ये वही कमल का फूल है, जिसका बटन दबाने से; ड्राइविंग लाईसेंस 250 मे बनता था अब 5500 में बनता है!
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Climate Change: दुनिया में जुगनुओं की करीब 2,000 प्रजातियां थीं, लेकिन अब एक चौथाई ही बची हैं और उनकी भी संख्या लगातार घटती जा रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पर्यावरण से जुड़े विभिन्न कारकों से जुगनू प्रभावित हो रहे हैं। इनमें थोड़े समय के लिए रहने वाले मौसम से लेकर लंबे में समय में जलवायु
पहले के मुकाबले जुगनुओं का दिखना कम हो गया है और अब वे दूर-दराज के कुछ क्षेत्रों में सिमट गए हैं। एक अध्ययन के अनुसार, अंधेरी रात में एक साथ चमकते इन अलौकिक जीवों को निहारने का मौका लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को नहीं मिलेगा।
दुनिया में जुगनुओं की करीब 2,000 प्रजातियां थीं, लेकिन अब एक चौथाई ही बची हैं और उनकी भी संख्या लगातार घटती जा रही है। इस अध्ययन में पेन स्टेट विवि, केंटकी विवि, अमेरिकी कृषि अनुसंधान सेवा विभाग और बकनेल विवि से जुड़े शोधकर्ता शामिल हैं। अध्ययन में फायरफ्लाई एटलस की मदद से किए गए 24,000 से अधिक सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पर्यावरण से जुड़े विभिन्न कारकों से जुगनू प्रभावित हो रहे हैं। इनमें थोड़े समय के लिए रहने वाले मौसम से लेकर लंबे में समय में जलवायु में होने वाले बदलाव तक शामिल हैं। तेजी से फैलते शहर, गहन कृषि और जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को प्रभावित करते हैं।
गर्म होती धरती से खो रहा प्रजनन के लिए आदर्श वातावरण
अध्ययन के अनुसार, जुगनू समशीतोष्ण परिस्थितियों में पनपते हैं। गर्मियों में नम और आंशिक गर्म परिस्थितियां उनके प्रजनन के लिए आदर्श वातावरण पैदा करती हैं, जबकि सर्दी का मौसम अंडे, लार्वा और प्यूपा जैसे चरणों में जुगनुओं के विकास में मददगार होता है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है और धरती गर्म हो रही है, इसमें जुगनुओं का पनपना कठिन होता जा रहा है। इसी तरह बारिश के पैटर्न में आ रहा बदलाव भी जुगनुओं को प्रभावित कर रहा है।
कृत्रिम प्रकाश का भी असर
कृत्रिम रोशनी जुगनू के वयस्क और लार्वा दोनों चरणों को प्रभावित करती है। मिट्टी में रहने वाले इनके लार्वा प्रकाश के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, ऐसे में कृत्रिम प्रकाश उनके विकास चक्र और जीवित रहने की दर को प्रभावित करता है। तेजी से हो रहा शहरी विकास भी इनके लिए खतरा पैदा कर रहा है। ऊंची इमारतों, सड़कों और अन्य तरह के निर्माण जुगनुओं के प्राकृतिक आवास पर अतिक्रमण कर रहे हैं। इनकी वजह से जुगनुओं का प्रजनन क्षेत्र सिमट रहा है जो जुगनुओं की आबादी के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
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