नूपुर शर्मा ने क्या विवादित बयान दिया था, जिसके कारण उन्हें बीजेपी ने सस्पेंड कर दिया? पहले क्रोनोलॉजी समझिए , फिर कारण जानिए ।


नूपुर शर्मा ने क्या विवादित बयान दिया था, जिसके कारण उन्हें बीजेपी ने सस्पेंड कर दिया?

पहले क्रोनोलॉजी समझिए , फिर कारण जानिए ।

पहले वाराणसी में जूनियर जज ज्ञानवापी पर सर्वे का आदेश देते हैं जबकि वहां जिला जज मौजूद हैं । फिर जब वहां सर्वे होने लगता है और जो पता करना है वह पब्लिक में पहुंच जाता है तो सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई शुरू होती है और वह जिला जज को मामला हाथ में लेने को कहते हैं । जिला जज उसको गर्मी की छुट्टियों के नाम पर जुलाई तक टाल देते हैं ।

इस बीच TV पर गरमागरम बहसें प्रायोजित की जाती हैं जिनमें राजनीतिक बहसबाजी के बीच भगवान शिव पर आपत्तिजनक टिप्पणियां होतीं हैं और फिर प्रत्युत्तर में नूपुर शर्मा की आपत्तिजनक टिप्पणी आती है ।

यहां तक तो मैच बराबरी पर चल रहा था या कहें कि कानूनी तौर पर महादेव पक्ष भारी था ।


इसके बाद दूसरा पक्ष अपनी संगठन शक्ति का प्रयोग शुरू करता है ।

पहला है पीएफआई जो नूपुर शर्मा की टिप्पणी के विरोध में पूरे भारत में अलग अलग जगह बन्द का आव्हान करता है । केरल में , कानपुर में अपनी ताकत दिखाता है ।

महादेव पर की गई सैकड़ों अभद्र टिप्पणियों को कोई संज्ञान में नहीं लेता है ।

पहला पक्ष फिर भी कानूनी तौर पर इनको निपटाने में अपने को समर्थ मानता है ।

तब दूसरा पक्ष अपने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करता है ।


भारत के दो विदेशी धर्मों के पास एक एक अंतर्राष्ट्रीय ब्रम्हास्त्र या वीटो पावर है ।

एक के पास अमेरिका , यूरोप के देश हैं जो आपकी बांह मरोड़ सकते हैं , हथियारों, निर्यात, डॉलर निवेश और विदेशी रोजगार के शस्त्रों से ।

दूसरे के पास ओपेक का तेल का पैसा है और आजकल तेल के दाम चढ़े हुए हैं , रूस के मार्किट से बाहर होने की वजह से । इसके अलावा जब भी तेल के दाम बढ़े होते हैं तो ओपेक देशों के पास पैसा ज्यादा होता है तो वह पूरी दुनियां में अपने धर्म के प्रचार के लिए बांटा जाता है । ज्यादा पैसा फिर भारत जैसे देशों के स्टॉक मार्केट में निवेश भी किया जाता है । ज्यादा पैसा होने पर भारत जैसे देश के नागरिकों को वहां रोजगार के लिए भी बुलाया जाता है ।

मतलब भारत को एक तरफ तेल खरीदने , दूसरी तरफ निवेश के लिए और तीसरा विदेशी रोजगार के लिए जिनका मुंह देखना होता है , उनके धर्म के अनुयायियों को आप सच नहीं बोल सकते हैं ।

तो जैसे ही अन्य उपाय कमजोर पड़ने लगते हैं , यहां बैठे लोग उधर के धार्मिक नेताओं को ट्वीट भेज देते हैं कि भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग खतरे में है ।

मतलब घरेलू मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीय करण ।

उसके बाद सत्ताधारी दल की मुसीबतें शुरू और फायर फाइटिंग चालू ।

फिर मोहन भागवत का बयान आता है कि हर जगह शिवलिंग खोजने की क्या जरूरत है ।

फिर नूपुर शर्मा का माफीनामा आता है । और भाजपा उनको अपने से अलग कर लेती है ।

दूसरा पक्ष जीत की खुशी में ईद मनाने लगता है ।


कोरोना के समय 2 साल पहले यही कहानी दोहराई गयी थी । शुरू में क्वारंटाइन का विरोध करने वालों के नाम मुहल्ले दिए जा रहे थे । तब्लीगीयों के कारनामें मीडिया छाप रहा था , पब्लिक शेमिंग हो रही थी सोशल मीडिया पर ।

उस समय भी दूसरे पक्ष ने अपने आका को संदेश भेजा , वहां से सत्तारूढ़ दल को संदेश आया और फिर सब कुछ रफा दफा हो गया ।

पूरे भारत में हर बार उपद्रवों में पी एफ आई का नाम बार बार आने के बावजूद इस पर बैन न लगने का भी वही कारण है ।

कांग्रेस तो 50 साल तक इस चक्कर में पड़ी ही नहीं , वह तो पहले से ही दंडवत रहती थी जिससे कोई फोन न आ जाए ।


पहले पक्ष को इस आर्थिक ब्रम्हास्त्र और संगठित हिंसक विरोध की काट मालूम नहीं है पर वह जीतना चाहता है । जब तक आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं होगी , खुद संगठित नहीं होंगें , तब तक कोई भी नेता क्या कर लेगा वैश्विक राजनीति में ।

दूसरा पक्ष इस बात से गाफिल है कि हर बात में मध्यपूर्व का पैनिक बटन दबा कर कब तक काम चलेगा । एक न एक दिन भारत चीन वाली स्थिति में पहुंचेगा ही , जब उसकी अन्य देशों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हो जाएगी । उस दिन जिनजियांग वाली स्थिति अगर उत्पन्न हुई तो न मध्यपूर्व काम आएगा , न यूरोप, अमेरिका ।

मध्यपूर्व का तेल खत्म होने या उसका विकल्प आने में अब ज्यादा वक्त नहीं है । सन 2014 में और अभी 2020 में तेल के दाम जब बहुत कम हो गए थे तो यही देश अपना तेल खरीदवाने के लिए भारत की खुशामद कर रहे थे ।

2020 में तेल निर्यातक देशों को अपना खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था , भारतीय कामगारों को वापस भेजा जा रहा था , स्टॉक मार्केट निवेश को भी निकाला जा रहा था जबकि भारत को 20$ बैरल तेल से फायदा हो रहा था और 370 अनुच्छेद (कश्मीर) पर सऊदी अरब कान मूंदे था जबकि पाकिस्तान चीख रहा था । ऐसा दुबारा फिर कभी भी हो सकता है ।

अफ़ग़ानिस्तान का उदाहरण भी है जहां से भारत को डॉलर, तेल कुछ नहीं लेना है , फिर तालिबान बार बार भारत से अनाज, दवा, अस्पताल, मतलब हर तरह की मदद की गुहार क्यों लगा रहा है जबकि दुनियां में 57 देश हैं, बगल में पाकिस्तान भी है ।

घरेलू समस्याओं के अंतर्राष्ट्रीयकरण के द्वारा आज भले ही एक पक्ष अपने को मजबूत महसूस कर रहा हो , पर भविष्य में भी यह काम करेगा , यह कहना मुश्किल है । दूर बैठा दोस्त या रिश्तेदार कितना ही शक्तिशाली हो , पड़ोसी के मुकाबले वह कम ही होता है । पाकिस्तान ने अमेरिका के भरोसे अनेक युद्ध लड़ने की कोशिश की पर वह सब में हारा और आज तो उसे 1 डॉलर की भी मदद कहीं से नहीं मिल पा रही है ।


यही हाल भारत में धर्मपरिवर्तन में लगे दुनियां के सबसे बड़े धर्म वाले भी करते हैं । वह अपना पैनिक बटन अमेरिका के यहां या यूरोप में दबाते रहे हैं ।

लेकिन परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं ।

आज भारत अमेरिका , यूरोप को रूस के विरुद्ध समर्थन नहीं दे रहा है और रोज़ खरी खरी सुना रहा है । पीछे इन्होंने भारत को कितनी बार धोखा दिया है या बांह मरोड़ी है , उसको याद दिला रहा है ।


पुराने हथकंडे एक दिन चलना बन्द हो जाते हैं । वक्त की चाल के आगे राजा भिखारी और भिखारी राजा बन जाता है ।

2007 में योगी को गिरफ्तार करने का आदेश देने वाले मुलायम सिंह 2022 में अपनी बहू को योगी की छत्रछाया प्राप्त करने के लिए भेजते हैं ।

शायद एक दशक और लगेगा , जब इन पैनिक बटन की बैटरी खत्म हो जाएगी । तब तक सब्र रखें , देश को आर्थिक तौर पर मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करें और जो कमान संभाले हैं उनकी विवशता को समझें । जब तेल खत्म होगा तो आग भी बुझ जाएगी ।

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