कानपुर में करीब 13 साल पहले मां की उंगली पकड़ हंसती-खेलती स्कूल गई मासूम दिव्या के साथ ऐसी दरिंदगी हुई कि जिसने सुना उसकी रूह कांप उठी। दरिंदगी के बाद बच्ची की हुई मौत ने शहर के साथ पूरे देश को झकझोर दिया। हर आंख रोई थी। जिस दरिंदे को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी थी, पता नहीं कौन सी दलीलें रखकर वह जमानत पा गया है।
यह कहते-कहते दिव्या की मां से आंखों से आंसू टपकने लगे। अमर उजाला ने गुरुवार को दिव्या के घर जाकर उसकी मां से विशेष बातचीत की। इस मामले में सीबीसीआईडी जांच में स्कूल प्रबंधक के पुत्र पीयूष वर्मा को मुख्य आरोपी बनाया गया था। हाईकोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने सजा पर अपील खारिज कर दी थी, तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
अपील पर सुनवाई चल रही है। इस दौरान 13 साल आठ माह से जेल में बंद आरोपी पीयूष को जमानत दी गई है। पीयूष को जमानत मिलने के सवाल पूछते ही दिव्या की मां बोलीं, उम्र भर की सजा हुई थी तो वह रिहा कैसे हो सकता है। उसे फांसी की सजा होनी चाहिए। उन्होंने दरिंदे को फांसी और आखिरी सांस तक बेटी के इंसाफ की लड़ाई लड़ने का दंभ भी भरा।
बच्चियों के लिए हर कदम पर दिक्कतें, अभिभावक बनें दोस्त
दिव्यां की मां ने कहा कि मां-बाप बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें स्कूल भेजते हैं। कुछ घंटों के लिए अपने कलेजे का टुकड़ा अनजान लोगों को इस विश्वास के साथ सौंपते हैं कि स्कूल के शिक्षक उसके बच्चे को अच्छी शिक्षा देंगे और कर्मचारी उसका ध्यान रखेंगे।
समय-समय पर बच्चे से पूछताछ करें
फिर भी, अगर इनमें से ही कोई बच्चे का जीवन बर्बाद कर दे तो किस पर विश्वास किया जाए। बच्चियों के लिए कदम-कदम पर दिक्कतें हैं, जरूरत है कि अभिभावक बच्चों के दोस्त बनें। उनकी हर समस्या को सुनें। स्कूल और वहां तक आने-जाने के दौरान रास्ते में होने वाली गतिविधियों पर निगाह बनाए रखें। समय-समय पर बच्चे से पूछताछ करें और संदिग्ध लगे तो समय रहते ही विरोध करें।
सरकार से सिर्फ 25 हजार रुपये की आर्थिक मदद मिली
दिव्या की मां ने बताया कि घटना के बाद एडीएम सिटी आए थे। काॅलोनी के कागज और 25 हजार रुपये का एक चेक दिया था। घर तो मिल गया लेकिन आर्थिक मदद के नाम पर मिली रकम ऊंट के मुंह में जीरा समान थी। इसके बाद से आज दिन तक सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली। कुछ सामाजिक संगठनोंं ने उनकी मदद जरूर की।
पढ़ाई संग नौकरी कर मां का सहारा बन रही बेटी
दिव्या की मां कॉलोनी के एक कमरे, बाथरूम, किचन वाले घर में अपनी दो बेटियों के साथ रह रही है। घरों में कामकाज कर अपना व दो बेटियों का भरण-पोषण कर रही है। उन्होंने बताया कि छोटी बेटी कक्षा छह में पढ़ रही है जबकि बड़ी बेटी बीएससी कर रही है। आर्थिक तंगी से जूूझ रहे परिवार का सहारा बनने के लिए बड़ी बेटी ने पढ़ाई के साथ प्राइवेट नौकरी भी शुरू कर दी है। उसकी आमदनी से घर खर्च में मदद मिल जाती है।
आंखों में ही आंसू रोक लेती है मां
दिव्या की एक छोटी बहन भी है। कहने को तो वह 12 साल की हो गई है लेकिन उसे घटना की कोई जानकारी नहीं है। दिव्या की मां ने बताया कि वह दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं। एक तरफ तो मासूम दिव्या को खोने का दर्द उन्हें सहना है, वहीं दूसरी ओर दो बेटियों की परवरिश की जिम्मेदारी भी निभानी है। दिव्या की याद आने पर आंसुओं को आंखों में ही रोक देती हूं, डर लगता है कि बेटी ने कारण पूछा तो क्या जवाब दूंगी।
फोटो पर तिलक लगाकर मनाना पड़ता है जन्मदिन
दिव्या की मां ने बताया कि 11 अगस्त को दिव्या का जन्मदिन होता है। हर मां के लिए बच्चों का जन्मदिन खास होता है लेकिन मैं ऐसी अभागी मां हूं जो बच्चे के जन्मदिन पर आंसू बहाती रहती हूं। बेटी के माथे पर तिलक लगाने की बजाय उसकी फोटो पर तिलक लगाना पड़ता है। दिनभर कमरे के एक कोने में बैठी रोती रहती हूं और सोचती हूं कि अगर दिव्या होती तो आज इतनी बड़ी हो गई होती।
बिना फीस लिए वकील लड़ते रहे मुकदमा
दिव्या की मां ने बताया कि वह थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी से पूरी तरह से अनजान थीं। उनके अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया ने पल-पल पर उनका साथ दिया। सरकारी वकील के साथ मिलकर सेशन कोर्ट में मजबूत पैरवी की और दोषी पीयूष को सजा दिलाई। फीस तक नहीं लीश्र हाईकोर्ट में अपील होने पर उसके पास मुकदमा लड़ने के लिए कोई पैसा नहीं था लेकिन अजय ने हाईकोर्ट में भी उसकी मजबूत पैरवी कराई और वहां भी अपील खारिज हुई।
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