NASA Study: चांद पर पानी की मौजूदगी रहस्यमय रही है. इसको लेकर वैज्ञानिकों ने अलग-अलग जवाब दिए हैं, लेकिन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की हालिया रिसर्च ने पिछली रिसर्च के परिणामों को नकार दिया है.


दशकों से वैज्ञानिकों को यह बात चौंकाती रही है कि आखिर चांद पर पानी कैसे मौजूद हो सकता है. यह ड्राय है. यहां पर हवा नहीं है. यहां वायुमंडल का अभाव है. यही वजह है कि चांद पर पानी की मौजूदगी रहस्यमय रही है. पिछले कई सालों में इसको लेकर कई रिसर्च की गईं. कुछ रिसर्च में इसकी वजह सूक्ष्म उल्कापिंडों को बताया गया. वहीं, दूसरी रिसर्च में यहां पर प्राचीन गड्ढों में दबे हुए पानी के भंडार की ओर इशारा किया गया. अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने अपनी हालिया रिसर्च में इसका जवाब देते हुए पिछले जवाबों को पूरी तरह से पलट दिया है.

 

नासा की रिसर्च कहती है सूर्य की सौर हवाएं सीधे चंद्रमा की मिट्टी में पानी बना सकती है. जानिए, नासा की रिसर्च में कौन-कौन सी बातें सामने आईं.

कैसे किया प्रयोग?

यह रिसर्च नासा के गॉडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के रिसर्च साइंटिस्ट ली सिया यिओ और उनकी टीम की ओर से की गई है. चांद पर मौजूद पानी का जवाब जानने के लिए वैज्ञानिक ने रियलस्टिक सिमुलेशन बनाया और यह समझने की कोशिश की गई है कि कैसे सूरज की सौर हवा चांद पर असर डालती है.

 

नासा के शोधकर्ता जैसन मैक्लेन कहते हैं, रिसर्च के लिए चांद का डुप्लीकेट माहौल को तैयार किया गया. जहां हवा नहीं थी. इसके लिए एक यूनिक चेम्बर का इस्तेमाल किया गया, जिसमें से सोलर बीम को गुजारा किया. वैक्यूम की स्थिति बनाई गई और मॉलीक्यूल डिटेक्टर का इस्तेमाल किया गया.

मैक्लेन का कहना है, इस रिसर्च के लिए ऑपरेटस को डिजाइन करने में लम्बा समय लग गया. लेकिन इसका फायदा मिला. इसके बाद पता चला कि सौर हवा से इसका खास कनेक्शन है. इस प्रयोग के दौरान 1972 के नासा आपोलो मिशन 17 के दौरान चांद से लाई गई मिट्टी का सैम्पल इस्तेमाल किया गया.

चांद पर कैसे आया पानी?

सूरज के कारण चांद पर पानी कैसे पहुंचा, इसको लेकर वैज्ञानिकों का कहना है, सूर्य की किरणें का कनेक्शन चांद पर पानी की मौजूदगी से है. जब सूर्य की सौर हवाएं चलती हैं और सौर वायु के प्रोटॉन, जो हाइड्रोजन के नाभिक होते हैं, चंद्रमा की सतह से टकराते हैं, तो उन्हें किसी तरह का प्रतिरोध यानी रेसिस्टेंस नहीं मिलता.

धरती का चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल उसे इन कणों से बचाते हैं, लेकिन चांद पर इन दोनों का अभाव है. इसलिए इसका असर वहां दिखता है.ये प्रोटॉन चांद के इलेक्ट्रॉन से टकराते हैं, जिससे वो हाइड्रोजन परमाणु बनते हैं. फिर वो हाइड्रोजन परमाणु सिलिका जैसे खनिज में ऑक्सीजन के साथ मिलकर हाइड्रॉक्सिल (OH) और संभवतः पानी (H₂O) बनाते हैं.

शोधकर्ता यिओ का कहना है, चौंकाने वाली बात है कि चांद की मिट्टी में मौजूद तत्व सूर्य से आए हैं. केवल चंद्रमा की मिट्टी और सूर्य से मिलने वाले मूल तत्व, जो हमेशा हाइड्रोजन उत्सर्जित करता रहता है, उसके साथ पानी बनाने की संभावना है.

कैसे पता लगाया गया?

शोधकर्ताओं ने रिसर्च के दौरान स्पेक्ट्रोमीटर का इस्तेमाल किया. इसकी मदद से चांद की मिट्टी का केमिकल देखा तो पता चला कि यह एक तय समय के बाद बदल जाता है. उन्होंने 3 माइक्रोन के आसपास इंफ्रारेड के एब्जॉर्बप्शन में गिरावट देखी, जो पानी की उपस्थिति से जुड़ा एक संकेत है. हालांकि, टीम स्पष्टतौर पर यह नहीं बता पाई है कि कितना प्योर पानी बना. आंकड़ों से साफ है कि इसमें हाइड्रोक्सिल और वॉटर मॉलिक्यूल दोनों का निर्माण हुआ.

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