दिल्ली हाई कोर्ट ने पेरू और चिली के बीच लंबे समय से चले आ रहे पिस्को नामक शराब के विवाद में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने दोनों देशों को पिस्को नाम के उपयोग का समान अधिकार दिया है, लेकिन यह जरूरी होगा कि उत्पाद पर देश का नाम स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए. यह फैसला उपभोक्ता हितों और व्या


दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पिस्को (PISCO) नामक मादक पेय पर पेरू को विशेषाधिकार देने वाले आदेश को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि पिस्को नाम का उपयोग दोनों देशों पेरू और चिली द्वारा वैध रूप से किया गया है, इसलिए दोनों को भौगोलिक पहचान (Geographical Identifier) के साथ इसका उपयोग करना होगा.

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क्या है विवाद का मूल कारण?

पिस्को एक अंगूर से बनी मादक पेय है, जिसे पेरू और चिली दोनों देश पारंपरिक रूप से बनाते और उसका निर्यात करते हैं. दोनों ही देशों का दावा है कि पिस्को उनके विशिष्ट क्षेत्रीय परंपरा और संस्कृति से जुड़ा उत्पाद है. साल 2005 में पेरू ने भारत में GI (भौगोलिक संकेत) पंजीकरण के लिए आवेदन किया था. चिली ने इस पर यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि उनके देश में भी सदियों से पिस्को का उत्पादन होता आ रहा है. 2009 में GI रजिस्ट्रार ने ‘Peruvian Pisco’ के रूप में पंजीकरण की अनुमति दी, जिससे उपभोक्ताओं में भ्रम न हो. लेकिन 2018 में IPAB (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अपीलीय बोर्ड) ने यह फैसला पलट दिया और पेरू को ‘PISCO’ नाम पर विशेषाधिकार दे दिया.

चिली की संस्था ने दिल्ली हाई कोर्ट में दी थी चुनौती

चिली की पिस्को उत्पादकों की संस्था ने इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी. इसके बाद अब हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले पर अपना फैसला सुनाया है. जस्टिस मिनी पुष्करणा ने अपने फैसले में कहा है कि पेरू और चिली दोनों ही ‘PISCO’ नाम की मादक पेय का उत्पादन करते हैं, लेकिन उनके प्रोडक्ट की उत्पादन विधि, अंगूर की किस्म और परिपक्वता की प्रक्रिया में साफ अंतर है. ऐसे में दोनों को बराबरी से मान्यता मिलनी चाहिए.

कोर्ट ने IPAB के 2018 के फैसले को अवैध और भ्रामक करार देते हुए पेरू के GI पंजीकरण को ‘Peruvian PISCO’ में संशोधित करने का निर्देश दिया. निर्णय में भारत के GI अधिनियम 1999 और TRIPS समझौते का हवाला दिया गया. कोर्ट ने कहा कि GI कानून का उद्देश्य राजनीतिक इतिहास नहीं, बल्कि उपभोक्ता हित और व्यावसायिक व्यवहार को ध्यान में रखना है.

चिली ने अदालत के सामने दी थी यह दलील

चिली ने अदालत में दावा किया था कि 1733 में कोक्विम्बो क्षेत्र के एक दस्तावेज में पिस्को के उत्पादन का सबसे पुराना प्रमाण मिला है. कोर्ट ने माना कि चिली को 18 अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों और कोस्टा रिका जैसे देशों से GI मान्यता प्राप्त है. इसी कारण कई यूरोपीय देशों ने भी पेरू के GI पंजीकरण में एकमात्र उपयोगकर्ता के दावे को आंशिक रूप से अस्वीकार कर दिया.ल्ली हाई कोर्ट ने यह निर्णय एसोसिएशन डी प्रोडक्टोरेस डी पिस्को (Chile) बनाम भारत सरकार मामले में सुनाया गया, जिसमें जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने कहा कि उपभोक्ताओं को भ्रमित होने से बचाने के लिए जरूरी है कि उत्पाद के साथ उसका देश स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए.

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