क्या मल्लिकार्जुन खरगे की प्रधानमंत्री पद के विपक्षी उम्मीदवार के रूप में दावेदारी पर सभी विपक्षी दलों के बीच आम सहमति बन पाएगी? अगर ऐसा होता है तो क्या खरगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती पेश कर पाएंगे


विपक्षी गठबंधन की बीते हफ्ते बैठक हुई। बैठक के बाद एक बार फिर चर्चा हो रही है कि क्या यह गठबंधन मूर्त रूप लेगा? बैठक के दौरान नेता के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव आने के पीछे की क्या राजनीति है? गठबंधन की बैठक कितनी सफल या विफल रही? इन सभी मुद्दों पर इस बार खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार और समीर चौगांवकर मौजूद रहे।



यह बैठक कितनी सफल या असफल रही?
विनोद अग्निहोत्री: 
यह बैठक बस इतनी सफल मानी जाएगी कि विधानसभा चुनाव के दौरान सपा और कांग्रेस के बीच जो तल्खी आई थी, वह कम होती दिखी। इसके अलावा जो सफलता की बात होगी, वो सभी आगे पता चलेगी। राहुल गांधी की पद यात्रा कब से शुरू होती है? क्या इसमें इंडिया गठबंधन के नेता शामिल होते हैं? 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए वे किस तरह आगे बढ़ रहे हैं? अगर इन सवालों का जवाब मिलता है तो इसे सफल माना जाएगा। वर्ना वही ढाक के तीन पात वाली कहावत बनकर रह जाएगी। अब तक गठबंधन के संयोजन का फैसला नहीं हुआ है। समय भी बहुत कम बचा है। हो सकता है कि चुनाव जल्दी हो जाएं। ऐसे में इस गठबंधन के सामने कई चुनौतियां हैं। 

जो नरैटिव भाजपा ने सेट किया है, क्या उसका कोई काउंटर नरैटिव इंडिया गठबंधन दे पाएगा, यह बड़ा सवाल है। अगर कोई कारगर ब्लू प्रिंट आप जनता को दे सकते हैं तो जनता आपको समर्थन जरूर देगी। अगर नहीं दे पाएंगे तो आपको समर्थन नहीं मिलेगा। यह इंडिया गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती है। सीटों का बंटवारा बड़ी चुनौती है। 


उत्तर प्रदेश में मायावती क्या करेंगी, यह नहीं पता, लेकिन एक बात तय है कि वे चुनाव से पहले भाजपा से गठबंधन नहीं करेंगी। ये बात सही है कि कांग्रेस के कुछ लोग चाहते हैं कि बसपा इस गठबंधन में आए। यह बात अखिलेश यादव नहीं चाहते, लेकिन अगर मायावती आती हैं तो अखिलेश गठबंधन से बाहर जाने की स्थिति में नहीं हैं। 

गठबंधन में अब चेहरों पर बात होने लगी है। क्या गठबंधन की कमियां दूर हो रही हैं?
रामकृपाल सिंह: 
इंडिया गठबंधन का वर्तमान अगर कोई बताए तो मैं उसका भविष्य बताऊं। कांग्रेस ने पी. चिदंबरम की अध्यक्षता में घोषणा पत्र समिति बना दी है। इस तरह की खबरें इंडिया गठबंधन के स्वरूप लेने वाली नहीं दिखाई देती हैं। संगठन का स्वरूप क्या है, आपका लक्ष्य क्या है और उसका न्यूनतम साझा कार्यक्रम क्या है? ये किसी भी गठबंधन का आधार होता है। मेरा मानना है कि जनता किसी प्रयोग के लिए वोट नहीं डालेगी। स्थायित्व वाली सरकार के लिए नेता भाजपा या कांग्रेस से होना जरूरी है, यह आजादी के बाद से अब तक का इतिहास बताता है। जनता के बीच हम मिलेंगे से ज्यादा, हम नहीं मिलेंगे के संदेश आ रहे हैं। 

कर्नाटक और तेलंगाना के चुनाव के बाद यह हवा है कि अल्पसंख्यक अब कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। दक्षिण के अल्पसंख्यकों ने क्षेत्रीय पार्टियों का साथ इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें लगता था कि जीत के बाद यह पार्टियां भाजपा के साथ जा सकती हैं, जबकि उत्तर भारत में ऐसा नहीं है। 2019 में जो प्रयोग उत्तर प्रदेश में हो चुका है, वह दोबारा होगा तो सफल होगा ऐसा दिखता नहीं है। 

अगर खरगे गठबंधन का चेहरा होते हैं तो सहमति बनेगी?
समीर चौगांवकर:
 इंडिया गठबंधन की पहली बैठक छह महीने पहले हुई थी, लेकिन इन छह महीनों में जिस गति से इस गठबंधन को काम करना था, उस गति से होता दिखा नहीं है। गठबंधन के बीच किसी विषय को लेकर आपसी सहमति नहीं हो पा रही है। जैसा मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम उम्मीदवार के तौर पर ममता के प्रस्ताव पर हुआ। 

खरगे भी जानते हैं कि वे राहुल गांधी और सोनिया गांधी की लाइन को क्रॉस नहीं कर पाएंगे। जहां तक चेहरे की बात है तो आपको चेहरा लाना ही होगा। भले वो चेहरा कोई भी हो। मुझे लगता है कि खरगे का नाम सबसे बेहतर है। एक तो यह कि वे दलित हैं, दूसरा कांग्रेस के बड़े नेता हैं, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ऐसे में इंडिया गठबंधन के पास पीएम मोदी से मुकाबला करने के लिए खरगे से बेहतर चेहरा नहीं है। भाजपा जल्द ही कमजोर सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर सकती है। ऐसे में इंडिया गठबंधन को तेजी दिखानी होगी। उत्तर प्रदेश में अखिलेश बिना गठबंधन के चुनाव नहीं लड़ेंगे। अखिलेश जानते हैं कि 2024 में अगर वे गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ते हैं तो उनका सफाया तय है। बिना मायावती के समर्थन के आप उत्तर प्रदेश में नहीं लड़ सकते हैं। मायावती से गठबंधन को फायदा होगा। मुझे लगता है कि आखिरी में तीनों दलों का गठबंधन होगा। यही स्थिति बंगाल में होने वाली है। ममता बनर्जी भाजपा को खारिज नहीं कर सकती हैं। वे भी कांग्रेस को साथ लेकर चलेंगी। हालांकि, ममता बनर्जी लेफ्ट को साथ नहीं लेकर चलना चाहती हैं। 

गठबंधन के नेता अलग-अलग बात करते हैं तो इससे पता चलता है कि गठबंधन के अदंर भी कई गठबंधन हैं?
अवधेश कुमार: 
किसी गठबंधन में थोड़ी बहुत अलग आवाज होना गलत नहीं है। आवाज किस विषय पर है, यह जरूर देखना होगा। खरगे के नाम पर जो चर्चा हो रही है। वह इस तरह है कि जो होना ही नहीं है, उसकी ज्यादा से ज्यादा चर्चा की जाए। इस गठबंधन के एक दिन पहले तृणमूल कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने ममता को चेहरे के रूप में सामने रखने की बात कही। ममता ने इसका खंडन नहीं किया। एक दिन बाद उन्होंने खरगे का नाम ले लिया। इसके क्या मायने हैं? ममता ने कांग्रेस को जानबूझकर एक्सपोज करने के लिए खरगे का नाम लिया। क्योंकि कांग्रेस इसे स्वीकार नहीं करेगी। अब तक इस गठबंधन का मूर्त होना संभव नहीं दिख रहा है।

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