इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि सास भी घरेलू हिंसा के खिलाफ केस दर्ज करा सकती है. सास ने बहू पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसे कोर्ट ने सही ठहराया.


प्रयागराज: सास-बहू का रिश्ता नोकझोक के लिए हमेशा ही जाना जाता है. इस खट्टे मीठे रिश्ते में तकरार भी होती है और प्यार भी. हालांकि, अक्सर अदालत में सास द्वारा बहू को दुखी करने के मामले सामने आते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि सास भी खुद बहू से प्रताड़ित होती हैं. ऐसे में अक्सर सवाल खड़ा होता था कि क्या सास को अपने लिए आवाज उठाने का हक नहीं है. इस सवाल पर अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विराम लगा दिया है. कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है कि सास भी घरेलू हिंसा के खिलाफ केस दर्ज करा सकती है.

सिर्फ बहुओं की सुरक्षा तक सीमित नहीं
घरेलू हिंसा कानून (Domestic Violence Act) सिर्फ बहुओं की सुरक्षा तक सीमित नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि सास भी इस कानून के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है. ये फैसला उस समय आया जब एक सास ने अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया और बहू ने इस पर आपत्ति जताते हुए निचली अदालत के समन को हाईकोर्ट में चुनौती दी.

सुनवाई के दौरान यह भी सवाल उठा कि क्या सास अपनी बहु के खिलाफ इस तरह का मामला दर्जा करा सकती है? इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इसकी इजाजत दी. हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि सास भी अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है. यह फैसला न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने दिया, जिन्होंने लखनऊ की एक निचली अदालत द्वारा बहू और उसके परिवार के खिलाफ जारी समन को सही ठहराया.

 

मामला स्मृति गरिमा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के नाम दाखिल हुआ था, जिसमें बहू और उसके परिवार ने निचली अदालत द्वारा जारी समन को चुनौती दी थी. परंतु हाईकोर्ट ने निचली अदालत के समन को सही ठहराया और कहा कि सास को भी कानून का संरक्षण प्राप्त है.

यह है मामला
मूल शिकायत में सास ने आरोप लगाया कि उसकी बहू अपने पति (यानी सास के बेटे) पर दबाव बना रही थी कि वो ससुराल छोड़कर मायके में आकर रहे. इसके अलावा, बहू पर सास-ससुर से बदतमीजी करने और झूठे मुकदमों में फंसाने की धमकी देने का आरोप भी लगाया गया. वहीं, बहू के वकील ने तर्क दिया कि ये शिकायत दरअसल बहू द्वारा दर्ज कराई गई दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामले का बदला लेने के लिए की गई है.

 

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया कि सास की शिकायत प्रथम दृष्टया घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत आती है. इसलिए निचली अदालत द्वारा जारी समन वैध और उचित है. कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि धारा 2(f), 2(s) और धारा 12 को एक साथ पढ़ने पर ये स्पष्ट होता है कि साझा घर में रहने वाली कोई भी महिला, जो घरेलू रिश्ते में हो और उत्पीड़न का शिकार हो, वो पीड़ित महिला मानी जाएगी.

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