इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने भारतीय सेना के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के संबंध में लखनऊ की अदालत के समन को चुनौती दी थी. न्यायालय ने कहा कि भाषण की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध हैं और सेना के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ स्वीकार्य नहीं


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय सेना पर कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फटकार लगाई. एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि यद्यपि “संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है,” फिर भी यह उचित प्रतिबंधों के अधीन है. अदालत ने आगे कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) उन बयानों पर लागू नहीं होता जो “भारतीय सेना के लिए अपमानजनक” हैं. जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की सिंगल बेंच ने यह आदेश दिया.

कोर्ट द्वारा राहुल गांधी को पांचवा मौका देते हुए 23 जून 2025 को बतौर अभियुक्त हाजिर होने के लिए आदेश दिया गया है जिसमें अब मामले की अगली सुनवाई 23 जून को होगी.

राहुल गांधी की याचिका को किया खारिज

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आलोक वर्मा ने गांधी को उनके खिलाफ दायर मानहानि मामले में 24 मार्च को सुनवाई के लिए उपस्थित होने का निर्देश दिया था. इसे चुनौती देते हुए राहुल ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.

यह शिकायत वकील विवेक तिवारी ने उदय शंकर श्रीवास्तव की ओर से दायर की थी. उदय शंकर श्रीवास्तव सीमा सड़क संगठन के पूर्व निदेशक हैं और उनका पद सेना के कर्नल के समकक्ष है.

मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ राहुल गांधी की याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 199(1) के तहत, कोई व्यक्ति जो किसी अपराध का प्रत्यक्ष शिकार नहीं है, उसे भी “पीड़ित व्यक्ति” माना जा सकता है, यदि अपराध ने उसे नुकसान पहुंचाया है या प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है.

सेना पर बयान के मामले में नहीं मिली राहत

न्यायालय ने पाया कि मामले में शिकायतकर्ता, सीमा सड़क संगठन के सेवानिवृत्त निदेशक, जो कर्नल के समकक्ष रैंक के हैं, ने भारतीय सेना के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी.

यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता ने सेना के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया है और टिप्पणियों से वह व्यक्तिगत रूप से आहत हुआ है, अदालत ने कहा कि वह सीआरपीसी की धारा 199 के तहत पीड़ित व्यक्ति के रूप में योग्य है और इसलिए वह शिकायत दर्ज करने का हकदार है.

इसके आलोक में, न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस प्रारंभिक चरण में समन आदेश की वैधता का आकलन करते समय, प्रतिस्पर्धी दावों की योग्यता की जांच करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह जिम्मेदारी ट्रायल कोर्ट की है. तदनुसार, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी.

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