क्या दिल्ली, क्या उत्तर प्रदेश, क्या राजस्थान…पूरे उत्तर भारत में बेइंतहा गर्मी पड़ रही है. ऐसी गर्मी में लोगों का सहारा सिर्फ और सिर्फ पानी और बिजली होती है. यही दोनों चीजें लोगों को राहत देती हैं, लेकिन सोचिए अगर इन दोनों का संकट हो जाए तो क्या होगा. देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा ही हो रहा है. यहां पानी की किल्लत तो चली ही रही थी, बिजली संकट भी शुरू हो गया है. ये दिल्ली का दुर्भाग्य ही है कि उसे इन दोनों चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है.
पानी का मामला तो सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा हुआ है. अब तो बिजली की लड़ाई भी शुरू हो गई है. दरअसल, मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मंडोला में पावर ग्रिड के सब-स्टेशन में आग लग गई, जिसके कारण दिल्ली के कई इलाकों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ा. दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने उर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर को इसकी जानकारी भी दी.
खट्टर को लिखे पत्र में आतिशी ने कहा, मंगलवार दोपहर 2 बजकर 11 मिनट पर ग्रिड के फेल होने से दिल्ली के कई इलाकों वजीराबाद, कश्मीरी गेट, गीता कालोनी, हर्ष विहार, राजघाट, नरेला और गोपाल पुर में लोगों को 2 घंटों तक बिजली कटौती का सामना करना पड़ा. उन्होंने खट्टर से इसपर कार्रवाई करने की मांग की ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा पैदा ना हो.
पानी ही नहीं बिजली के लिए भी दूसरों पर निर्भर दिल्ली
दिल्ली पानी ही नहीं बिजली के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहती है. यूपी के मंडोला में जिस पावर ग्रिड में आग लगी वो दिल्ली को 1500 मेगावाट बिजली देती है. यही नहीं उत्तर प्रदेश के NTP दादरी से 756 मेगावट और एनटीपीसी दादरी-2 से 728 मेगावाट बिजली मिलती है. हरियाणा के झज्जर थर्मल प्लांट से दिल्ली 693 मेगावाट बिजली मिलती है. इसके अलावा सासन से 446 मेगावाट, एनटीपीसी रिहंद से 358 मेगावाट, एनटीपीसी सिंगरौली से 300 मेगावाट, कहलगांव से 157 मेगावाट, एसजेवीएनएल नाथपा झाकरी से 142 मेगावाट, एनटीपीसी ऊंचाहार से 100 मेगावाट के साथ ही कुछ अन्य पावर प्लांट से भी से बिजली मिलती है.
दिल्ली को पूरे देश से 50 से अधिक उत्पादन इकाइयों से बिजली प्राप्त होती है. इसके लिए एक विशाल ट्रांसमिशन लाइन की भी आवश्यकता है, ताकि बिजली राजधानी तक पहुंच सके. सरकार ने ट्रांसमिशन नेटवर्क में भी बड़े पैमाने पर निवेश किया है.
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