आया चुनावों का दौर है। गली-गली में शोर है। कहीं खुशनुमा तराने हैं। कहीं खट्टे, कहीं मीठे, तो कहीं कड़वे अफसाने हैं। कुछ मनुहारें, तो कुछ पुचकारें हैं। खेल तमाशा जारी है। रंगई, बुधई काका फिदा हैं इस तमाशे पर। हामिद चच्चा भी टकटकी लगाए बैठे हैं। पुराने चावल हैं ये सब। हवा पुरवइया चलेगी या पछ


मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम

तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है।
-दुष्यंत कुमार

पीलीभीत को यूं ही धान का कटोरा नहीं कहा जाता। जिस तरह से चावल के कुछेक दानों से ही इनके पकने का अंदाजा लग जाता है, ठीक वैसे ही यहां के मतदाताओं के बीच कुछ लम्हे बिताओ तो पता चल जाता है कि हवा का रुख किधर है। यूपी में पहले चरण की शायद ही किसी अन्य सीट पर नतीजों की तस्वीर इतनी साफ हो। हर तरफ एनडीए बनाम इंडिया या आमजन की भाषा में कहें तो भाजपा व सपा की ही चर्चा है। अलबत्ता बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी की जद्दोजहद मुकाबले को रोमांचक जरूर बना रही है। यह भी कम दिलचस्प नहीं कि तमाम मतदाता भाजपा और सपा प्रत्याशियों का ठीक से नाम तक नहीं जानते। लोकतंत्र के इस सबसे बड़े समर में उनके लिए चुनाव-चिह्न ही काफी है।

हम बरेली से 50 किमी. का सफर तय करके सराय सुंदरपुर गांव के मोड़ पर पहुंचे। यहां एक दुकान पर गरमा गरम जलेबियों और बेसन मिलाकर तली मिर्च का स्वाद ले रहे हेमकरन लाल वर्मा और दीपक वाल्मीकि मिलते हैं। हेमकरन कहते हैं, हमारे बरखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में तो इस बार भी कमल के आगे रहने की उम्मीद है। गोकरन सिंह गंगवार मानते हैं कि सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार इस बार अच्छी फाइट देंगे। हालांकि, सपा प्रत्याशी की जीत को लेकर वे उतने मुतमईन नहीं, जितना कि भाजपा प्रत्याशी को लेकर हेमकरन और दीपक दिखते हैं।

पीलीभीत-पूरनपुर मार्ग पर ही आगे बढ़ने पर गजरौला कला में शुभम दत्ता कोयले की भट्ठी में हंसिया और दरांती ढालते हुए मिलते हैं। युवा इंद्रजीत गेहूं काटने के लिए पंजाब जाने की तैयारी में हैं। बताते हैं, हमारे इलाके में बेरोजगारी बड़ी समस्या है। रुद्रपुर में किसी फैक्टरी में काम करने जाएं तो खा-पीकर बमुश्किल 4-5 हजार ही बचा पाते हैं। 

सियासी चर्चा आगे बढ़ी तो इंद्रजीत के ही साथी टिंकू मौर्य कहते हैं, तहसील-थानों और कचहरी के भ्रष्टाचार आज भी बदस्तूर जारी है। चुनाव आते-जाते हैं, पर व्यवस्था नहीं बदलती। क्या वोट नहीं देंगे? टिंकू कहते हैं-वोट काहे न देंगे। फिर खुद ही सवाल कर डालते हैं-भाजपा के सामने कौन है? बात काटते हुए अखिलेश कश्यप कहते हैं, अगर मुकाबले में सपा ने किसी स्थानीय लोध राजपूत को उतारा होता, तो इस तरह का सवाल पैदा ही नहीं होता। खैर, सूरज दत्ता की परेशानी का सबब यह है कि हर बार उनका वोट कट जाता है। बंगाली होने के नेता उन पर यहां के नेता ध्यान नहीं देते।

गुंडागर्दी कम हुई है...
पूरनपुर में हरदोई ब्रांच नहर पर लोग आपस में बतियाते हुए मिले, तो हम भी उनमें शामिल हो लिए। मनोज गौड़ कहते हैं कि 5 किलो राशन से परिवार नहीं चलता। इस बार जनता परिवर्तन का मूड बना रही है। सुनील पासवान कहते हैं कि माहौल तो हर तरफ भाजपा का ही दिख रहा है। गुंडागर्दी कम हुई है। सुनील की पत्नी ग्राम पंचायत घुंघचियाई की प्रधान हैं।

संतोष मौर्य कहते हैं, भ्रष्टाचार इस सरकार में भी कम नहीं हुआ है। वरकाती मोतवर खान कहते हैं, इस बार बसपा प्रत्याशी फूलबाबू भी मजबूती से लड़ाई में रहेंगे। सुनील यादव सपा प्रत्याशी को आगे बताते हैं। अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वह दलील देते हैं कि आज मतदाता बहुत चालाक हो गए हैं। अपने दिल की बात नहीं बताते हैं। वहीं, माला कॉलोनी में मिलीं  मंजू बिस्वास बताती हैं कि उनके बेटे को बाघ ने मार डाला। जीवन में दुश्वारियां बहुत हैं। पर, आज तक हमें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला।

कहीं नहीं कोई अगर-मगर
पीलीभीत रेलवे स्टेशन के पास बरहा में मिले मो. आरिफ अपने कुछ साथियों के साथ बैठे हुए मिलते हैं। मो. आरिफ बिना झिझके बताते हैं कि उनका वोट तो सपा को ही जाएगा, क्योंकि सपा मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं करती है। बसपा की हकीकत भी मुसलमान समझ चुके हैं। हांलाकि, उनके साथ ही बैठे रोशन लाल वर्मा, कैलाश चंद्र और रूप लाल कश्यप मोदी सरकार में मिल रही सुविधाएं गिनाने लगते हैं। राहुल गुप्ता और देवांश शर्मा भी उनकी हां में हां मिलाते हैं। कहते हैं कि कुछ समय पहले शारदा नदी के धनौरा घाट पर पुल मंजूर होने से आम लोग काफी अच्छा महसूस कर रहे हैं।

20 साल से भाजपा काबिज
पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से पिछले 20 वर्षों से मेनका गांधी या उनके बेटे वरुण गांधी जीतते रहे हैं। 

 

  • 2004 से भाजपा के टिकट पर ही मेनका और वरुण जीतते रहे। वर्ष 2004, 2014 और 2019 में सपा प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे, जबकि 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। 
  • मेनका यहां से 1996 से लगातार सांसद रहीं हैं लेकिन भाजपा नहीं दूसरे दलों से।

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