अवध, पूर्वांचल और बुंदेलखंड में कांग्रेस की परीक्षा है। सपा के वोटबैंक को जोड़कर ग्राफ बढ़ाने की चुनौती है। इसी क्षेत्र में अठी है। रायबरेली समेत कांग्रेस गठबंधन को 10 सीटें मिलीं हैं।


अवध, पूर्वांचल और बुंदेलखंड में कांग्रेस की असली अग्निपरीक्षा है। इस क्षेत्र में अमेठी, रायबरेली सहित कांग्रेस को मिली 10 सीटें हैं, जिसमें सिर्फ रायबरेली कांग्रेस के पास है। अन्य सभी पर भाजपा काबिज है। राहुल गांधी, अजय राय सहित पार्टी के ज्यादातर दिग्गज नेता भी इसी क्षेत्र से किस्मत आजमां रहे हैं। 

ऐसे में पार्टी के सामने सपा और कांग्रेस के वोटबैंक को एकजुट कर ग्राफ बढ़ाने की चुनौती है। ये सीटें कांग्रेस का सियासी भविष्य भी तय करेंगी। यही वजह है कि इन सीटों के चुनाव संचालन के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी खुद मैदान में उतरी हैं।

कांग्रेस को सपा गठबंधन के तहत 17 सीटें मिली हैं। छह सीटों (बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, अमरोहा, सहारनपुर, फतेहपुर सीकरी) पर चुनाव हो चुके हैं, जबकि कानपुर में 13 मई को मतदान है। रायबरेली में जहां राहुल गांधी खुद मैदान में हैं, तो अमेठी में उनके नजदीकी केएल शर्मा। 

सीतापुर में भाजपा से वाया सपा होते हुए कांग्रेस में आए राकेश राठौर मैदान में हैं, तो बाराबंकी में नौकरशाह से सियासतदां बने पूर्व सांसद पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया लड़ कर रहे हैं। बांसगांव में बसपा सरकार में मंत्री रहे सदल प्रसाद अब कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। 

वह 2014 और 2019 में बसपा के सिंबल पर मैदान में थे। महराजगंज में फरेंदा से कांग्रेस विधायक वीरेंद्र चौधरी मैदान में हैं। प्रयागराज में सपा से कांग्रेस में आए पूर्व मंत्री प्रज्जवल रमण सिंह और वाराणसी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। देवरिया में राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह और झांसी में पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन ताल ठोक रहे हैं। इन सभी सीटों पर ज्यादातर उम्मीदवार हाई प्रोफाइल हैं। 

सपा-बसपा गठबंधन में भी नहीं दिखा था करिश्मा
खास बात यह भी है कि कांग्रेस के हिस्से आईं इन 10 सीटों में से वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा छह सीट पर 50 फीसदी से अधिक वोटबैंक हासिल कर चुकी है। वर्ष 2019 में इन सीटों पर सपा और बसपा मिलकर लड़ीं तब भी वाराणसी, सीतापुर, प्रयागराज, महराजगंज, देवरिया, झांसी में वह वोट शेयर हासिल नहीं कर पाईं, जो उन्हें 2014 में अलग- अलग मिला था। सिर्फ बांसगांव और बाराबंकी में सपा और बसपा का वोटबैंक एकजुट दिखा था।

कांग्रेस सीटें बढ़ाने में कामयाब हुई तो उसके पुनर्जन्म का रास्ता खुल जाएगा
यह चुनाव 2014 और 2019 से अलग है। एक तरफ सत्ता पक्ष की ताकत है, तो दूसरी तरफ विपक्षी शक्तियां एकजुट हैं। आंकड़ों के बजाय मुद्दों पर गौर किया जा रहा है। यह सही है कि विपक्ष कई मुद्दों को जनता तक नहीं पहुंचा पाया है। पर, प्रदेश की जनता तो सब देख ही रही है। कांग्रेस इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उत्तर प्रदेश में सीटें बढ़ाने में कामयाब हुई, तो उसके पुनर्जन्म का रास्ता खुलना तय है। -प्रो. राजेंद्र वर्मा, लखनऊ विश्वविद्यालय
 

हर चुनौती के लिए तैयार
हम हर चुनौती को स्वीकार कर रहे हैं। कांग्रेस का हर कार्यकर्ता पूरी शिद्दत के चुनाव मैदान में डटा है। सपा का सहयोग मिल रहा है। जनता साथ है और बदलाव चाहती है। - अजय राय, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस

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