इतिहास के झरोखें से.... “जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली”


इतिहास के झरोखें से....

“जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, 
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली”

1962 के भारत-चीन युद्ध में युगों तक पीढ़ियों को प्रेरित करने वाली अमिट शौर्य गाथा लिखने वाले रेज़ांगला के वीर शहीदों को आज यादव शौर्य दिवस पर कोटि कोटि नमन।
अहीर रेजिमेंट हक़ है हमारा
रेजांगला के वीर शहीदों को शत-शत नमन
वीरों में वीर अति शूरवीर वीर अहीर
वीर अहीर अजीत है, अभीत है
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1962 को उस दिन थी दिवाली, वो खेल रहे थे होली, हम घरों में बैठे थे वो झेल रहे थे गोली, थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।!!
ये बोल प्रसिद्ध कविता "ए मेरे वतन के लोगों ज़रा याद करो कुर्बानी" की है जिसके रचियता कवि प्रदीप हैं और जिसे गाया लता मंगेशकर जी ने।
ये गीत 1962 के उन शहीद जवानों पर था।

आईये जाने कौन थे वो 120 वीर जवान।

आज ही के दिन 1962 में जब देश मना रहा था दीवाली तब सीमा पर अहीर जवान खेल रहे थे खून की होली ।
120 में 114 यदुवंशी जवान वीरगति को प्राप्त हो गए और मरने से पहले 2000 चीनियों को चींटी की भांति मसल गए थे।

इस युद्ध को UNO ने विश्व के पांच महानतम युद्धों में शुमार किया और आज भी उन 114 शहीदों की गाथा को यूरोप और अमेरिका के पाठ्य्र पुस्तकों में पढ़ाया  जाता है।

रेजांगला_युद्ध

दुनिया का सैन्य इतिहास यूं तो वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी दास्तां हैं। बिना किसी तैयारी के अहीरवाल के वीर जवानों ने आज ही के दिन 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

यह यहां के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था, जिसके चलते चीन सीज फायर के लिए मजबूर हो गया था।
बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर यहां के जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था।

रेजांगला पोस्ट पर वर्ष 1962 की इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे। शहादत देने वालों में सारे जवान यादव समाज से थे।

कुर्बानी देने से पूर्व इन जवानों ने देश की सरहद की ओर बढ़ रहे चीन के 2000 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।

इस युद्ध की खास बात यह थी कि चीनी सैनिक जहां पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों व बर्फीले मौसम से पूरी तरह अभ्यस्त थे, वहीं मैदानी क्षेत्रों से गये भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी।

हथियारों के मामले में भी भारतीय जवान चीन के सैनिकों से पीछे थे। विशेष बात यह भी थी कि चीन जहां पूरी तैयारी के साथ युद्ध मैदान में उतरा था, वहीं भारत-चीनी भाई-भाई के नारे के बीच भारत को सपने में भी चीनी आक्रमण का आभास नहीं था।

रेजांगला पोस्ट पर लड़ रहे वीर अहीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर इन 124 जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया।

ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया। नजदीक की दूसरी पहाडि़यों पर मोर्चो संभाल रहे अन्य सैनिकों को रेजांगला पोस्ट पर चल रहे इस ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी तक नहीं थी।

द्वारकाधीश और बलराम जी की वंशज यदुवंशी अहीरों ने  "श्री कृष्ण बलराम" के जयघोष से दुश्मन को थर्रा दिया।

लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी। इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये, लेकिन उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

आपको जान फक्र होगा कि चीनियों के दांत खट्टे कर सदा सदा के लिए मां भारती के लिए शहीद हो  जाने वाले उन 120 वीर अहीरों के सम्मान में बचे हुए चीनियों ने  हमारे वीर अहीर शेरों की लाशों को कम्बल से ढका और उनके सिर के साथ उनकी बन्दूक को खड़ा किया और एक कार्ड पर “बहादुर” लिख कर उनके सीने पर रख दिया और फिर रेडियो पीकिंग से खबर दी की चीन का सबसे ज्यादा नुक्सान रेजांगला में हुआ क्योंकि एक बहुत ही बहादुर कौम ने रेजांगला में मुकाबला किया था |
विश्व इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी विरोधी सैनिक देश ने दूसरे देश के सैनिको को इतना सम्मान दिया।
पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी। 
रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया था तथा इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मैडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान दिया था।
इसके अलावा 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था। भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक कभी नहीं मिले।

अहीर रेजीमेंट हक है हमारा....
वीर अहीर अजीत है... अभिजीत है
लेखक - अभय यादव (शिक्षक)
अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा
जनपद - आगरा  (उत्तर प्रदेश)

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