छत्रपति शाहू जी महाराज जन्मदिन पर विशेष


छत्रपति शाहू जी महाराज जन्मदिन पर विशेष

भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक कोल्हापुर के राजर्षी छत्रपति शाहू जी महाराज इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी जाने जाते हैं।छत्रपति शाहू जी महाराज ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने राजा होते हुए भी वंचितों और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी।उन्होंने अनुसूचित वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की।गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए।शाहू जी महाराज के शासन के दौरान ‘बाल विवाह’ पर प्रतिबंधित लगाया गया।उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी।ये छत्रपति साहूजी महाराज ही थे जिन्होंने ‘भारतीय संविधान’ के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले डॉ.भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की थी।महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके।साहूजी महाराज ने डॉ.भीमराव अम्बेडकर के ‘मूकनायक’ समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की थी।महाराज के राज्य कोल्हापुर के अन्दर ही अनुसूचित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थी।सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था महाराज के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी।

1894 में जब शाहूजी महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी उस समय कोल्हापुर के शासन-प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पदों पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे।इसी प्रकार लिपिक पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण ही नियुक्त थे।1902 के मध्य में शाहूजी महाराज ने इस गैर-बराबरी को दूर करने के लिए देश में पहली बार अपने राज्य में आरक्षण व्यवस्था लागू की।उन्होंने एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये।महाराजा छत्रपति शाहूजी महाराज ने 1902 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी देने के लिए आरक्षण का प्रारम्भ किया था।कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्गों समुदायों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए 1902 की अधिसूचना जारी की गयी थी।यह अधिसूचना भारत में अनुसूचित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है।छत्रपति साहू महाराज ने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएं खोलने की पहल की।यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए जो सदियों से उपेक्षित थीं।इस पहल में अनुसूचित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए खास प्रयास किये गए थे।वंचित और गरीब घरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई।शाहूजी महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था।शाहूजी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं तब उन्होंने वंचितों के लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करवा दिया और उन्हें सामान्य छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान कर दी।

छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 ई. जागीरदार श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे के यहां हुआ था।बचपन में इन्हें यशवंतराव के नाम से जानते थे।छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे।ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च 1884 ई. में गोद ले लिया।बाल्या अवस्था में ही यशवंतराव को शाहूजी महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी सम्भालनी पड़ी।शाहूजी महाराज की शिक्षा राजकोट के ‘राजकुमार महाविद्यालय’ और धारवाड़ में हुई थी।वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने।उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने अधिकार वंचितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया।छत्रपति शाहूजी महाराज ने अनुसूचित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए।इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया वे छत्रपति शाहूजी महाराज को अपना शत्रु समझने लगे।छत्रपति शाहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।
शाहू महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे।परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था।एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे।महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा कि ‘‘चूँकि महाराजा शूद्र हैं इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार कर रहे हैं’’ छत्रपति शाहूजी महाराज ने इन सारे विरोधों का डट कर सामना किया और अपने राज्य में राज पुरोहित पद पर सिर्फ ब्राम्हण की नियुक्ति पर रोक लगा दी।छत्रपति शाहूजी महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे।इस पर उन्होंने कहा वे गद्दी छोड़ सकते हैं मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते हैं।15 जनवरी, 1919 को शाहू जी महाराज ने कहा था उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी अनुसूचित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो यह सुनिश्चित किया जाये।उनका स्पष्ट कहना था कि छुआछूत को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।उच्च जातियों को अनुसूचित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए।जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।

अप्रैल 1920 को नासिक में छात्रावास की नींव रखते हुए शाहूजी महाराज ने कहा कि जातिवाद का अंत जरूरी है जाति को समर्थन देना अपराध है।हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है।जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खत्म करना चाहिए।10 मई 1922 मुम्बई में छत्रपति शाहूजी महाराज का परिनिवार्ण हो गया।

हमें अपने महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर महापुरुषों जैसा बनना चाहिए और उनके अधूरे काम को पूरा करना चाहिए।

*आरक्षण के जनक और बहुजनों के मसीहा छत्रपति शाहूजी महाराज जी की जयंती की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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