बिहार विधानसभा चुनाव में तेज प्रताप यादव ने एक नया मोर्चा खोला है. पार्टी से निष्कासित तेज प्रताप ने पांच छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है, जिससे तेजस्वी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. यह गठबंधन भाजपा और नीतीश कुमार के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि यह विपक्षी वोटों को बांट सकता है.


बिहार विधानसभा चुनाव में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राजद के नेता तेजस्वी यादव की चुनौती न केवल भाजपा और नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से है, बल्कि उनके बड़े भाई और पार्टी से निष्कासित तेज प्रताप यादव हर दिन उनके लिए नई मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. पार्टी और परिवार से बेदखल किए गए तेज प्रताप यादव अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई के लिए हर चाल चल रहे हैं और उनकी चाल तेजस्वी यादव का सियासी खेल बिगाड़ सकता है.

 

लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ तेज प्रताप यादव की सियासी जंग तब शुरू हुई थी, जब एक महिला के साथ “रिश्ते” को लेकर बिहार के पूर्व मंत्री को 25 मई को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था. हालांकि, बाद में उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट कर दिया और दावा किया कि उनका पेज “हैक” हो गया था.

लालू प्रसाद ने तेज प्रताप के “गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार” के कारण उनसे नाता तोड़ लिया था. पार्टी से निकाले जाने के बाद तेज प्रताप ने उनके और उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव बीच दरार डालने और साजिश के पीछे जयचंद के होने का आरोप लगाया था. इसके बाद उन्होंने अपनी बहनों को सोशल साइट पर अनफॉलो कर दिया.

तेज प्रताप का गठबंधन बनाने का ऐलान

उन्होंने अपने पूर्व विधानसभा क्षेत्र महुआ से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर राजद को खुली चुनौती दी तो अब और एक कदम आगे बढ़ते हुए राज्य के पांच छोटे दलों भोजपुरिया जन मोर्चा (बीजेएम), विकास वंचित इंसान पार्टी (वीवीआईपी), संयुक्त किसान विकास पार्टी (एसकेवीपी), प्रगतिशील जनता पार्टी (पीजेपी) और वाजिब अधिकार पार्टी (डब्ल्यूएपी) से अगले विधानसभा चुनाव में गठबंधन का ऐलान कर दिया है.

 

हालांकि तेज प्रताप यादव ने जिन राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन का ऐलान किया है, उनका जनाधार बहुत ही कम है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव का खेल बिगाड़ने का लिए यह काफी हो सकता है, क्योंकि तेज प्रताप यादव भी सामाजिक न्याय, सामाजिक अधिकार और बिहार में पूर्ण परिवर्तन की बात कह रहे हैं. वह तेजस्वी यादव से सीधा हमला नहीं कर रहे हैं, लेकिन जयचंद जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं.

इसके साथ ही वह राजद और कांग्रेस को गठबंधन में शामिल होने का आमंत्रण भी देते हैं. वह कहते हैं कि राजद और कांग्रेस चाहें तो हमारे साथ आ सकते हैं. राजद और कांग्रेस की तरह ही वह भाजपा के साथ किसी तरह के गठबंधन की बात को खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है कि मेरे उनसे वैचारिक मतभेद हैं. मैं अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं हो सकता. सामाजिक न्याय मेरा मार्ग है, और मैं समझता हूं कि इसे कैसे अपनाया जाना चाहिए.

क्या ओवैसी की राह पर चल रहे हैं तेज प्रताप?

वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में ऐसा प्रतीत होता है कि तेज प्रताप यादव असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की राह पर चल रहे हैं. ओवैसी की पार्टी ने पहले महागठबंधन में शामिल होने के लिए राजद नेतृत्व को पत्र लिखा था, लेकिन जब राजद की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है, तो एआईएमआईएम ने बिहार में थर्ड फ्रंट बनाने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन एआईएमआईएम के थर्ड फ्रंट बनाने से पहले ही तेज प्रताप यादव ने अपना अलग गठबंधन का ऐलान कर दिया है. ऐसे में इस चुनाव में मुकाबला अहम होने की संभावना है.

 

एक ओर, नीतीश कुमार और भाजपा के साथ एनडीए मैदान में है, तो दूसरी ओर, कांग्रेस, राजद, वामपंथी पार्टियों और मुकेश सहनी की पार्टी का महागठबंधन है, तो तीसरा गठबंधन तेज प्रताप यादव का है और चौथा गठबंधन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के नेतृत्व में बनने की कवायद शुरू हो गई है.

बिहार एआईएमआईएम अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने टीवी9 हिंदी से बातचीत करते हुए कहा कि 15 अगस्त के बाद वे लोग अलग गठबंधन बनाने का ऐलान करेंगे. उन्होंने कहा कि इस गठंबधन में कौन-कौन पार्टियां शामिल होंगी. उस समय खुलासा किया जाएगा. पिछले विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, बसपा, समाजवादी पार्टी जनता दल (डेमोक्रेटिक), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के साथ गठबंधन किया था.

मुस्लिम, दलित और पिछड़ों पर नजर

इस तरह इन सभी विपक्षी पार्टियों के वोट मुस्लिम, दलित, पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग के हैं और यदि विपक्षी पार्टी के नेताओं के कई गठबंधन बनते हैं, तो कहीं न कहीं इससे भाजपा और जदयू विरोधी वोटों का विभाजन होगा और इससे महागठबंधन को नुकसान होगा और भाजपा और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को इससे फायदा होने के आसार हैं.

हालांकि कई राजनीतिक जानकार तेज प्रताप यादव के गठबंधन को ज्यादा महत्व देने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि अभी तक तेज प्रताप यादव तेजस्वी यादव की तरह अपने को राजनीतिक रूप से परिपक्क साबित नहीं कर पाएं हैं और लालू प्रसाद की उनके प्रति नाराजगी भी उनके पक्ष में नहीं है. लालू प्रसाद ने तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है.

ऐसे में यदि बिहार की सियासत में तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच टक्कर होती है, तो इसका लाभ तेजस्वी यादव को मिलने की संभावना है. राजनीतिक रूप से भी उनके साथ कांग्रेस और वामपंथी पार्टी जैसे जनाधार और पुरानी पार्टियां हैं, जो उनके विश्वास को और बढ़ाएगी.

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