चीन के तियानजिन में आज से SCO समिट शुरू होगी, जिसमें भारत, रूस, चीन समेत दुनिया भर के 20 से ज्यादा देश शामिल होंगे. माना जा रहा है कि ये समिट अमेरिका के एकाधिकार और दबाव के खिलाफ एक रणनीतिक रास्ता निकाल सकता है और तीनों देश मिलकर ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं.
अमेरिका के लिए चुनौती बनेगा ये मंच
डॉलर से व्यापार और SWIFT तंत्र की बदौलत अमेरिका पूरी दुनिया पर दबाव बनाता है. वह अन्य देशों पर मनचाहे टैरिफ और प्रतिबंध लगाता है, हालांकि अब तक की स्थिति में अमेरिका के खिलाफ कोई ऐसा गठबंधन खड़ा नहीं हुआ, जो उसके आर्थिक विस्तार को चुनौती दे सके. लेकिन दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों पर आए दबाव के बाद SCO वह मंच बन सकता है, जो अमेरिका के लिए चुनौती बन जाएगा. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि SCO दुनिया को चलाने वाले तंत्र का एक शक्ति केंद्र बनता हुआ नजर आ रहा है. आबादी, संसाधन और भूगोल ही नहीं आर्थिक समृद्धि भी SCO को अमेरिका से आगे खड़ा करते हैं.
ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं तीनों देश
SCO के सम्मेलन का मुख्य मुद्दा भले ही आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना है, लेकिन इस बैठक में जिस विषय पर फैसला होगा, उसमें ट्रंप की दबाव बनाने वाली नीति भी शामिल है. यह तय है कि भारत-चीन-रूस मिलकर ट्रंप की एकाधिकार वाली नीति के खिलाफ बड़ा कदम उठाएंगे. इस बैठक से इतना तय है कि ये तीनों देश मिलकर ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं.
सर्कुलर ट्रेड बना सकते हैं ये देश
ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि रूस के पास तेल, गैस और मिनरल्स हैं. चीन के पास मैन्युफैक्चरिंग तकनीक और ढांचा है, वहीं भारत के पास बड़ा कंज्यूमर मार्केट और सर्विस सेक्टर है. ये तीनों देश मिलकर सर्कुलर ट्रेड बना सकते हैं, जिसमें रूस की भूमिका ऊर्जा और धातु देने में होगी, चीन की भूमिका तकनीक और मैन्युफैक्चरिंग में होगी और भारत उपभोक्ता बाजार और IT सर्विसेज दे सकता है, जिसका सीधा मतलब है कि रूस-चीन-भारत साथ मिलकर अमेरिकी टैरिफ का दबाव खत्म कर देंगे और बहुत ही कम लागत वाली वैकल्पिक अर्थव्यवस्था तैयार भी कर सकते हैं.
डिजिटल पेमेंट सिस्टम बना सकते हैं तीनों देश
भारत-रूस-चीन डिजिटल करेंसी और पेमेंट सिस्टम बना सकते हैं. जैसे SWIFT के विकल्प में चीन ने CIPS यानी क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम बनाया है. ठीक ऐसे ही रूस ने भी SWIFT के जवाब में SPFS जैसा फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन सिस्टम तैयार किया है. वहीं भारत भी UPI ग्लोबल मॉडल जल्द लॉन्च करने जा रहा है, जिन्हें आपस में जोड़ा जा सकता है. इसके बाद से इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन के लिए SCO के सदस्यों को अमेरिकी करेंसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
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