उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस मंडल में काफी नुकसान हुआ। इसका कारण बहुजन समाज पार्टी भी रही। इन सीटों पर बीएसपी के प्रत्याशियों ने खासा प्रभाव डाला।


लोकसभा चुनाव में इस बार बरेली मंडल की पांच व खीरी जिले की दो सीटों पर बसपा की चाल ने कई प्रत्याशियों का गणित बिगाड़ दिया। खासतौर पर जिस भाजपा को अपरोक्ष रूप से जिताने की कोशिश का उसके ऊपर आरोप है, उसी भाजपा की हार का वह कारण बनी। 
कहीं बसपा के उम्मीदवार पर डमी होने का ठप्पा लगने से विपक्ष को फायदा हुआ तो कहीं संविधान बदलने की आशंका में उसका कैडर वोट विपक्ष के पाले में चला गया। ऐसे में खामियाजा हर तरफ से भाजपा को भुगतना पड़ा। सातों सीटों पर यही स्थिति देखने को मिली पर आंवला, और बदायूं के साथ खीरी व धौरहरा सीट पर इसकी वजह से बाजी ही पलट गई। 

बरेली: उम्मीदवार न होने से नफा हुआ तो नुकसान भी
बसपा ने बरेली से छोटेलाल गंगवार को उम्मीदवार बनाया था। चूंकि, भाजपा ने यहां से छत्रपाल गंगवार को टिकट दिया था, ऐसे में कुर्मी वोट कटने का अंदेशा था। इसी बीच छोटेलाल का परचा खारिज हो गया। इससे भाजपा का गंगवार वोट टूटने से तो बच गया, लेकिन बसपा का कैडर वोट विपक्ष की ओर जाने से नुकसान भी हुआ। संविधान बदलने की आशंका में दलित वर्ग के बड़े खेमे ने सपा का दामन थामा। 

स्थिति यह बनी कि जो भाजपा वर्ष 2019 के चुनाव में 1,67,282 मतों के अंतर से जीती थी, वह इस बार 1,32,478 मत पिछड़ गई और छत्रपाल सिर्फ 34,804 मतों से ही जीते। सपा उम्मीदवार प्रवीण सिंह ऐरन को हराने के लिए भाजपा को हर संभव प्रयास करने पड़े। भाजपा ने ध्रुवीकरण और केंद्र व राज्य की योजनाओं को भुनाया। साथ ही कुर्मी वोट बैंक को साधकर जीत हासिल की।

 

आंवला: भाजपा के डमी उम्मीदवार का लगा था ठप्पा
दो बार से भाजपा कोटे की आंवला सीट से चुनाव लड़े बसपा उम्मीदवार आबिद अली पर भाजपा के डमी उम्मीदवार होने का ठप्पा लगा था। दरअसल, उन्होंने चुनाव से ठीक पहले एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री व भाजपा सांसद की तारीफ की थी। उस समय वह सपा में थे और बाद में वह बसपा में शामिल होकर उम्मीदवार बन गए। विपक्ष ने इसी पर उन्हें डमी घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप आबिद को मुस्लिम वोट नहीं मिला और वह भाजपा उम्मीदवार धर्मेंद्र कश्यप के विरोध में सपा प्रत्याशी नीरज मौर्य के लिए एकजुट हुआ।

 

यहां बसपा का कैडर वोट ही आबिद को मिला और भाजपा को उसका भी कोई फायदा नहीं मिल सका। बाकी यहां सवर्ण जातियां भी भाजपा उम्मीदवार के विरोध में थीं। वह धर्मेंद्र के व्यवहार से नाराज थीं और धर्मेंद्र द्वारा की गईं टिप्पणियों के विरोध में उन्होंने बाहर से आकर चुनाव लड़ रहे सपा के नीरज को प्राथमिकता दी। नीरज ने यहां 4,92,515 वोट हासिल कर दो बार के सांसद भाजपा के धर्मेंद्र को हराया। यहां धर्मेंद्र को 4,76,546 और बसपा के आबिद को सिर्फ 95,630 मत मिले।
 

 

बदायूं व पीलीभीत में मुस्लिम प्रत्याशी, पर वोट नहीं 
बसपा उम्मीदवार भाजपा के लिए बदायूं व पीलीभीत में शुरुआत में फायदेमंद बताए जा रहे थे, लेकिन हुआ उलटा। दोनों ही सीटों पर पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी थे, लेकिन वे मुस्लिम वोट ही नहीं काट सके। बदायूं में मुस्लिम खान को 97,751 वोट तो मिले, लेकिन इसमें अधिकतर हिस्सा बसपा के कैडर वोट का है। मुस्लिम मतदाताओं ने वोट कटवा मानकर बसपा प्रत्याशी को वोट नहीं दिया। यहां मुस्लिम इलाकों के कई बूथों पर भाजपा के साथ बसपा को भी इक्का-दुक्का ही वोट मिले हैं।

 

ऐसे में भाजपा प्रत्याशी दुर्विजय शाक्य को हार का मुंह देखना पड़ना। सपा से उम्मीदवार शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव ने 5,01,855 मत हासिल कर उन्हें 34,991 मतों के अंतर से हरा दिया। सपा ने पिछले चुनाव में गंवाई ये सीट वापस छीन ली। वहीं, पीलीभीत में जितिन की जीत का अंतर दलित वोट न मिलने से कम होने की बात कही जा रही है।

 

पीलीभीत सीट पर वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा से वरुण गांधी 2,55,627 मतों के अंतर से जीते थे, जबकि इस बार भाजपा के जितिन प्रसाद ने 1,64,935 मतों के अंतर से जीत तो दर्ज कराई लेकिन पिछले चुनाव से भाजपा की जीत का अंतर 90,692 मत घट गया। यहां बसपा के अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू ने 89,697 वोट तो हासिल किया, लेकिन मुस्लिम वोट नहीं काट सके। सपा के भगवत सरन गंगवार यहां दूसरे नंबर पर रहे।

 

शाहजहांपुर: सपा उम्मीदवार बदलने से अरुण को मिली राहत
शाहजहांपुर में सपा उम्मीदवार चुनाव से कुछ दिन पहले अचानक न बदलता तो भाजपा उम्मीदवार अरुण सागर की जीत की राह और कठिन हो जाती। यहां दोदराम वर्मा बसपा से उम्मीदवार थे और उन्होंने बसपा कैडर का वोट काटा। विपक्ष में मुस्लिम एकजुट था और अन्य जातियों में सेंधमारी से तस्वीर बदलने के कयास थे, लेकिन सपा ने अचानक ज्योत्सना गौंड को उम्मीदवार बनाकर अरुण को राहत दे दी। ज्योत्सना को समय कम मिला और अरुण 5,92,718 मत पाकर जीत गए। बसपा के दोद राम ने यहां 91,710 वोट हासिल किए, जबकि सपा की ज्योत्सना को 5,37,339 मत मिले।
 

 

धौरहरा-खीरी: भाजपा के बागी ही थे बसपा उम्मीदवार
बसपा फैक्टर खीरी जिले की धौरहरा सीट पर भी भाजपा की हार का कारण बना। यहां इस बार भी चुनाव लड़ रहीं रेखा वर्मा के खिलाफ भाजपा से ही बगावत कर बसपा में गए श्याम किशोर अवस्थी चुनाव मैदान में थे। श्याम किशोर अवस्थी को यहां 1,85,474 मत मिले और सपा के आनंद भदौरिया ने महज 4,077 वोटों के अंतर से रेखा वर्मा को हरा दिया। खीरी सीट पर भी बसपा के अंशय कालरा ने 1,10,460 मत हासिल किए और भाजपा के अजय कुमार मिश्र टेनी को सपा के उत्कर्ष वर्मा ने 34,329 मतों से हरा दिया। यहां भी भाजपा को बसपा कैडर के दलित वोट का फायदा नहीं मिल सका।

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