चीन ने ताइवान पर एक नए इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली तैनात की है, जिसे सिर्फ एक लैपटॉप से नियंत्रित किया जा सकता है. यह प्रणाली ताइवान की समुद्री और हवाई सीमाओं पर शक्तिशाली जैमिंग सिग्नल भेज रही है, जिससे ताइवान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं.


चीन और ताइवान विवाद में नया मोड़ आया है. चीन ने पिछले कुछ सालों में ताइवान की समुद्री और हवाई सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधि बढ़ाई है. लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने एक नए हथियार का खुलासा किया है, जिसके बाद ताइवान की चिंता बढ़ गई है.

चीन की सेना ने ताइवान के पास एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली स्थापित की है और अपने शक्तिशाली जैमिंग सिग्नल चालू कर दिए हैं. सबसे पहले, ताइवान के ऊंचे केंद्रीय पहाड़ों ने सिग्नल को रोक दिया, जिससे पूर्व में प्रमुख सैन्य ठिकानों से ताइवान की जासूसी को रोक दिया गया है. लेकिन ये सिग्नल समुद्र में भी फैल रहे हैं, जिससे ताइवान के लिए खतरा बढ़ गया है और खास बात ये है कि इस सिस्टम को सिर्फ एक लैपटॉप से कंट्रोल किया जा सकता है.

पहाड़ियों से टकरा कर पूरे द्वीप में फैला करंट

समय के साथ, सिग्नल पहाड़ियों और उबड़-खाबड़ इलाकों से टकराकर पूरे द्वीप और आस-पास के महासागर में फैल गए. जल्द ही, पूर्वी ताइवान को पश्चिम की तरह ही जाम का सामना करना पड़ा. यहां तक कि दूर स्थित ताइपे में भी व्यवधान देखा गया, हालांकि कुछ छिपी हुई घाटियां इसके प्रभाव से बच गई. चीन की इस नई तकनीक को दशकों से चले आ रहे तनाव के नया मोड़ माना जा रहा है.

 

क्या है चीन-ताइवान विवाद?

चीन और ताइवान के बीच विवाद का मुख्य वजह चीन का ताइवान को अपना क्षेत्र मानना है, जबकि ताइवान स्वयं को स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश मानता है. 1949 में चीनी गृहयुद्ध के बाद, कम्युनिस्ट पार्टी ने mainland China में सत्ता हासिल की और गणतंत्र चीन (ROC) की सरकार ताइवान चली गई.

चीन का दावा है कि ताइवान उसका हिस्सा है और वह ‘एक चीन नीति’ के तहत इसे वापस लेना चाहता है, साथ ही उसने जरूरत पड़ने पर बल का प्रयोग करवे की भी बात कही है. ताइवान इसे अस्वीकार करता है और अपनी संप्रभुता की रक्षा करता है. यह तनाव भू-राजनीतिक और ऐतिहासिक कारणों से बना हुआ है

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