Gaurav Siddharths _ गौरव सिद्धार्थ


हमारी ही तलवार हमीं पर वार करते हो 
हाय साहब हमीं पर अत्याचार करते हो 


तुम्हारी सरकार हम ही पर अत्याचार ढाने लगी 
साहब हम पर ही  झूठ का  वार  करते हो 
हाय साहब हमीं से अत्याचार करते हो, नोट का बंडल यू उड़ाते  आसमान पर 

हमारे वोट का अधिकार साहब लिए ही जा रहे हाे
साहब हम पर अत्याचार किए ही जा रहे । 


तुम्हारी मेज चांदी की तुम्हारे जाम सोने के है, 
हाय साहब वादे पर वादे किए जा रहे |


हमारी वोट  का अधिकार लिए ही जा रहे है 
साहब  हमीं पर अत्याचार किए ही जा रहे |


तुम बैठे हो महल में तुम्हारा महल शानदार है 
हमको एक झोपड़ी भाती नहीं साहब हमारे घर में शाम को रोटी आती नहीं साहब वादे पर वादे दिए जा रहे है |
साहब हम ही पर अत्याचार किए ही जा रहे 
संविधान का अधिकार लिए जा रहे हैं है साहब हमीं पर अत्याचार किए जा रहे 
साहब  का खेल यूं दीदार चलता है ये वोट  का खेल बार-बार चलता है l 
 

झूठे वादों का बस दिलासा मिलता है,
मैं टूटी झोपड़ी में बैठा हूं बस निराशा मिलता है 
हमारी ही तलवार हम पर वार करते हो  
झूठे वादों को बार-बार करते हो हाय साहब  हमीं पर अत्याचार करते हो

 

 

 

                                                                                                                                                                                                                                             लेखक गौरव सिद्धार्थ

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