर आपका नाम लेकर फेंकेंगे वह डूबेगा नहीं और मैं भी आपका सहयोग करूंगा इतना कहकर भगवान श्री राम से आज्ञा लेकर समुद्र देव चले गए फिर भगवान श्री राम नल और नीर को  फिर भगवान श्री राम ने आज्ञा दी सेतु का निर्माण हुआ फिर भोले बाबा की पूजा की उसके लिए भगवान श्री राम ने रावण को बुलवाया अपने दूतो के द्वारा  की मेरी पूजा संपन्न करवाई  ब्राह्मण देव के द्वारा जब रावण  आया उसने बताया कि यह पूजा ऐसी संपन्न नहीं होगी इसमें दोनों की जरूरत होती है फिर रावण ने हनुमान जी से कहा कि जाओ सीता को ले आओ जब हनुमान जी लंका गए और सीतामाता को लेकर आए फिर रावण ने पूजा संपन्न कराई उसके बाद रावण चला गया सीता को लेकर उसके बाद श्री राम जी ने अपना एक दूत अंगद को भेजा कि सीता को वापस कर दो  फिर अंगद लंका में गए और रावण को खूब समझाया लेकिन रावण ने कोई भी बात नहीं समझी अंगद ने कहा कि अभी भी आप सीता माता को वापस कर दें और श्री राम प्रभु की सारण में चले जाएं वह आपको क्षमा कर देंगे लेकिन रावण ने फिर भी नहीं मानी फिर अंगद को क्रोध आ गया फिर अंगद ने पैर जमाया कहा जिसमें भी दम है बो हमारा पैर हिला कर दिखा दे फिर रावण ने अपनी सेना से कहा कि जओ इस बंदर को पैर पकड़ कर घूमकर  इतनी दूर फेंको की यह समुद्र के उस पर गिरे लेकिन किसी आशुर ने पैर नहीं हिला पाया फिर रावण खुद सिंगासन से उतर के आया अंगद ने कहा कि मेरे पैरों में क्या रखा है अगर पैर पकड़ने हैं तो प्रभु श्री राम के पकड़ो वह क्षमा  करेंगे इसके बाद अंगद वापस राम दाल मैं आ गएतीन दिन तक भगवान श्री राम ने आग्रह की कि मुझे रास्ता दें लेकिन उन्होंने एक भी ना सुनी जब भगवान श्री राम को क्रोध आया तब उन्होंने अपना धनुष निकला और बढ़  चढ़ाया फिर भगवान समुद्र देव प्रगट हुए  और उन्होंने कहा प्रभु मुझे क्षमा करदे मुझसे गलती हो गई और आपके सेवा में दो बालक हैं  नाल और नीर उन्हें सर्प लगा हुआ है  की वह कोई भी पत्थर आपका नाम लेकर फेंकेंगे वह डूबेगा नहीं और मैं भी आपका सहयोग करूंगा इतना कहकर भगवान श्री राम से आज्ञा लेकर समुद्र देव चले गए फिर भगवान श्री राम नल और नीर को  फिर भगवान श्री राम ने आज्ञा दी सेतु का निर्माण हुआ फिर भोले बाबा की पूजा की उसके लिए भगवान श्री राम ने रावण को बुलवाया अपने दूतो के द्वारा  की मेरी पूजा संपन्न करवाई  ब्राह्मण देव के द्वारा जब रावण  आया उसने बताया कि यह पूजा ऐसी संपन्न नहीं होगी इसमें दोनों की जरूरत होती है फिर रावण ने हनुमान जी से कहा कि जाओ सीता को ले आओ जब हनुमान जी लंका गए और सीतामाता को लेकर आए फिर रावण ने पूजा संपन्न कराई उसके बाद रावण चला गया सीता को लेकर उसके बाद श्री राम जी ने अपना एक दूत अंगद को भेजा कि सीता को वापस कर दो  फिर अंगद लंका में गए और रावण को खूब समझाया लेकिन रावण ने कोई भी बात नहीं समझी अंगद ने कहा कि अभी भी आप सीता माता को वापस कर दें और श्री राम प्रभु की सारण में चले जाएं वह आपको क्षमा कर देंगे लेकिन रावण ने फिर भी नहीं मानी फिर अंगद को क्रोध आ गया फिर अंगद ने पैर जमाया कहा जिसमें भी दम है बो हमारा पैर हिला कर दिखा दे फिर रावण ने अपनी सेना से कहा कि जओ इस बंदर को पैर पकड़ कर घूमकर  इतनी दूर फेंको की यह समुद्र के उस पर गिरे लेकिन किसी आशुर ने पैर नहीं हिला पाया फिर रावण खुद सिंगासन से उतर के आया अंगद ने कहा कि मेरे पैरों में क्या रखा है अगर पैर पकड़ने हैं तो प्रभु श्री राम के पकड़ो वह क्षमा  करेंगे इसके बाद अंगद वापस राम दाल मैं आ गए

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